प्रिय मित्रो,
पिछले सप्ताह मैं न्यू जर्सी (यू.एस.ए.) एक सप्ताह के लिए गया था। लगभग हर तीसरे या चौथे महीने अपने बड़े पुत्र, पुत्रवधू और पोते, पोती से मिलने जाता हूँ। मिसिसागा (ओंटेरियो, कैनेडा) से वेस्टफ़ील्ड (न्यू जर्सी) जाने के तीन दो मुख्य रास्ते हैं। पहला मार्ग इंटरस्टेट हाइवे का मार्ग है और दूसरा इंटरस्टेट और ग्रामीण प्रांतर के स्थानी सड़कों का मिला-जुला मार्ग है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इंटरस्टेट हाइवे का मार्ग लम्बा भी है और समय भी अधिक लगता है। दूसरा मार्ग जो मैं लेता हूँ, वह मेरे घर से हाइवे से होता हुआ यू.एस.ए. की सीमा में प्रवेश करने के बाद लगभ तीस किलोमीटर के बाद ग्रामीण क्षेत्र की ओर मुड़ जाता है। लगभग साठ-सत्तर ग्रामीण सड़कों के बाद पुनः इंटरस्टेट हाइवे में मिला देता है। यह मार्ग लगभग एक सौ किलोमीटर छोटा है और यात्रा में भी लगभग चालीस मिनट की बचत होती है। सोने पर सुहागा है की यह मार्ग सुन्दर भी अधिक है। न्यू यॉर्क एक एपलेशन पर्वत शृंखला की छोटी-छोटी पहाड़ियों और घाटियों में छोटे-छोटे गाँवों से गुज़रता मार्ग छोटी, बड़ी नदियों के समानान्तर चलता है। रास्ते के गाँवों में पुराने बाज़ार हैं, पुराने रेस्त्रां और होटल हैं। पहाड़ियों की चोटियों पर पवन चक्कियों से विद्युत उत्पादन होता दीखता है तो किसी गाँव में मक्का के खेत हैं तो कहीं डैरी फ़ार्म हैं। इक्का दुक्का जगह पर घोड़े भी घास चरते दिखाई देते हैं। यानी सफ़र सुहाना है।
इस बार पहली बार जुलाई के प्रथम सप्ताह यानी दो तारीख़ को सफ़र आरम्भ किया था। बफ़लो (न्यू यॉर्क राज्य) के बाद पहले ही गाँव में से गुज़रने वाली सड़क के हरेक बिजली के खम्बे पर यू.एस.ए. के झण्डे को लगा देख कर याद आया कि यह 4 जुलाई को होने वाले यू.एस.ए. के स्वतंत्रता दिवस की तैयारियाँ चल रही हैं। यू.एस.ए. की एक विशेषता यह है कि गाँवों में आमतौर पर लोग अपने घर पर यू.एस.ए. का झण्डा लगाते हैं। इस बार यह भी देखा कि हरेक खंबे पर अभी तक हुए युद्धों के स्थानीय शहीदों के चित्र लगाए हुए थे। और ऐसा पूरे रास्ते के सभी गाँवों में था। एक रोमांच-सा अन्तर्मन में अनुभव हुआ कि इस देश में शहीदों को किस प्रकार याद किया जाता है! प्रत्येक गाँव का बच्चा क्या, व्यस्क क्या तो बूढ़ा क्या—अपने गाँव के उन बेटों को नहीं भूलता जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर किए हैं।
यह स्वाभाविक ही था कि मेरा मन भारत के गाँवों के उन बेटों का सोचने लगा जिन्होंने भारत-माँ की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। क्या उन्हें प्रत्येक सामाजिक अवसर पर इस तरह से पूरा गाँव याद करता है? जब तक मैं भारत में था तब तक तो ऐसा नहीं था। आज का पता नहीं परन्तु एक बात पर आश्चर्य अवश्य होता है कि राजनैतिक दलों ने अपने-अपने स्वतन्त्रता संग्रामियों को अवश्य बाँट लिया है और वह एक दूसरे के शहीदों के बलिदानों को कमतर आँकने में लगे रहते हैं। कुछ राजनैतिक दल तो वर्तमान में सीमा पर हो रहे शहीदों की शहादत और वीरता पर भी प्रश्न चिह्न लगाने से नहीं चूकते। उनके लिए राष्ट्रवादी होना चरित्र का एक दोष है। खेद तो इस बात है कि यह विचार भारतीय नहीं है बल्कि विदेशी शक्तियों द्वारा भारतीय मन-मस्तिष्क में रोपा गया है और निरंतर रोपा जा रहा है। विडम्बना तो यह है कि यू.एस.ए. के प्रेसिडेंट ‘अमेरिका फ़र्स्ट’(अमेरिका प्रथम) की नीति का खुल कर समर्थन करते हैं परन्तु अगर यही नीति भारत अपनाता है तो वह भारतियों को राष्ट्रवादी कह कर नीचा दिखलाते हैं। मानो राष्ट्रवादी होना एक गुण न होकर एक गाली हो गया—केवल भारतीयों के लिए। भारत के प्रधानमंत्री वसुधैव कुटुम्बकम् की बात कर रह हैं तो यू.एस.ए. का राष्ट्रपति अभी भी प्रत्येक भाषण के बाद कहता है—गॉड ब्लैस अमेरिका यानी परमात्मा अमेरिका को वर दे/आशीर्वाद दे! बाक़ी के देश . . .?
अभी भी जो पाठक विदेशी प्रचार से सहमत हैं उनके लिए राष्ट्रवादी की परिभाषा बता रहा हूँ—जो व्यक्ति, संस्था, दल आदि को राष्ट्र की एकता, संपन्नता आदि हितों को सर्वोपरि मानता है और उसे प्रमुखता देता है। राष्ट्रवादी अक्सर अपने राष्ट्र को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं और अन्य देशों या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के ऊपर अपने हितों और लक्ष्यों को प्राथमिकता देते हैं।
आप बताएँ इस परिभाषा के अनुसरण करने में ग़लत क्या है? क्या किसी भी देश के प्रशासन का आचरण ऐसा नहीं होना चाहिए? सभी पश्चिमी देश स्वयं तो ऐसा ही करते हैं। यह अलग बात है कि अगर कोई दूसरा ऐसा करता है तो यह गुण अवगुण हो जाता है। इतना ही नहीं वह अन्य देशों पर फासीवादी होने का आरोप भी लगाने लगते हैं। कुछ स्वदेशी प्रत्येक आयतीत विचार का आँख मूँद कर समर्थन करने लगते हैं।
अब फासीवाद को भी देख लेते हैं। फासीवाद की परिभाषा में और राष्ट्रवादी की परिभाषा में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं, जिन्हें यह पश्चिमी आर्थिक शक्तियाँ भारत का आकलन करते हुए अनदेखा कर देती हैं।
फासीवादी व्यक्ति वह होता है जो फासीवाद का समर्थन करता है—एक ऐसे सरकारी तंत्र का, जिसमें एक तानाशाह नेता द्वारा आमतौर पर विरोध और आलोचना को बलपूर्वक और अक्सर हिंसक रूप से दबाया जाता है, सभी उद्योग और वाणिज्य को नियंत्रित किया जाता है, और अक्सर राष्ट्रवाद और अक्सर जातिवाद को बढ़ावा दिया जाता है।
वास्तव में आप अगर यू.एस.ए. के राष्ट्रपति की शक्तियों की विवेचना करें तो वह एक ‘चयनित तानाशाह’ ही लगता है। वह सभी सेनाओं का कमांडर-इन-चीफ़ होता है। उसके पास वीटो की शक्ति है। वह कुछ क़ानून बिना कांग्रेस के भी लागू कर सकता है। वह किसी भी दोषी को अदालतों द्वारा दंडित करने के बाद भी माफ़ कर सकता है, इत्यादि इत्यादि!
आप चाहे किसी भी राजनीतिक दल के समर्थक हों, सच्चे मन से अपने हृदय पर हाथ रख कर बताएँ उपर्युक्त परिभाषाओं को समझते हुए, भारत में आजकल राष्ट्रवाद की लहर चल रही है या फासीवाद की? उत्तर देने से पहले आपको अपने मन में आरोपित विदेशी अवधारणाओं का खण्डन करना होगा।
—सुमन कुमार घई
4 टिप्पणियाँ
-
आपने अमेरिका या अन्य विकसित देशों के जिस दोगलेपन को रेखांकित किया है, वह आजीवन दुःख का कारण रहा है, मेरे लिए और संभवतः सारे देश के लिए भी। दूसरों को कठघरे में खड़ा करना बहुत आसान है। गोरे जिस तरह से white men's burden के तहत, काले और भूरे लोगों के साथ discrimination करते रहे हैं उसकी तुलना में भारत की जातिप्रथा बहुत मासूम है, लेकिन उसे ऐसा मुद्दा बनाया गया जैसे सबसे ज्यादा वहशी भारतीय सवर्ण रहे हैं। भारतीय जनता के कुछ धड़े और राजनीतिज्ञ अपने को बेहद बुद्धिमान और प्रगतिवादी दिखाने के अहंकार में, जयचंद बने रहे और दुःख इस बात का है कि जनता उनका अनुमोदन और अनुसरण करने में अपने को गौरवान्वित महसूस करती रही और अपने ही देश का विनाश करती रही। एक सुधी पाठक ने गरीबों और गरीबी का मुद्दा उठाया और उसे राष्ट्रीयता के बगल में खड़ा कर दिया। इस तरह के disguised statments देने वालों को अपने दृष्टिकोण पर अथाह विश्वास ही नहीं अहंकार भी है। भारत की सबसे बड़ी विडंबना है गांधी, प्रेमचन्द, निराला और मार्क्सवाद का पैदा किया "गरीब" । इस गरीब को मोहरा बना कर यहां का राजनितिक दुष्कृत्य खूब फूला फला। गरीब को गरीब बनाए रखना यहां फ़ैशन है और गरीब होना यहां status symbol है। एक बात के सभी गवाह हैं कि विभाजन के बाद पंजाबी और बंगाली ही बहुसंख्यक रहे विस्थापितों में। इन्हीं दोनों हिस्सों ने विभाजन की पीड़ा सबके अधिक सही। विस्थापितों की दशा कमोबेश एक सी ही थी। कोई ज़मीन जयजाद लेकर नहीं आया था। सरकार ने इनके रहने के लिए refugee accomodations बनवाए थे। यह भारत के विभिन्न हिस्सों में बने। आज 75 वर्षों बाद पंजाबी, सिंधी आदि विस्थापित कोई भी उन घरों में नहीं रह रहें हैं, सभी ने मेहनत की और अपनी कमाई के ज़रिए बना कर अच्छे आवासों का प्रबन्ध ही नहीं किया बल्कि भारत की अर्थव्यस्था में योगदान दे रहे हैं। जबकि बंगाल में बने refugee accomodations आज भी वही लोग पीढ़ी दर पीढ़ी रहते आ रहे हैं, क्योंकि वहां गरीबी को celebrate किया जाता है। मार्क्सवादी और तृणमूल दोनों ही एक ही नीति अख्तियार किए रहे। एक समय में कलकत्ता भारत के महत्वपूर्णतम शहर में था आज उजड़ कर बीमार हो गया है क्योंकि वहां गरीबों को मुद्दा बना कर चलने वाली सरकार है। यही हालत देश की भी है, गरीब और गरीबी को लेकर गन्दी राजनीति और उन्हें सब्सिडी, अनुदान आदि भीख देकर गरीब बनाए रखा जा रहा है। ये गरीब वास्तव में निकम्मे हैं, जिन्हें मेहनत करनी ही नहीं है, बस अपनी गरीबी दिखा कर समाज और सरकार को emotionally black male करना है और कुछ नेताओं को इनकी आड़ में सत्ता सुख लूटना है। राष्ट्रवादी और परिश्रमी होने से ही देश का उद्धार होगा। सभी विकसित देश यही कर रहे हैं भारत भी इसी राह पर चल कर सशक्त होगा। बेहद विचारणीय संपादकीय के लिए हार्दिक बधाई और धन्यवाद।
-
माननीय संपादक जी, इस अंक का संपादकीय एक अत्यंत हीं जटिल विषय है। राष्ट्रवाद को समझना या परिभाषित करना मेरे लिए एक कठिन काम है। अतः टिप्पणी लिखने में मुझे पुरे बारह दिनों का समय लग गया। आज के विश्व में, "राष्ट्रवाद" और "जनवाद" दो मुख्य विचारधारा है। इसे क्रमशः पूँजीवाद और साम्यवाद के समानांतर भी मान सकते हैं। विश्व के कुछ देशों में राष्ट्रवादी विचारधारा सफल है तो कुछ देशों में जनवादी। राष्ट्रवाद में राष्ट्र के नाम पर व्यक्ति व समाज का शोषण दमन व वंचन संभव है तो दुसरी तरफ जनवाद मे व्यक्ति व समाज के नाम पर राष्ट्र की प्रगति प्रभावित अथवा अवरोधित हो सकती है। भारत में अब तक मिश्रित व्यवस्था के तहद दोनों व्यवस्था का लाभ लेने के लिए संतुलन बनाने का प्रयास जारी था। इसका कितना लाभ या हानि हुआ। कहना राजनीतिक विवाद या पक्षपात के आक्षेप को जन्म दे सकता है। इसलिए सही सही कहा नहीं जा सकता। क्योंकि आज का भारत दो बड़े एवं कट्टर पूर्वाग्रही ध्रुवों में बँटा हुआ है। आगे भारत के लिए कौन सा मार्ग (राष्ट्रवाद, जनवाद, या मिश्रित को ही जारी रखना ) सही होगा यह विशेषज्ञों के फैसले का विषय है। इसलिए भारत के लिए राष्ट्रवाद, अनुकूल है या प्रतिकूल, यह हमारे देश की जनता, चुने हुए कर्णधारों की नीतियाँ , विशेषज्ञों की दूरदर्शिता व आनेवाला समय हीं बतायेगा। मगर इतना तो तय है कि विजयी कोई एक ही होगा। या तो पाँच सौ रुपये लीटर पेट्रोल खरीदने का ताल ठोकने वाला ध्रुव एक दिन सचमुच पाँच सौ रुपये लीटर पेट्रोल खरीदेगा। या फिर महंगाई व बेरोजगारी के विरुद्ध आवाज उठाने वाला ध्रुव एक दिन रोजगार का सृजन व क्रय शक्ति के अनुसार, बेरोजगारी व महंगाई पर नियंत्रण करेगा। फैसला समय व भविष्य के हाथों में है। आग्रिम रूप से कुछ भी कहना वर्तमान भारत के किसी एक ध्रुव को नाराज करने के समान होगा।
-
सुमन जी: सच्चे मन और हृदय से तो यही कहूँगा कि आजकल भारत में राष्ट्रवाद की लहर चलाने की भरपूर कोशिश की जा रही है लेकिन कुछ नेता लोग अपनी ख़ुदगर्ज़ी रोटियाँ सेंकने के लिये इस लहर को बदनाम करने के लिये सब कुछ करने को तैयार बैठे हैं।
-
विचारोत्तेजक संपादकीय। समयानुकूल प्रश्न।
कृपया टिप्पणी दें
सम्पादकीय (पुराने अंक)
- 2025
-
-
मार्च 2025 प्रथम
खेद है! -
मार्च 2025 द्वितीय
-
फरवरी 2025 प्रथम
समय की गति और सापेक्षता का… -
फरवरी 2025 द्वितीय
धोबी का कुत्ता न घर का न… -
जनवरी 2025 प्रथम
और अंतिम संकल्प . . . -
जनवरी 2025 द्वितीय
मनन का एक विषय
-
मार्च 2025 प्रथम
- 2024
-
-
दिसंबर 2024 प्रथम
अपने ही बनाए नियम का उल्लंघन -
दिसंबर 2024 द्वितीय
सबके अपने-अपने ‘सोप बॉक्स’ -
नवम्बर 2024 प्रथम
आप तो पाठक के मुँह से केवल… -
नवम्बर 2024 द्वितीय
आंचलिक सिनेमा में जीवित लोक… -
अक्टूबर 2024 प्रथम
अंग्रेज़ी में अनूदित हिन्दी… -
अक्टूबर 2024 द्वितीय
कृपया मुझे कुछ ज्ञान दें! -
सितम्बर 2024 प्रथम
मैंने कंग फ़ू पांडा फ़िल्म… -
सितम्बर 2024 द्वितीय
मित्रो, अपना तो हर दिवस—हिन्दी… -
अगस्त 2024 प्रथम
गोल-गप्पे, पापड़ी-भल्ला चाट… -
अगस्त 2024 द्वितीय
जिहदी कोठी दाणे, ओहदे कमले… -
जुलाई 2024 प्रथम
बुद्धिजीवियों का असमंजस और… -
जुलाई 2024 द्वितीय
आरोपित विदेशी अवधारणाओं का… -
जून 2024 प्रथम
भाषा में बोली का हस्तक्षेप -
जून 2024 द्वितीय
पुस्तक चर्चा, नस्लीय भेदभाव… -
मई 2024 प्रथम
हींग लगे न फिटकिरी . . . -
मई 2024 द्वितीय
दृष्टिकोणों में मैत्रीपूर्ण… -
अप्रैल 2024 प्रथम
आधुनिक समाज और तकनीकी को… -
अप्रैल 2024 द्वितीय
स्मृतियाँ तो स्मृतियाँ हैं—नॉस्टेलजिया… -
मार्च 2024 प्रथम
दंतुल मुस्कान और नाचती आँखें -
मार्च 2024 द्वितीय
इधर-उधर की -
फरवरी 2024 प्रथम
सनातन संस्कृति की जागृति… -
फरवरी 2024 द्वितीय
त्योहारों को मनाने में समझौते… -
जनवरी 2024 प्रथम
आओ जीवन गीत लिखें -
जनवरी 2024 द्वितीय
श्रीराम इस भू-भाग की आत्मा…
-
दिसंबर 2024 प्रथम
- 2023
-
-
दिसंबर 2023 प्रथम
टीवी सीरियलों में गाली-गलौज… -
दिसंबर 2023 द्वितीय
समीप का इतिहास भी भुला दिया… -
नवम्बर 2023 प्रथम
क्या युद्ध मात्र दर्शन और… -
नवम्बर 2023 द्वितीय
क्या आदर्शवाद मूर्खता का… -
अक्टूबर 2023 प्रथम
दर्पण में मेरा अपना चेहरा -
अक्टूबर 2023 द्वितीय
मुर्गी पहले कि अंडा -
सितम्बर 2023 प्रथम
विदेशों में हिन्दी साहित्य… -
सितम्बर 2023 द्वितीय
जीवन जीने के मूल्य, सिद्धांत… -
अगस्त 2023 प्रथम
संभावना में ही भविष्य निहित… -
अगस्त 2023 द्वितीय
ध्वजारोहण की प्रथा चलती रही -
जुलाई 2023 प्रथम
प्रवासी लेखक और असमंजस के… -
जुलाई 2023 द्वितीय
वास्तविक सावन के गीत जो अनुमानित… -
जून 2023 प्रथम
कृत्रिम मेधा आपको लेखक नहीं… -
जून 2023 द्वितीय
मानव अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता… -
मई 2023 प्रथम
मैं, मेरी पत्नी और पंजाबी… -
मई 2023 द्वितीय
पेड़ की मृत्यु का तर्पण -
अप्रैल 2023 प्रथम
कुछ यहाँ की, कुछ वहाँ की -
अप्रैल 2023 द्वितीय
कवि सम्मेलनों की यह तथाकथित… -
मार्च 2023 प्रथम
गोधूलि की महक को अँग्रेज़ी… -
मार्च 2023 द्वितीय
मेरे पाँच पड़ोसी -
फरवरी 2023 प्रथम
हिन्दी भाषा की भ्रान्तियाँ -
फरवरी 2023 द्वितीय
गुनगुनी धूप और भावों की उष्णता -
जनवरी 2023 प्रथम
आने वाले वर्ष में हमारी छाया… -
जनवरी 2023 द्वितीय
अरुण बर्मन नहीं रहे
-
दिसंबर 2023 प्रथम
- 2022
-
-
दिसंबर 2022 प्रथम
अजनबी से ‘हैव ए मैरी क्रिसमस’… -
दिसंबर 2022 द्वितीय
आने वाले वर्ष से बहुत आशाएँ… -
नवम्बर 2022 प्रथम
हमारी शब्दावली इतनी संकीर्ण… -
नवम्बर 2022 द्वितीय
देशभक्ति साहित्य और पत्रकारिता -
अक्टूबर 2022 प्रथम
भारत में प्रकाशन अभी पाषाण… -
अक्टूबर 2022 द्वितीय
बहस: एक स्वस्थ मानसिकता,… -
सितम्बर 2022 प्रथम
हिन्दी साहित्य का अँग्रेज़ी… -
सितम्बर 2022 द्वितीय
आपके सपनों की भाषा ही जीवित… -
अगस्त 2022 प्रथम
पेड़ कटने का संताप -
अगस्त 2022 द्वितीय
सम्मानित भारत में ही हम सबका… -
जुलाई 2022 प्रथम
अगर विषय मिल जाता तो न जाने… -
जुलाई 2022 द्वितीय
बात शायद दृष्टिकोण की है -
जून 2022 प्रथम
साहित्य और भाषा सुरिक्षित… -
जून 2022 द्वितीय
राजनीति और साहित्य -
मई 2022 प्रथम
कितने समान हैं हम! -
मई 2022 द्वितीय
ऐतिहासिक गद्य लेखन और कल्पना… -
अप्रैल 2022 प्रथम
भारत में एक ईमानदार फ़िल्म… -
अप्रैल 2022 द्वितीय
कितना मासूम होता है बचपन,… -
मार्च 2022 प्रथम
बसंत अब लौट भी आओ -
मार्च 2022 द्वितीय
अजीब था आज का दिन! -
फरवरी 2022 प्रथम
कैनेडा में सर्दी की एक सुबह -
फरवरी 2022 द्वितीय
इंटरनेट पर हिन्दी और आधुनिक… -
जनवरी 2022 प्रथम
नव वर्ष के लिए कुछ संकल्प -
जनवरी 2022 द्वितीय
क्या सभी व्यक्ति लेखक नहीं…
-
दिसंबर 2022 प्रथम
- 2021
-
-
दिसंबर 2021 प्रथम
आवश्यकता है आपकी त्रुटिपूर्ण… -
दिसंबर 2021 द्वितीय
नींव नहीं बदली जाती -
नवम्बर 2021 प्रथम
सांस्कृतिक आलेखों का हिन्दी… -
नवम्बर 2021 द्वितीय
क्या इसकी आवश्यकता है? -
अक्टूबर 2021 प्रथम
धैर्य की कसौटी -
अक्टूबर 2021 द्वितीय
दशहरे और दीवाली की यादें -
सितम्बर 2021 द्वितीय
हिन्दी दिवस पर मेरी चिंताएँ -
अगस्त 2021 प्रथम
विमर्शों की उलझी राहें -
अगस्त 2021 द्वितीय
रचना प्रकाशन के लिए वेबसाइट… -
जुलाई 2021 प्रथम
सामान्य के बदलते स्वरूप -
जुलाई 2021 द्वितीय
लेखक की स्वतन्त्रता -
जून 2021 प्रथम
साहित्य कुञ्ज और कैनेडा के… -
जून 2021 द्वितीय
मानवीय मूल्यों का निकष आपदा… -
मई 2021 प्रथम
शब्दों और भाव-सम्प्रेषण की… -
मई 2021 द्वितीय
साहित्य कुञ्ज की कुछ योजनाएँ -
अप्रैल 2021 प्रथम
कोरोना काल में बन्द दरवाज़ों… -
अप्रैल 2021 द्वितीय
समीक्षक और सम्पादक -
मार्च 2021 प्रथम
आवश्यकता है नई सोच की, आत्मविश्वास… -
मार्च 2021 द्वितीय
अगर जीवन संघर्ष है तो उसका… -
फरवरी 2021 प्रथम
राजनीति और साहित्य का दायित्व -
फरवरी 2021 द्वितीय
फिर वही प्रश्न – हिन्दी साहित्य… -
जनवरी 2021 प्रथम
स्मृतियों की बाढ़ – महाकवि… -
जनवरी 2021 द्वितीय
सम्पादक, लेखक और ’जीनियस’…
-
दिसंबर 2021 प्रथम
- 2020
-
-
दिसंबर 2020 प्रथम
यह वर्ष कभी भी विस्मृत नहीं… -
दिसंबर 2020 द्वितीय
क्षितिज का बिन्दु नहीं प्रातःकाल… -
नवम्बर 2020 प्रथम
शोषित कौन और शोषक कौन? -
नवम्बर 2020 द्वितीय
पाठक की रुचि ही महत्वपूर्ण -
अक्टूबर 2020 प्रथम
साहित्य कुञ्ज का व्हाट्सएप… -
अक्टूबर 2020 द्वितीय
साहित्य का यक्ष प्रश्न –… -
सितम्बर 2020 प्रथम
साहित्य का राजनैतिक दायित्व -
सितम्बर 2020 द्वितीय
केवल अच्छा विचार और अच्छी… -
अगस्त 2020 प्रथम
यह माध्यम असीमित भी और शाश्वत… -
अगस्त 2020 द्वितीय
हिन्दी साहित्य को भविष्य… -
जुलाई 2020 प्रथम
अपनी बात, अपनी भाषा और अपनी… -
जुलाई 2020 द्वितीय
पहले मुर्गी या अण्डा? -
जून 2020 प्रथम
कोरोना का आतंक और स्टॉकहोम… -
जून 2020 द्वितीय
अपनी बात, अपनी भाषा और अपनी… -
मई 2020 प्रथम
लेखक : भाषा का संवाहक, कड़ी… -
मई 2020 द्वितीय
यह बिलबिलाहट और सुनने सुनाने… -
अप्रैल 2020 प्रथम
एक विषम साहित्यिक समस्या… -
अप्रैल 2020 द्वितीय
अजीब परिस्थितियों में जी… -
मार्च 2020 प्रथम
आप सभी शिव हैं, सभी ब्रह्मा… -
मार्च 2020 द्वितीय
हिन्दी साहित्य के शोषित लेखक -
फरवरी 2020 प्रथम
लम्बेअंतराल के बाद मेरा भारत… -
फरवरी 2020 द्वितीय
वर्तमान का राजनैतिक घटनाक्रम… -
जनवरी 2020 प्रथम
सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान -
जनवरी 2020 द्वितीय
काठ की हाँड़ी केवल एक बार…
-
दिसंबर 2020 प्रथम
- 2019
-
-
15 Dec 2019
नए लेखकों का मार्गदर्शन :… -
1 Dec 2019
मेरी जीवन यात्रा : तब से… -
15 Nov 2019
फ़ेसबुक : एक सशक्त माध्यम… -
1 Nov 2019
पतझड़ में वर्षा इतनी निर्मम… -
15 Oct 2019
हिन्दी साहित्य की दशा इतनी… -
1 Oct 2019
बेताल फिर पेड़ पर जा लटका -
15 Sep 2019
भाषण देने वालों को भाषण देने… -
1 Sep 2019
कितना मीठा है यह अहसास -
15 Aug 2019
स्वतंत्रता दिवस की बधाई! -
1 Aug 2019
साहित्य कुञ्ज में ’किशोर… -
15 Jul 2019
कैनेडा में हिन्दी साहित्य… -
1 Jul 2019
भारतेत्तर साहित्य सृजन की… -
15 Jun 2019
भारतेत्तर साहित्य सृजन की… -
1 Jun 2019
हिन्दी भाषा और विदेशी शब्द -
15 May 2019
साहित्य को विमर्शों में उलझाती… -
1 May 2019
एक शब्द – किसी अँचल में प्यार… -
15 Apr 2019
विश्वग्राम और प्रवासी हिन्दी… -
1 Apr 2019
साहित्य कुञ्ज एक बार फिर… -
1 Mar 2019
साहित्य कुञ्ज का आधुनिकीकरण -
1 Feb 2019
हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और… -
1 Jan 2019
चिंता का विषय - सम्मान और…
-
15 Dec 2019
- 2018
-
-
1 Dec 2018
हिन्दी टाईपिंग रोमन या देवनागरी… -
1 Apr 2018
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ… -
1 Jan 2018
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ…
-
1 Dec 2018
- 2017
-
-
1 Oct 2017
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ… -
15 Sep 2017
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ… -
1 Sep 2017
ग़ज़ल लेखन के बारे में -
1 May 2017
मेरी थकान -
1 Apr 2017
आवश्यकता है युवा साहित्य… -
1 Mar 2017
मुख्यधारा से दूर होना वरदान -
15 Feb 2017
नींव के पत्थर -
1 Jan 2017
नव वर्ष की लेखकीय संभावनाएँ,…
-
1 Oct 2017
- 2016
-
-
1 Oct 2016
सपना पूरा हुआ, पुस्तक बाज़ार.कॉम… -
1 Sep 2016
हिन्दी साहित्य, बाज़ारवाद… -
1 Jul 2016
पुस्तकबाज़ार.कॉम आपके लिए -
15 Jun 2016
साहित्य प्रकाशन/प्रसारण के… -
1 Jun 2016
लघुकथा की त्रासदी -
1 Jun 2016
हिन्दी साहित्य सार्वभौमिक? -
1 May 2016
मेरी प्राथमिकतायें -
15 Mar 2016
हिन्दी व्याकरण और विराम चिह्न -
1 Mar 2016
हिन्दी लेखन का स्तर सुधारने… -
15 Feb 2016
अंक प्रकाशन में विलम्ब क्यों… -
1 Feb 2016
भाषा में शिष्टता -
15 Jan 2016
साहित्य का व्यवसाय -
1 Jan 2016
उलझे से विचार
-
1 Oct 2016
- 2015
-
-
1 Dec 2015
साहित्य कुंज को पुनर्जीवत… -
1 Apr 2015
श्रेष्ठ प्रवासी साहित्य का… -
1 Mar 2015
कैनेडा में सप्ताहांत की संस्कृति -
1 Feb 2015
प्रथम संपादकीय
-
1 Dec 2015