राक्षस

01-11-2020

राक्षस

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

दो बच्चों की माँ वत्सला ने उस समाचार को पढ़ा तो उसका मन घृणा और क्षोभ से भर उठा। "राक्षस," वह बुदबुदायी। यूँ ऐसे समाचार तो अब आये दिन आते रहते हैं और इन पर सीरियल बनाकर कुछ चैनल अच्छा-ख़ासा पैसा बना रहे हैं। ऐसे सभी ख़बरिया चैनलों के एंकर तो यही कहते हैं कि वे इन यौन अपराध कथाओं को जनता के सामने लाकर उसे सावधान करते हैं। ख़ैर, आज जो समाचार छपा था उसके अनुसार मामा ने भा~णजी को अपनी पाशविक वासना का शिकार बनाया था।

दरअसल, वत्सला को तो आज इस समाचार ने वर्षों पुरानी याद दिला दी। वह तब तेरह वर्ष की थी और एक विवाह समारोह में अपने माता-पिता और छोटे भाई के साथ ननिहाल गयी हुई थी। विवाह समारोह के दिन उसकी माँ का एक मुँह बोला भाई उसका हाथ देखने के बहाने उसे ऊपर उस कमरे में ले गया था जहाँ विवाह के लिए खाने-पीने का सामान रखा हुआ था। पहले तो वह  वत्सला के हाथ की लकीरों को लेकर कुछ बेफजूल की बातें बोलता रहा लेकिन कुछ ही देर बाद वह 'तुम बहुत ही ख़ूबसूरत हो' कहकर उसका हाथ सहलाने लगा। किंकर्तव्यविमूढ़ वत्सला अभी कुछ कहने वाली थी कि तभी विवाह में आया हलवाई वहाँ कुछ सामान लेने आ पहुँचा। वत्सला आनन-फानन में हाथ छुड़ा कर वहाँ से चलती बनी। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी वत्सला उस घटना को न भूल पाई थी लेकिन न जाने वह संस्कारों का कौन सा पक्ष है जिसकी वज़ह से उसने आज तक यह बात किसी को भी नहीं बताई है।  

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