एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला

15-07-2022

एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला

विनय कुमार ’विनायक’ (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आज के दौर में बड़ा कठिन है
ईमानदारी का व्रत पालना! 
ईमानदार होकर घर चलाना! 
चाकरी निभाना और मर जाना! 
आसान नहीं है पहले जैसा! 
  
सच पूछिए तो
ईमानदारी के साथ
बेईमानी का धर्म निभाना भी
आसान नहीं है आज! 
 
रावण होने के लिए भी चाहिए
मंदोदरी सी एक भोली सती नारी! 
पक्के धृतराष्ट्र भी तभी बन सकते
जब साथ में हो आँख में 
पट्टी बाँधने वाली गांधारी! 
 
सच तो यह है 
कि सफल दुर्योधन और दु:शासन 
बनने के लिए भी चाहिए
द्रोण जैसा उद्भट गुरु! 
कर्ण जैसा विश्वसनीय मित्र! 
लक्ष्मण जैसा आज्ञापालक पुत्र! 
जो भाड़े के टट्टू कदापि नहीं थे! 
 
आज के दौर में
एक ईमानदार व्यक्ति का घर होता
कोहराम मचाता संसद
जिसमें धर्मपत्नी होती
चिखती-चिल्लाती विपक्ष का नेता! 
 
बेरोज़गार बेटे होते परम्परा विरोधी, 
धर्मनिरपेक्ष युवातुर्क
बेटियाँ होती विक्षुब्ध 
अल्पसंख्यक जन प्रतिनिधि! 
 
सगे भाई पड़ोसी दुश्मन देश
अभिन्न मित्र-कुटुम्ब कश्मीर पर 
बयानबाज़ी करते पश्चिमी राष्ट्र
और माता-पिता महामहिम राष्ट्रपति! 
 
ऐसे में आर्थिक ख़स्तेहाली
असुरक्षित गृह-दीवार/बच्चों की लचर शिक्षा
ढुलमुल पड़ोस/विदेश नीति की ज़िम्मेदारी
किस पर डाली जाएगी? 
आपके ईमानदार बनाम कमज़ोर कंधे पर ही ना! 
 
घर से दफ़्तर और चौराहे से संसद तक
कहीं भी कभी भी
अवांछित कन्या भ्रूण की तरह
हत्या का शिकार हो जा सकती
आपकी ईमानदारी! 
 
एक अदृश्य ईमानदारी की रक्षा में
लाखों भावी दृश्य ख़ूबसूरत बंगले/सुन्दर कार
टीवी-वीसीआर/अवश्यंभावी वीआईपी परिवार की
कब तक करेंगे हत्या? 
 
आपकी इन रोज़-रोज़ की हत्याओं को
कबतक ख़ामोश हो सहेंगे आपके घरवाले? 
 
जो प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं
आपके कलिग का बाबू से ‘सर’ हो जाने का! 
उनकी झोपड़ी का शानदार घर हो जाने का! 
स्टैंड के गुंडे का सफ़ेदपोश मिनिस्टर हो जाने का! 
आपके जीते जी आपके बच्चों का टुअर हो जाने का! 
और आपके भोले चेहरे का फटीचर हो जाने का! 
 
इन हक़ीक़त को कबतक 
नज़रअंदाज़ करते रहेंगे आपके घर वाले
उस कृत्रिम ईमानदारी के लिए जिसके होने
नहीं होने का पुख़्ता सबूत भी नहीं है आपके पास
इन नकारात्मक सबूत से कौन न्याय दिलाएगा
आपको अपनों से? 
 
कि ईमानदार से नाराज़ होते
सारे सगे-सम्बन्धी/मित्र-रिश्तेदार
कि जो नहीं लेते घूस
उनसे बहुसंख्यक जनता रहती नाख़ुश! 
 
कि एक ईमानदार मुलाज़िम होता
मुजरिम सा निपट अकेला
नमस्कार तक से वंचित! 

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