प्रिय मित्रो,
आप सभी को बीते विश्व हिन्दी दिवस की और गणतन्त्र दिवस की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँ।
साहित्य कुञ्ज की निर्धारित नीति के अनुसार हम राजनैतिक गतिविधियों, घटनाक्रम और टिप्पणियों से दूर रहते हैं; क्योंकि साहित्य कुञ्ज एक साहित्यिक पोर्टल है। परन्तु कई बार आसपास कुछ ऐसा घट जाता है कि आप कुछ कहे बिना नहीं रह पाते क्योंकि हम सभी की एक निजी विचारधारा होती है जो सामाजिक या आप पर आरोपित घटनाक्रम से उद्वेलित हो जाती है। ऐसा ही गत शनिवार यानी 11 जनवरी को हुआ। पूरा घटनाक्रम इस बार के सम्पादकीय में लिख रहा हूँ और आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा भी करता हूँ।
हर वर्ष की तरह टोरोंटो (कैनेडा) के भारतीय कौंसलावास ने विश्व हिन्दी दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया। पहले यह 10 जनवरी, शुक्रवार को कौंसलावास के सभागार में होना तय था। यह केवल साहित्यिक, हिन्दी को समर्पित कार्यक्रम था। टोरोंटो बृहत क्षेत्र की सभी साहित्यिक संस्थाओं की मीटिंग कौंसलावास में हुई और कार्यक्रम की मौलिक रूप-रेखा तय हुई और हिन्दी राइटर्स गिल्ड को बच्चों की प्रतियोगिता आयोजित करने का दायित्व दिया गया। तय हुआ गिल्ड के दस कवि काव्य पाठ करेंगे। हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की सबसे अधिक सक्रिय और सबसे बड़ी हिन्दी साहित्यिक संस्था है। हर वर्ष हिन्दी राइटर्स गिल्ड बड़ी धूमधाम से हिन्दी दिवस और विश्व हिन्दी दिवस के कार्यक्रम आयोजित करती है। और वर्ष में दो बार बच्चों के हिन्दी और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित भी करती है। बच्चों की प्रस्तुतियों की ऑडियो और वीडियो आमन्त्रित की जातीं हैं और कार्यक्रम में उपस्थित सभी बच्चे प्रस्तुति मंच पर देते हैं। जो बच्चे उपस्थित नहीं हो पाते, उनकी वीडियो दिखाई जाती है और ऑडियो सुनाई जाती है। सभी बच्चों को भेंट और सर्टिफ़िकेट दिये जाते हैं और विजेताओं को विशेष पुरस्कार भी। कौंसलावास के कहने पर यह आयोजन, हमारा यानी हिन्दी राइटर्स गिल्ड का था।
भारतीय लोकसभा के अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला के टोरोंटो आने के कारण कौंसलावास ने 11 जनवरी को ’विश्व हिन्दी दिवस’ और ’प्रवासी भारतीय दिवस’ को बड़े स्तर पर मनाने का निर्णय लिया। सभी ने इसका स्वागत किया। टोरोंटो के एक ’हॉलीडे इन’ होटल के दो सभागारों में कार्यक्रम होना था। दोपहर को 2.15 से 2.45 तक रजिस्ट्रेशन होने के पश्चात 3 बजे दीप प्रज्जवलन और राज्यसभा के उपाध्यक्ष श्री हरिवंश नारायण सिंह के संबोधन के बाद 3.15 पर प्रतियोगिता के विजेता बच्चों की मंच पर प्रस्तुतियाँ, उसके बाद उनको पुरस्कार और सभी बच्चों को सर्टिफ़िकेट वितरण, फिर कवि सम्मेलन, प्रतिभागियों को सम्मान-पत्र वितरण और अंत में बैंक्युएट हाल में प्रीति भोज – सीधा सा कार्यक्रम तय था।
उस दिन भारी वर्षा के होते हुए भी मैं दो बजे तक पहुँच गया। हाल में कुर्सियाँ लग रहीं थीं और कोई भी अन्य व्यक्ति उपस्थित नहीं था। ख़ैर दस-पन्द्रह मिनट में कांसुलेट के कुछ लोग पहुँच गए। थोड़ी देर बाद और कांसुलेट के कार्यकर्ता। रजिस्ट्रेशन का मेज़ सज गया, कुर्सियाँ लग गईं और हिन्दी गिल्ड के सभी कवि और कवयित्रियाँ भी पहुँच गए। जब तक संचालक महोदय पहुँचे 2.45 हो चुके थे। उन्हें 2.00 पहुँचना चाहिए था जैसा कि तय हुआ था। तीन बजे श्री हरिवंश नारायण जी को लेकर प्रधान काउंसल श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव भी आ गईं। दीप प्रज्जवलन और श्री हरिवंश नारायण जी के भाषण के समाप्त होते-होते 3.15 हो गए जो कि पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सही था।
आरम्भ में बच्चों द्वारा गायन के पश्चात पहले दो विजेता बच्चों की प्रस्तुतियाँ निर्विघ्न रहीं और तीसरी बच्ची ने सस्वर हनुमान चालिसा का पाठ मंच से आरम्भ किया। कृष्णा जांडे इतना सुंदर शुद्ध उच्चारण कर रही थी कि बड़ी उम्र के लोग विस्मय से देख रहे थे कि कैनेडा में पैदा हुई छोटी बच्ची हम बड़ों से बेहतर हिन्दी में पाठ कर रही है। इतने में संचालक महोदय मुझे बुला कर पीछे ले गए और उन्होंने एक आदमी की ओर इशारा किया और पूछा कि क्या मैं उसे जानता हूँ। व्यक्ति ने अपनी काली टी-शर्ट पर राजनैतिक पोस्टर चिपका रखा था जो सी ए ए और अन्य नीतियों के विरोध का था। संचालक ने जब उसे पोस्टर हटाने के लिए कहा तो उस व्यक्ति ने कहा कि वह एक आम नागरिक के रूप में कवि सम्मेलन में आया है; वो हिन्दी राइटर्स गिल्ड का सदस्य है और मुझे यानी सुमन कुमार घई को जानता है। मैं उससे परिचित नहीं था। मैंने संचालक से कहा कि मेरा इस आदमी से कुछ लेना-देना नहीं है, जो करना है आप कीजिए या कांउसलेट के अधिकारी करें, क्योंकि कार्यक्रम कांसुलेट का है। और मैं अपनी सीट पर लौट आया। कृष्णा का हनुमान चालिसा का पाठ चलता रहा। कुछ क्षणों के बाद पीछे से ऊँचे स्वर में बहस सुनाई दी और उसके तुरन्त बाद लगभग एक दर्जन लोगों द्वारा नारेबाज़ी। अचानक लाल झंडे और पोस्टर भी दिखाई देने लगे। ख़ैर कांसुलेट के सुरक्षा कर्मचारियों ने उन्हें घेर कर हाल से बाहर निकाल कर दरवाज़े बंद कर लिए। बच्ची थोड़ी घबराई पर उसे कहा गया कि बेटा आप पाठ करते रहो। मैं उस बच्ची की सराहना करता हूँ बिना विचलित हुए उसने अपनी प्रस्तुति पूरी की। संचालक महोदय ने कवियों को आमन्त्रित करके कार्यक्रम का अगला चरण आरम्भ कर दिया। पहले दो कवियों की प्रतुति के बाद उन्हें याद आया कि बच्चों को न तो पुरस्कार दिये गये न सर्टिफ़िकेट। कविता रुक गई और हबड़ा-दबड़ी में सर्टिफ़िकेट भी बँटे और बच्चे पुरस्कृत भी हुए।
यह कार्यक्रम का पहला बुरा अनुभव था। जो लोग प्रोटेस्ट कर रहे थे क्या उन्हें यह समझ नहीं थी कि यह कार्यक्रम कोई राजनैतिक कार्यक्रम नहीं है और उससे भी बुरी बात यह थी कि कार्यक्रम के बच्चों के अंश में उन्होंने नारेबाज़ी आरम्भ की। भारत की राजनीति को कैनेडा के मंच पर खींच कर लाना, जिसका कोई भी तर्क समझ से परे है, बेतुका, बचकाना और बुद्धिहीनता का लक्षण है। अगर आप लोगों में जोश इतना ही ठाठें मार रहा है तो भारत में जाकर सड़कों पर उतरो और परिणाम सहो। यहाँ के सामाजिक वातावरण को बिगाड़ने का क्या लाभ?
अब आरम्भ होता है अगला भाग। कवियों के लिए केवल 1.30 घंटे का कार्यक्रम था। कार्यक्रम के संयोजकों और संचालक महोदय ने 40 कवियों और कवयित्रियों को काव्य पाठ के लिए क्यों आमंत्रित किया - यह उनकी तार्किक क्षमता और कार्यक्रम संयोजन कुशलता का परिचायक है। संचालक महोदय की जिन कवियों या कवयित्रियों से जान पहचान थी या जो उनकी संस्था से थे, उनके लिए समय की कोई पाबन्दी नहीं थी। अन्य सभी प्रस्तुतिकर्ताओं को बार-बार कहा जा रहा था कि केवल तीन मिनट लें। जबकि एक घटिया कवयित्री ने पाठ के लिए दस मिनट लिए, एक जनाब तीन कविताएँ पढ़ कर नीचे उतरे और एक अन्य तथाकथित कवि महोदय की कविता इतनी लम्बी थी कि बीच में ही लोगों ने तालियाँ बजानी आरम्भ कर दीं परन्तु वह निर्लिप्त भाव से अपनी कविता पूरी करके ही उतरे। संचालक और संयोजकों को इन हरकतों से कोई परेशानी नहीं हुई। हाल के पिछले हिस्से में चाये, समोसों और स्नैक्स के दौर चल रहे थे। लोग-बाग मेला मना रहे थे, किसी को कवि सम्मेलन से कोई मतलब नहीं था।
हिन्दी राइटर्स गिल्ड के दस लेखकों में से केवल चार को कार्यक्रम में काव्य पाठ करने के लिए मंच बुलाया गया। संचालक महोदय तो अपने लज्जाजनक संचालन की सीमाएँ तो तभी लाँघ गए जब उन्होंने आचार्य संदीप त्यागी जैसे विद्वान उत्कृष्ट कवि को उनकी केवल 51 सेंकड लम्बी कविता के बीच में ही पकड़ कर नीचे उतार दिया। कांसुलेट के अधिकारी सब देख रहे थे, परन्तु उन्होंने संचालक महोदय को नहीं टोका। शायद उन्हें विश्व हिन्दी दिवस की सफलता या असफलता से कुछ लेना-देना नहीं था। उनके काग़ज़ों में विश्व हिन्दी दिवस का कार्यक्रम हो रहा था।
कांसुलेट के अधिकारियों द्वारा इशारा मिलते ही अचानक संचालक महोदय ने कवि सम्मेलन समाप्त होने की घोषणा कर दी। एक-एक करके कवियों/कवयित्रियों को श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव जी के हाथों से सम्मान पत्र बँटने लगे। जिन कवियों/कवयित्रियों को आमंत्रित करने बाद भी काव्य-पाठ का अवसर नहीं दिया गया, उनमें से बहुत ने सम्मान पत्र लेने से इनकार कर दिया। लोग अलग-अलग समूह बना कर कार्यक्रम की निन्दा करने लगे। जब विरोध के स्वर ऊँचे होने लगे तो संचालक महोदय ने मंच से घोषणा की कि जो बचे कवि, कवयित्रियाँ हैं वह एक-एक करके अपनी रचनाएँ पढ़ने के लिए आ जाएँ। लोगों में इतना क्रोध था कि कोई भी मंच पर चढ़ने के लिए तैयार नहीं था। फिर संचालक महोदय ने घोषणा की, “कोई अगर नहीं आ रहा तो मैं ही अपनी रचना सुना देता हूँ।” हाल में व्यंग्यात्मक हँसी बिखरने लगी। इस समय तक क्रोध व्यंग्य बन चुका था। किसी ने बाँह पकड़ कर संचालक महोदय को उनके काव्यपाठ के दौरान ही मंच से नीचे कर दिया। फिर हिन्दी राइटर्स गिल्ड की होनहार कवयित्री पूनम चन्द्रा ’मनु’, जिसका एक काव्य संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुका है, का नाम मंच से सुनाई दिया, तो हँसते हुए, मनु बिना एक पल गँवाए मंच पर पहुँच गईं और उन्होंने कविता सुनाई, जिसे केवल गिल्ड के लोगों ने ही सुना क्योंकि बाक़ी तो नीचे बैंक्युएट हाल में जा रहे थे। गिल्ड के जो कवि रह गए वह हैं, डॉ. जगमोहन सांगा (पिछले वर्ष उन्होंने कैनेडा में एक फ़िल्म का निर्माण किया है), कुलदीप आह्लुवालिया (फ़िल्म अभिनेत्री, हिन्दी और पंजाबी की कवयित्री), अखिल भण्डारी (कबीर सेंटर आर्ट्स एंड कल्चर के उपाध्यक्ष, साहित्य कुञ्ज के ग़ज़ल संपादक, हिन्दी राइटर्स गिल्ड के परामर्श मंडल के निदेशक), विद्याभूषण धर (मंच अभिनेता, कहानी लेखक और कवि), संदीप कुमार सिंह (कवि, मंच अभिनेता, एकल विद्यालय संस्था के निदेशक)।
बाद में बैंक्युएट के दौरान संचालक महोदय हमारी टेबल पर सफल संचलान की वाह-वाह सुनने के आए तो उन्हें कुछ और ही सुनने को मिला। सारी अव्यवस्था और असफलता उन्होंने बिना एक पल गँवाए काउंसुलेट के माथे मढ़ दी। हिन्दी राइटर्स गिल्ड के एक निदेशक ने पूछ ही लिया, “क्या आपने चालीस कवि केवल भीड़ जुटाने के लिए आमंत्रित किए थे? क्योंकि समय गणित कहता है कि डेढ़ घंटे में यह संभव ही नहीं था।”
हैरानी तो यह है कि उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी और कांसुलेट की यही मंशा थी!
अब कौन जाने कौन सच बोल रहा है, किसे मिथ्या दोषी कहा जा रहा है! अगर टोरोंटो कांसुलेट से कोई अधिकारी इस संपादकीय को पढ़ रहा है तो मैं उनसे यही कहना चाहता हूँ कि आप अगर वास्तव में हिन्दी के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो उस संस्था को दायित्व दें जो ऐसे कार्यक्रमों को सार्थक सुचारू रूप से आयोजित कर सकती है। झूठ बोल कर भीड़ जुटाई तो जा सकती है परन्तु काठ की हाँड़ी केवल एक बार ही चढ़ती है।
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प्रथम संपादकीय
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1 Dec 2015