आज हर जगह संकट में क्यों जी रहा है आदमी?
विनय कुमार ’विनायक’
क्योंकि सच्चाई स्वीकार नहीं कर पा रहा है आदमी!
सच्चाई ये है कि धर्म मत पंथ अच्छा होता स्वदेशी
विदेशी मज़हब कराता है धार्मिक ग़ुलामी विदेश की!
आज मज़हब के नाम ज़हर क्यों पी रहा है आदमी?
क्योंकि मज़हबी बुराई स्वीकार नहीं रहा है आदमी!
जिस देश में जिस धर्म मत मज़हब का होता आरंभ
वहाँ उस धर्म मज़हब के अनुयायी में होता नहीं दंभ!
अबके अरबी शेख़ को देख, वो नहीं हैं उतने उन्मादी
जितने पाकिस्तानी बांग्लादेशी होते जिहादी फ़सादी!
जिस देश ने विदेशी मज़हब को अंगीकार कर लिया
वहाँ देश के अनुकूल विदेशी मज़हब में सुधार किया!
देखो इंडोनेशिया को जो सनातनी से इस्लामी हुआ
मगर अपनी संस्कृति और वल्दियत से प्यार किया!
जब दिखावे की फ़ितरत ही मौत का कारण हो रही
तब ऐसे दिखावे नोचकर फेंक दो तब बचेगी ज़िन्दगी!
बारंबार ईश्वर अल्लाह पुकारने से सुधरे नहीं स्थिति
तब छोड़ो उनसे उम्मीद, करो क़लम दवात की बंदगी
अगर दाढ़ी मूँछ की नाईगिरी से हिन्दू मुसलमां होता
तो ऐसी करतूत को छोड़ देने से ही जीयेगा आदमी!
अगर बुरका ओढ़ के भारत की सीता सलमा हो जाती
तो नारी उत्थान हेतु छोड़ दो विदेशी पहचान को भी!
जबसे धर्मांतरितों की पहचान खतना व बपतिस्मा हुई
तबसे भारतीयता में एकता की भावना कम होती गई!
आज पुजारी के अलावे हिन्दुओं ने छोड़ दिए उपनयन
पर सनातनी अनुयायियों का हिन्दुत्व हुआ नहीं है कम!
हिन्दू से धर्मांतरित मुस्लिम ईसाई छोड़ दें वैसे रिवाज़
जो पालना उसे ज़रूरी, जो बने पादरी या पढ़ाए नमाज़!
कोई कब तक मौज करेगा फ़सादियों की फ़ौज सजा के?
कोई कब तक डराए मज़हब की बुराइयों को ख़ौफ़ बनाके?
एक दिन हर देश धर्म मज़हब में समाज सुधारक आते
जो तर्क ज्ञान विज्ञान शिक्षण से देश को जन्नत बनाते!
कभी सनातन वैदिक धर्म में आवश्यक था जनेऊ धारण
ब्राह्मण आठ क्षत्रिय ग्यारह वैश्य का बारह वर्ष में उपनयन!
बग़ैर उपनयन कोई वर्ण कर सकता नहीं था विद्याध्ययन
ऐसे में ब्राह्मण से क्षत्रिय वैश्य का विलंब से होता शिक्षारंभ!
गुरु नानक देव ने ये भेदपरक उपनयन संस्कार छोड़ दिया
गुरु गोविंदसिंह ने पंचककार से मंडितकर सबको जोड़ दिया!
सनातन धर्म चिरंतन, मगर रीति रिवाज़ में होते परिवर्तन,
फिर भी हिन्दू जैन बौद्ध सिख अनुयायी में होते अपनापन!
जब चारों वेद की शिक्षा थी उदरोपयोगी सिर्फ़ ब्राह्मणों की
तब वेद रटाई जाती थी ब्राह्मणों को, शूद्रों के लिए मनाही,
आज धर्मांतरित मुस्लिम बच्चों की क़ुरान रटने की नियति
जैसे वैदिक शिक्षा निरुपयोगी वैसे मदरसा शिक्षा अनुपयोगी!
वामदेव व लड़ झगड़ क्षत्रिय से ब्राह्मण बने विश्वामित्र की
स्थिति बिगड़ गई कुत्ते का मांस खाने की नौबत आन पड़ी!
क्षत्रिय वैश्य शूद्र की उपयोगी वृत्ति चल पड़ी गोपालन कृषि
अब द्विवेदी त्रिवेदी चतुर्वेदी वेद रटते नहीं बदली रोज़ी-रोटी!
समझ लो अपरिवर्तनीय कट्टर मज़हब से होती नहीं भलाई
कब समझोगे कि विदेशी अरब ईरान होगा नहीं अपना भाई!
जिन क्रूर कसाई लुटेरे ने लूटा कूटा तेरे पूर्वज माँ बहन को
उस बर्बर बलात्कारी को आदर्श मान बैठे, ये समझ ना आई!
जबतक ईश्वर अल्लाह ख़ुदा रब को जुदा-जुदा कहेगा आदमी
तबतक दंगा-फ़साद में मर जाने से नहीं बच पाएगा आदमी!
यदि आर्थिक शिक्षा छोड़कर सिर्फ़ पूजा नमाज़ करेगा आदमी
तब जाहिल बनकर आपस में ही लड़ेगा भूखों मरेगा आदमी!
अगर तुम आदमियत को ज़िन्दा बचाने की सोच रखते हो
तो मिलजुल कर रहो, भिन्न वेशभूषा रहन-सहन छोड़ दो!
जो मनुज-मनुज में भेदभाव करे वैसी दर्जीगिरी भी क्या?
मानव बनना है तो ज़रूरत दिखावा रहित मानवता दिखा!
यदि मानवता को बचाने के लिए सोच विचार करना हो
तो मासूमियत भरे चेहरे पर पाशविकता उगाना छोड़ दो!
गर धर्म मज़हब को आदमी के लिए लाभकारी बनाना हो
तो शिक्षित व परिवर्तनकामी बनो अंधेरगर्दी को छोड़ दो!