पिता

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

पिता! पिता! पिता! 
जब पास नहीं होता 
तब अहसास होता
धाता-विधाता से बड़ा 
अगर कोई होता
वह पिता ही होता! 
 
वह पिता ही होता! 
जहाँ भगवान नहीं
वहाँ भी पिता होता
पिता हो जहाँ में या
आसमानी हो गए हों 
पिता का ही चेहरा
हमेशा ध्यान में होता! 
 
चाहे सूर्य डूबा हो, चाँद ना उगे
पिता का ही मुख 
विहँसता सुनसान में होता! 
 
जब जेब हो ख़ाली
मुँह में ना हो निवाला
तब पिता की याद ही 
देती है हमें दिलासा! 
 
पिता ही पता है/ठौर व ठिकाना है! 
पिता नहीं तो हर शहर अनजाना है! 
पिता नहीं तो हर रिश्ता बेगाना है! 
 
पिता नहीं तो ना गीत ना गाना है! 
पिता नहीं तो किस पर इतराना है! 
पिता नहीं तो किस पर खिजाना है! 
 
पिता नहीं तो किसको सुनाना है! 
पिता नहीं तो किसको रुलाना है! 
पिता नहीं तो किससे तुतलाना है! 
 
पिता नहीं तो सब अफ़साना है! 
पिता सब ख़ुशियों का ख़ज़ाना है! 
पिता नहीं तो टुअर कहलाना है! 
पिता नहीं तो अनाथ हो जाना है! 

टुअर= पुत्र को कहा जाता है जिसके पिता की मृत्यु हो गई हो ( शब्द बिहार झारखंड में बहुत प्रचलित है)

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