अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो? 

01-07-2024

अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो? 

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

अपने आपको पहचानो 
‘आत्मानाम विजानीहि’
कि तुम कौन हो? 
कि तुम एक व्यक्ति हो 
क्योंकि तुम व्यक्त हुए हो
कि तुम आदम की संतति आदमी हो 
क्योंकि तुम्हारे अंदर दम आ गया 
कि तुम मानव हो 
क्योंकि तुम्हारे मन ने तुम्हें मानव मान लिया 
कि तुम मानव इसलिए भी हो 
क्योंकि तुम्हें मान सम्मान मिलने लगा
कि तुम सदेह मनुज मनुष्य हो 
कि किसी देह से मन की इच्छा से जन्मे हो! 
 
कभी तुम अदृश्य बीज थे 
धीरे-धीरे वांछित वस्तुओं को पाकर 
अँखुआने लगे और आकार पाने लगे 
अग्नि पानी पवन आकाश ज़मीन में 
पौध जमाने लगे दसों दिशा निहारने लगे
आग से उष्मा पानी से रस पवन से गति
ज़मीन से जड़ता आकाश में आकृति 
घेरकर उभरकर ऊपर को आने लगे! 
 
फिर दृश्याकार होकर दृष्टि को उपलब्ध हुए 
एक हद से बाहर निकलकर तुम वृहद्‌ हो गए 
विशाल व्यापक इच्छा शक्ति से वृक्ष बन गए हो! 
 
फिर तो अपने आपको
पहचानो कि तुम कौन हो? 
दे बता कि क्या तुम देवता हो? 
कि तुम दानव हो
किसी की दान वृत्ति से उद्भव हुए हो? 
कि किसी भगवान भगवती के
भगाए उगाए गए हो
या कि किसी संत द्वारा
सिंचित किए गए संतान हो 
कि सत रज तम गुण को
साधने वाले साधु-सज्जन-शैतान हो! 

हाँ! मानव
सतोगुण रजोगुण तमोगुण के उतार-चढ़ाव से 
आपस में प्रेम सहकार और
क्रोध अहंकार वृत्ति धारण करता
कोई ईश्वर ख़ुदा परवरदिगार
प्यार करने या मारने नहीं आता 
जीव जगत मानव एक दूसरे के
जीवन मृत्यु का कारण होता
कोई अपनी सदाशयता से
प्रेम सुधा रस बरसाता जीता जिलाता
कोई अपनी क्रूरता व घृणा से
मरने मारने पर उतारू हो जाता 
अस्तु ये जीव जगत
त्रिगुणात्मक प्रवृत्ति से संचालित होता! 
 
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा 
कि ये सृष्टि त्रिगुणात्मक प्रकृति से चलती 
मानव दशा सात्विक राजस तामस प्रवृत्ति से संचालित होती 
जीव जगत के संचालन में भूमिका नहीं किसी ख़ास ईश्वर की 
दोष नहीं दो ईश्वर को कि क्यों चलते फिरते गिरते मरते हो 
जस करनी तस भोग की रीति कारण नहीं कोई अन्य शक्ति! 
 
अध्यात्म का भी यही कथन 
ब्रह्मा विष्णु महेश हैं सृष्टि के त्रिदेव नियामक 
ब्रह्मा जन्मदाता, विष्णु पालनकर्ता, शिव सृष्टि संहारक 
ब्रह्मा राजसी वृति, विष्णु सत्वगुणी विवेकी, शिव तामसी, 
यही मानव में स्वर्गसुख, मुक्ति प्राप्ति, नर्क यातना अधोगति, 
प्रेम ही सृष्टि विस्तारक, विवेक सृष्टि रक्षक, क्रोध मृत्युदायी, 
प्राकृतिक नियम के विरुद्ध अति से क्षति और दुर्गति होती! 
 
विज्ञान भी यही कहता 
वस्तु जगत का अंतिम तथ्य, 
पदार्थ के अणु परमाणु का तीन घटक 
हर पदार्थ इलेक्ट्रॉन प्रोट्रॉन न्यूट्रॉन 
इन्हीं तीन सूक्ष्म कण से अवगुंठित 
इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक, प्रोट्रॉन धनात्मक, 
न्यूट्रॉन नकारात्मक गुणधर्म 
पदार्थ के मध्य आकर्षण विकर्षण और 
संतुलन की यही तीन परिस्थिति 
गुरुत्वाकर्षण के विपरीत चाल में 
असंतुलन ही दुर्घटना मृत्यु की स्थिति! 
 
अपने आपको पहचानो कि 
जन्मतः तुम सिर्फ़ मनुष्य हो 
नाम पाते ही किसी धर्म पंथ मत 
मज़हब के अनुयायी हो जाते 
तद्‌नुसार प्रवृत्ति जग जाती, 
भाव-भंगिमा वेषभूषा हो जाती
विधर्मी अनुयाइयों के प्रति घृणा द्वेष 
और वितृष्णा जग जाती 
अवसर विशेष पर दंगा-फ़साद में 
एक दूसरे की हत्या की जाती! 
 
जन्म और नामकरण के बाद 
जातिगत उपाधि मिल जाती
तद्‌नुरूप स्वभाव विकसित हो जाता 
जातिगत पहचान मिल जाती
पराई जाति के लोगों के प्रति 
उपेक्षापूर्ण भावना जग जाती 
विद्यालय विश्वविद्यालय कार्यालय तक 
विजाति से दूरी हो जाती 
जन्म विवाह मृत्यु संस्कार में 
अपनापन नहीं, स्थिति ग़ैरों जैसी 
आदमी की आदमी के साथ दोस्ती दुश्मनी 
जन्म के साथ ही तय होती 
तद्‌नुसार जीवन मरण प्रभावित होता, 
यहाँ ईश्वर की भूमिका कहाँ होती?

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