भारत की अधिकांश जातियाँ खत्ती-खत्तीय क्षत्रियों से बनी
विनय कुमार ’विनायक’
भारत की सर्वाधिक प्राचीन जनजाति है नाग खत्ती क्षत्रिय
नाग वर्ण व्यवस्था विहीन मातृसत्तात्मक सैन्य जाति रही
जो आर्य सूर्य-चंद्रवंशी क्षत्रिय से मिलकर हो गई वर्णवादी
इक्ष्वाकु एक ऐसी जाति जो नाग भी, आर्य भी, क्षत्रिय भी,
इक्ष्वाकुवंशी राम भी, बुद्ध भी, जिन भी, सिख सद्गुरु भी!
इक्ष्वाकु का उत्स अक्क अक्का ओक्काक यकाक यक्शू से
बुद्ध ने दशरथ जातक में इक्ष्वाकु राम को पूर्वज स्वीकारा
बुद्ध शाक्यगण प्रमुख शुद्धोधन के पुत्र इक्ष्वाकु क्षत्रिय थे
बुद्ध के पूर्वज ओक्कामुख, करकंड, हस्तिनक, सिनिसूर को
बहनों संग देशनिकाला मिला जो ओक्काक इक्ष्वाकु पुत्र थे!
कालांतर में चारों भाइयों ने सगी बहनों से शादियाँ कर लीं
इक्ष्वाकु बुद्ध जैन तीर्थंकरों में थी बहन से विवाह की रीति
दशरथ जातक में राम धर्मपत्नी सीता कही गई बहन सगी
तीर्थंकर ऋषभदेव पार्श्वनाथ महावीर की शादियाँ भी ऐसी ही
इक्ष्वाकुवंशी थे जनक विदेह, बुद्ध शाक्य, महावीर लिच्छवि!
चौबीस जैन तीर्थंकरों में बाईस थे इक्ष्वाकुवंशी कश्यप गोत्री
प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभ थे स्वायंभुव मनु प्रपौत्र नाभि पुत्र
उनका लांक्षण वृषभ था वे सिंधुघाटी सभ्यता के प्रवर्तक भी
बाईसवें तीर्थंकर थे चंद्रकुल यदुवंशी कृष्ण भ्राता अरिष्टनेमि
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे इक्ष्वाकुवंशी उर्ग नाग जनजाति!
ऋषभदेव के समय ना कोई वर्ण, ना कोई गोत्र, ना कोई जाति
तब युगल संतति होती थी, जो मृत्युपूर्व युगल संतति जनती
एकबार युगल संतति में पुत्र की मृत्यु हो गई ऐसी किंवदन्ती
तब जीवित पुत्री को नाभि ने गोद ले ऋषभ से करा दी शादी
इससे ज्ञात होता नागों में बहन से विवाह करने की प्रथा थी!
ऐसी ही दूसरी किंवदन्ती बालक ऋषभ ने देख इंद्र का इक्षु दंड
उसे पाने की इच्छा की, इंद्र ने ईख-इक्षु दंड दे कहा उसे इक्ष्वाकु
ऐसे ही ऋषभदेव बने इक्ष्वाकुवंशी आदित्य इंद्र सा कश्यप गोत्री
आदित्य देव माता अदिति और नाग माता कद्रू के कश्यप पति
अस्तु आदित्य सूर्यवंशी आर्य क्षत्रिय व नाग खत्तीय थे सम्बंधी!
ज्योति प्रसाद जैन ने लिखा अयोध्या के नाभिसुत ऋषभदेव ने
पाषाणकालीन प्रकृत्याश्रित असभ्य युग का करके अंत कर्माश्रित
ज्ञान विज्ञान आधारित कर्म प्रधान श्रमण सभ्यता की विकसित
ऋषभ पुत्र भरत से बना भारतवर्ष, भरत पुत्र अर्ककीर्ति से चला
सूर्यवंश और उनके भतीजे सोमयश से चंद्रवंश ये जैन जनश्रुति!
ऋषभदेव संतति द्रविड़ से सिन्धु सभ्यता व द्रविड़ संस्कृति चली
सत्ताईस सौ ई पू से सोलह सौ ई पू में हडप्पा नगर सभ्यता थी
सोलह सौ ई पू से एक हज़ार ई पू में आर्यों की वैदिक संस्कृति
एक हज़ार ई पू से पाँच सौ ई पू तक वैदिक आर्य सत्ता ह्रास हुई
पाँच सौ ई पू से पाँच सौ ईसवी तक श्रमण सभ्यता फली फूली!
पितृसत्तात्मक आर्य वैदिक धर्म के पूर्व देश में था जैन बौद्ध धर्म,
सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माता थे मातृसत्तात्मक नाग द्रविड़ जन,
सातवें वैवस्वत मनु थे सूर्यपुत्र पितृसत्तात्मक वैदिक धर्म संस्थापक
वैवस्वत मनु पुत्र इक्ष्वाकु और पुत्री इला संतति बनी आर्य क्षत्रिय
जो कहलाते सूर्य-चंदवंशी क्षत्रिय जिससे नागों का रिश्ता है दैहिक!
ऋषभदेव ने संतति को ज्ञान दिया असि मसि कृषि ब्राह्मी लिपि
ऋषभदेव से महावीर व बुद्ध तक थे सब कृषक व श्रमण जाति
शाक्य शुद्धोधन हल चलाते थे, आज भी उगाते सब्ज़ी ये काछी
लिच्छवि चरवाहे, कोलिय बुनकर, विदेह जनक चलाते थे बैलगाड़ी,
तक्षक टाक क्षत्रिय थे आज टेक्सटाइल रंगरेज़ छीपा रजक जाति!
नाग भारत का प्राचीन मूल निवासी, नागों से नगर सभ्यता चली
नाग ही थे मोहनजोदड़ो हडप्पा सिन्धुघाटी के नागरिक नगरवासी
नाग से बसे नागौर नागपुर छोटानागपुर अनंतनाग वैरीनाग आदि
नागअंशी थे राम अनुज लक्ष्मण, कृष्ण अग्रज बलराम, माता कुन्ती
नागराज कन्या थी हिडिम्बा-उलूपी चित्रांगदा भीम-अर्जुन की पत्नी!
हिडिम्बा नागालैण्ड की नागा थी जो मातृदेवी के रूप में पूजी जाती
नागालैण्ड की राजधानी डीमापुर हिडिम्बा नाम से जो डीमासा जाति
हिडिम्बा पौत्र बर्बरीक को खाटू श्याम मान पूजते नागवंशी मारवाड़ी
उलूपी थी कद्रू-कश्यप वंशी कौरव्य नाग कन्या तांखुल टाककुल की
कृष्ण भार्या रुक्मिणी अरुणाचल की मैतेई जो गोप विष्णुप्रिया बनी!
प्रागैतिहासिक ऐतिहासिक युग में पूरे भारतवर्ष में नाग थे शासक
उत्तर में अहिवृत्र अश्वसेन कर्कोटक भद्रवाह नागपाल, पंजाब में तक्ष
टक तक्षक, राजस्थान में मार मेर मीणा, इन्द्रप्रस्थ मथुरा में यादव
काशी में ब्रह्मदत्त, मगध में हर्यक शिशुनाग नंद मौर्य सातवाहन कण्व
एरण विदिशा कांतिपुर पद्मावती उर्गपुर में नाग महार भोज आंध्र!
ताम्रयुग बाद लौहयुग में कारीगरी बढ़ी वस्त्र उद्योग में हुआ वृद्धि
अंधक, मद्र, मालव, वाह्लिक/तक्षक, कोलिय जन ने संघी सत्ता जमा ली
मगध मौर्य, एरण-विदिशा नाग, पद्मावती भारशिव, पैठन सातवाहन की
पातालपुरी के टाकवंश से मौर्य राजवंश व चित्तौड़ परमार शाखा चली
महाराष्ट्र के महार महारट्ठ मराठा कुर्मी जाति सातवाहनों से जन्मी!
महार पहले राज शक्ति थी अब हर राज्य में अलग जाति स्थिति
अंबेडकर महार थे चमार जैसे क्षुब्ध हो हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध बने
शिवाजी भी महाराष्ट्र के महार महारट्ठे मराठे जाधव कुर्मी जाति
औरंगज़ेब के छक्के छुड़ा दिए छत्रपति हिन्दू हृदय सम्राट बन गए
फिर भी ब्राह्मणों ने क्षत्रिय नहीं समझा पैर से राज्याभिषेक किए!
तक्षक टक टाक राजा, टका टकसाल टेक्सटाइल वाले ये धोबी रजक
बुद्ध काल में तक्षक रजक कहलाने लगे, जो रंगरेज़ थे वस्त्र रंजक
बघेलखंड विंध्य का शासक वाकाटक, कश्मीर का कर्कोटक भी टक
मार महार से महाराष्ट्र राज्य, मेर म्हेर से मेरुदेश, म्हेरवारी मारवाड़ी
भारशिव राजा अब हुए भर राजभर दलित, महारट्ठे रट्ठे से रेड्डी!
अहि का अर्थ नाग अहि से निकली अहिर अहिरवार आभीर जाति
ऋग्वेद में भी अहिवृत्र वृत्र वृत्रसर्प वृत्रासुर कहलाते नाग देवता अहि
इंद्र ने यदु द्रह्यु तुर्वसु अनु पुरु जन को हराया जहाँ परुष्णी रावी
ऋग्वेदी इंद्र ने असुमति यमुना तट में कृष्णासुर की सेना काट दी
कृष्णासुर की पत्नी का गर्भ दलनकर व्रज में घनघोर वृष्टि की थी!
(ऋग्वेद 8-96/13 से 15, 1-100/1)
ऋग्वेदियों ने कृष्ण को असुर कहा क्योंकि वे जैनमुनि महायोगी थे
महाभारत युद्ध नौ सौ पचास ईसापूर्व कृष्ण भ्राता जैन तीर्थंकर थे
चौबीस तीर्थंकर में बाईस इक्ष्वाकु थे जबकि अरिष्टनेमि यदुवंशी थे
कृष्ण और बलराम दोनों भाई जैनी अहिंसक महाभारत नहीं लड़े थे
यद्यपि कृष्ण को नारायणी सेना थी पर वे रणछोड़ निहत्थे खड़े थे!
कृष्ण बलभद्र आदि जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की युद्धनीति रखवाले थे
मामा की सेना नहीं, चाणुर मुष्टिक कंस को मल्लयुद्ध में पछाड़े थे
सेना छोड़ रणछोड़ ने द्वन्द्व युद्ध नीति से जाँघ जरासंध के फाड़े थे
शिशुपाल की सौ गालियाँ सही, अकेले दमघोष कपूत के दम निकाले थे
असैन्य युद्ध से पूतना बर्बरीकादि राक्षस मारे, ख़ुद सोए मरे व्याधे से!
सारे जैन तीर्थंकर मातृसत्तात्मक असुर नाग द्रविड़ परंपरा में जन्मे थे
जैन तीर्थंकरों में प्रसिद्ध ऋषभदेव अरिष्टनेमि पार्श्वनाथ व महावीर थे
अरिष्टनेमि व मुनिसुव्रत छोड़ बाईस तीर्थंकर जैनमुनि कश्यप गोत्रज थे
जबकि अरिष्टनेमि अत्रि गोत्रज चंद्रकुल बुद्ध-इला पुत्र पुरुरवा यादव थे
यदुवंश पितृसत्तात्मक चंद्रकुल के, नाग से घुले मिले वर्णाश्रमी क्षत्रिय थे!
यदुवंश की हैहय शाखा से चक्रवर्ती सहस्रार्जुन की कलचुरी कलसुरी जाति
सहस्रार्जुन पुत्र शूर से शौरि सुरी सुढ़ी, वृष्णि से वार्ष्णेय वियाहुत सोमवंशी,
यदुवंशी हैहय क्षत्रिय और भृगुवंशी ब्राह्मण में इक्कीस बार लड़ाइयाँ चली
यदुवंशी हैहय व सूर्यवंशी शर्याति क्षत्रिय टूटा खत्री वेदी सोढ़ी जाति बनी
अहलूवालिए कलाल कलवार शौण्डिक शिवहरे जाट सेन कायस्थ चंद्रसेनी!
कृष्ण हैहय यादव वृष्णि माधव अंधक सबके प्रतिनिधि सहिष्णु विष्णु थे
वे अहिर आभीर गोप गुप्त ग्वाल दमघोषी कुकरेजा जडेजा तनेजा भाटी के
कृष्ण वैदिक नहीं वेदांती थे गीता उपनिषद ज्ञानी जैन योगी भारत माटी के
कृष्ण ने नाग परंपरानुसार बहन सुभद्रा की शादी करा दी बुआ पुत्र पार्थ से
ऐसी शादी वर्जित की धमकी दी तब वियाहुत में बलभद्र मनावन प्रथा चली!
बलभद्र महाबली थे सोम सुरापायी सोमवंशी शौरि वृष्णि माधव गणप्रमुख थे
कंधे में हल लिए चलते, नहीं किसी को छलते, प्रण के पक्के निश्छल अच्छे थे,
फुफेरे-ममेरी भाई-बहन पार्थ-सुभद्रा प्रणय बाद सगोत्र-बान विवाह निषेध किए
चंद्र बुध पुरुरवा आयु नहुष ययाति यदु सहस्त्रजित हैहय कार्तवीर्य अर्जुन के
पुत्र जयध्वज मधुध्वज शूर शूरसेन वृषसेन परशुराम के प्रहार से बच निकले!
जयध्वज पुत्र तालजंघ से वीतिहोत्र भोज अवंति सुजात शौण्डिकेय वंश चले
बलभद्र ने शूर शौरि सूरी सुरी, शूरसेन शूरसेनी सैनी, वृषसेन वृष्णि वार्ष्णेय
वृष्णियाहूत वियाहुत, मधुध्वज माधव, जयध्वज जयसवाल, तुण्डीकेर शौण्डिकेय
शौण्डिक शुंडी शोण्डी सौंधी संधू, तालजंघ तलबड़े पुरुरवा पूर्वे, अत्रि आत्रेय को
सगोत्र और बान छोड़कर विवाह का आदेश दिए जो वियाहुतवंशी वो मानते!
यदुवंश एक महावंश है जिसमें सिर्फ़ गोपालक गोप ग्वाल गड़ेरी शामिल नहीं
यदुवंश में अलग अलग व्यवसाय से जुड़ी अनेक जाति उपजाति उपाधि होती
जैसे कंस वंश कुकुर से कुकरेजा, शिशुपाल पिता दमघोष के वारिस गोप घोषी
राजनीतिक लाभ के लिए एक पेशा की कुछ उपजातियाँ एक उपाधि रख लेती
जिससे विवाह हेतु यदुवंश के भिन्न गोत्र बान जाति उपाधि चिह्नित नहीं होती!
क्षुद्र स्वार्थ के लिए गोत्र उपाधि विलोपित कर एक उपाधि धारण से भला नहीं
इस दुर्भिसंधी से एक ख़ून के ख़ानदान में शादी होने से अनुवांशिक बीमारी होगी
सामाजिक बुराई ये कि अल्पसंख्यक जातियों स्वजाति विवाह से एक सा दुर्गुणी
जातिवादी एकता से दूसरी जातियों के प्रति हिंसा द्वेष घृणा व दुर्भावना फैलेगी
सामाजिक सौहार्द हेतु ऊँच-नीच जातिवाद त्याग बनाएँ विजातीय सगे सम्बन्धी!
–-विनय कुमार विनायक
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