ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
विनय कुमार ’विनायक’
ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ
सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
पराई ख़ामियाँ दिख जातीं
दूसरों की ख़ूबियाँ नज़र नहीं आतीं!
ख़ुद की ख़ूबियाँ दिखती रहतीं
ख़ुद की ख़ामियाँ नज़रअंदाज़ हो जातीं!
हर कोई एक दूसरे की
झूठी प्रशंसा करके रिश्तेदारी निभाता
सच में कोई किसी की ख़ामियाँ बताकर
किसी को अपना शत्रु नहीं बनाना चाहता!
हे मानव! ऐसे में ‘मनुर्भवः’ मनुष्य बनो
हे मानव! अनवरत मन ही मन मनन करो
‘आत्मानाम विजानीहि’ अपने आप को जानो
पहचानो आत्मज्ञानी बनो जीव मात्र से प्रेम करो!
तुम्हें प्रिय है जो भी वस्तु और ख़ुशियाँ
वही वस्तु और ख़ुशियाँ सब जीव जंतु को बाँटो
तुम्हें अप्रिय जो कुछ भी उसे दूसरे को मत दो!
तुम्हें चाहिए धन वैभव पद प्रतिष्ठा आत्म सुख
दूसरों के लिए धन वैभव पद प्रतिष्ठा की कामना करो
सुख बाँटो कभी किसी को दुख नहीं दो गाली मत डाँटो!
नहीं किसी का हक़ मारो, नहीं किसी का एहसान लो
माता पिता हैं स्वाभाविक दाता उनके दिए ग्रहण करो
क़ुदरत ने आवश्यकतानुसार जगत में सबकुछ परोसा
अपने शुभकर्म व श्रम से वांछित फल हासिल कर लो!
अवैध अनाधिकार किसी का अर्जित धन नहीं लेना,
वर्ना कर्मफल सिद्धांत से लेना का पड़ जाएगा देना,
इच्छा वासना कामना वश जीव जंतु को आना जाना,
एक जन्म का लेन-देन दूसरे जन्म में पड़ता चुकाना,
अस्तु ऐसा कोई काम न कर जिससे पड़ जाए रोना!
ऐसा कोई धर्म नहीं जो कहता जीवों को दुख पहुँचाना,
ऐसी कोई संस्कृति नहीं जिसमें चलन हो गला रेतना,
मानव मन से निर्धारित करता विधि-विधान मनमाना,
जिस विधि से किसी जीव को मनुज क्षति पहुँचाएगा,
उसी विधि से वो जीव फिर से बदला चुकाने आएगा!
पुत्र-पुत्री, वधू-जमाई, बहन-भाई स्वाभाविक लेनदार होते,
पिछले जन्म के लेन-देन के लिए सम्बन्धी बनके आते,
कुछ रिश्ते ऐसे भी जिसे पूर्व जन्म में हमने सताए होते,
जब तक लेन-देन चुकता नहीं होता तब तक ये नहीं जाते!
कर्मफल सिद्धांत का नियंत्रण सिर्फ़ मानव कर सकता,
मानव अपनी ख़ूबियाँ विकसित कर ख़ामियाँ मिटा कर,
सिर्फ़ सत्कर्म करे न किसी को डराए न किसी को मारे,
बुद्ध व महावीर की तरह बन जाओ हर्ष विषाद से परे!
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