अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले

01-11-2022

अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अर्जुन जैसे अब नहीं होते 
अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
अब तो तनिक सी बात से शत्रुता हो जाती 
मरने मारने पर उतारू हो जाते अपने 
तुरंत ही दुर्योधन दुशासन सरीखे बन जाते 
 
बिना किसी गीता को सुने हमेशा तैयार रहते 
मारने पीटने कूटने काटने अपनों को अपने ही
 
आज भाई भाई से बहन बहन से साले बहनोई से 
बहनोई साले से मित्र मित्र से ईर्ष्या द्वेष जलन करते 
एक दूसरे की तरक़्क़ी से एक दूसरे के बेटा बेटी से
खुन्नस निकालते तनिक अपनापन नहीं दिखलाते 
सुनना पसंद नहीं करते अपनों की थोड़ी सी सफलता
 
अब असत्य के ख़िलाफ़ सत्य की जीत के लिए
गीता सुनने सुनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती
बिना गीता सुने अपनों की बखिया उधेड़ देते अपने 
 
आज अपनों से ही छिपानी पड़तीं अपनी ख़ुशियाँ 
आज अपनी सफलता की वजह से अपने दूर हो जाते
आज अपने रिश्ते नाते दोस्त नुक्ता चीनी निकालते
आज अपने सगे संबंधी रिश्तेदार अपनों की सफलता
और अपनी असफलता को कभी नहीं सहन कर सकते 
 
अपने रिश्तेदारों की सफलता को इत्तिफ़ाक़ समझते 
और अपनी असफलता को तर्क से महिमा मंडित करते
आज बग़ैर गीता पढ़े बिना कृष्ण जैसे सलाहकार के
लोग तत्क्षण दुर्योधन दुःशासन समान मार करने लगते 
 
अपनों की ख़ुशियाँ हड़पने के लिए सदा ही तैयार रहते
अब कोई शत्रुता निभाने के पहले अर्जुन जैसे नहीं सोचते
अर्जुन सा मोहग्रस्त होकर भगवान से नहीं प्रश्न करते 
कि मैं जिनके ख़िलाफ़ हूँ वो सगे संबंधी हैं कैसे हनन करूँ? 
 
आज कोई अर्जुन सा भोलाभाला नहीं सोचने वाला
कि मैंने जिनसे शत्रुता पाल रखी है वो मेरे स्वजन हैं
कि मैं जिनके विरुद्ध शिकायती हूँ वो मेरे भाई बंधु हैं 
 
सच में मोहग्रस्त अर्जुन होना आज की आवश्यकता है 
भाई भाई में बहन बहन में दोस्त दोस्त में प्रेम के लिए 
मोहग्रस्त अर्जुन होना आज निहायत ज़रूरी मजबूरी है 
 
आज अर्जुन पुत्र को नहीं चाहिए जयद्रथ सा फूफा हो
आज के अर्जुन के अल्पवय पुत्र अभिमन्यु जैसों को 
कर्ण सा कोई हत्यारा ताऊ नहीं मिले तो अच्छा समझो 
 
ना पक्ष विपक्ष में शकुनि शल्य सा बहन कोखनाशी मामा हो
ना कोई पितामह ऐसा हो जो पोते परपोते पर प्रहार करे 
ना कोई गुरु ऐसा अर्थदास हो जो अपने शिष्यों पर वार करे 
 
कोई मित्र दग़ाबाज़ गुरुभाई अश्वत्थामा जैसा नहीं बन जाए 
जो हकवंचित मित्रों के समूल संपूर्ण वंश को ही मिटाना ठान ले 
गुरुभाई होकर मित्र पुत्रों की गला काट दुष्ट मित्र को भेंट कर दे 
यहाँ तक कि गर्भभ्रूण को मारने नारी कुक्षि पर ब्रह्मास्त्र चला दे 
 
चाहे धन सम्पत्ति की हकमारी कर लो स्वर्ग समेट इंद्रप्रस्थ लूट लो 
मगर अपनों और पराए जन की नारी पर कुदृष्टि कभी नहीं डालो 
परिणाम बुरा होता इंद्रपदासीन नहुष से दुर्योधन की तुलना करलो
 
आज गीता को सुनने पढ़ने का सीधा सा मतलब है 
अर्जुन सा अपनापन और मोह दुर्योधन दुःशासन में भी हो
फिर से भाइयों भाइयों में एक नया महाभारत नहीं हो! 

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