वह मेरा क़रीबी है । वह पिछले कुछ वर्षों में देश के एक राजनैतिक दल में अपनी गहरी पैठ बना चुका है। मुझे अफ़सोस है कि पोस्टर चिपकाने, नारे लगाने और अपनी पार्टी के नेताओं के गुणगान करने के अलावा उसे अन्य किसी भी बात की कोई ख़ास समझ नहीं है और न वह इसके लिए कभी प्रयास करता है।
ख़ैर, कल मुझे फ़ेसबुक पर उसकी एक पोस्ट नजर आई। उसने लिखा था: “एकात्म मानववाद के प्रणेता को सादर नमन!” यूँ उसने इसके बाद भी बहुत कुछ लिखा था। लेकिन मेरी जिज्ञासा तो सिर्फ "एकात्म मानववाद" के अर्थ को समझने की थी।
मैंने उसे फोन मिलाया और पूछा, “समय हो तो मैं तुम्हारे से एकात्म मानववाद का अर्थ समझना चाहूँगा।”
वह उधर से हँसते हुए बोला, “अर्थ-वर्थ तो मुझे मालूम नहीं। पार्टी के आईटी सेल से जो मज़मून मिलता है, हम तो बस उसे कॉपी कर पेस्ट कर देते हैं।”
प्रिय सुमन जी,आभार और धन्यवाद ! स्नेह बना रहे, यही कामना है। हार्दिक शुभकामनाएँ। - सुभाष चंद्र लखेड़ा