भाँड

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 189, सितम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

वह अपने पिता जी की  वीर रस की कविताओं को सुनते हुए बड़ा हुआ था। उनकी लिखी कई पंक्तियाँ या यूँ कहें कि कई  कविताये तो उसे ज़बानी याद थीं। "अपनी जान लुटा देंगे, हम लाखों शीश चढ़ा देंगे; ये भारत माँ तेरे ख़ातिर, हम दुश्मन का लहू बहा देंगे।" जैसी पंक्तियाँ तो वह अक़्सर गुनगुनाता रहता था। 

ख़ैर, जब वह  बड़ा हुआ तो उसे लगा कि उसे फ़ौज में जाना चाहिए। एक दिन जब उसने अपने मन की बात अपने पिता जी  को बताई तो मंचों  पर अपने देश भक्ति के गीतों के लिए वाह-वाही लूटने वाले उसके पिता जी बोले, " बेवकूफ़, मैंने तुझे पब्लिक स्कूल में इसलिए थोड़े पढ़ाया कि तू पीठ पर  पिट्ठू और कंधे पर राइफ़ल लेकर हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों, राजस्थान के रेगिस्तान और नॉर्थ ईस्ट के घने जंगलों में घूमता रहे। याद रख तुझे तो ’आई ए एस’ बनना है।"

बहरहाल, उस दिन जब  वह घर से बाहर निकला तो उसे न जाने क्यों महसूस हो रहा था कि वह एक भाँड का बेटा है। 

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