01-12-2019

मेरी जीवन यात्रा : तब से अब तक

आज पहली दिसम्बर है यानी वर्ष 2019 का अन्तिम महीना आरम्भ हो रहा है। पलट कर देखता हूँ तो लगता है कि 1 जनवरी 2019 अभी अधिक पीछे नहीं छूटा जब साहित्य कुञ्ज का प्रकाशन फिर से नियमित हुआ था और नई वेबसाइट आप लोगों को समर्पित की थी। समय कब बीत जाता है. . . पता ही नहीं चलता। कभी लगता है कि अभी कल ही कि बात है जब मैंने अपने छोटे बेटे, सुमित से पूछा था कि वेबसाइट कैसे बनती है और उसने हँस कर उत्तर दिया था, “डैड पर आप तो जीवनयापन के लिए कंप्यूटर ठीक करते रहे हो?” और मुझे टाल दिया था। 

हाँ, वह भी समय था. . . शायद कंप्यूटर का पाषाण युग। या कंप्यूटर जगत की वह कठोर आधार शिला, जिस पर आज पूरा जगत टिका है। पीसी की कल्पना भी नहीं की थी शायद उस समय। मेरा कार्यक्षेत्र “मिनीकंप्यूटर” था जो पीसी के आने के बाद सिकुड़ना आरम्भ हो गया था और धीरे-धीरे उसका सूर्यास्त हो गया। मिनी कंप्यूटर, मेन फ़्रेम जितना ही शक्तिमान था पर आकार में छोटा था। अगर मेनफ़ेम कंप्यूटर के लिए एक हाल की आवश्यकता थी तो इसके लिए एक छोटे कमरे की।  उन दिनों एक कंप्यूटर था जो एक सूटकेस की तरह बंद हो जाता था और उसे आप अपने साथ कहीं भी ले जा सकते थे - अगर आप उसे उठा पाते तो। ६५ पाउंड यानी लगभग ३०-३२ किलो का भार था उसका। और स्क्रीन शायद पाँच इंच की रही होगी। जब मैंने बेटे से प्रश्न पूछा था तब मैं पीसी पर बैठा रोमन लिपि में उर्दू की ग़ज़लें पढ़ रहा था। कंप्यूटर फ़ील्ड को छोड़े भी बारह वर्ष बीत चुके थे। उस पीसी की भी, अगर वर्तमान से तुलना करें तो वह अब पाषाण युग का ही लगता है। बेटे ने एक दो वाक्यों में समझा दिया कि होमपेज या इंडेक्स पेज क्या होता है - सोचा होगा कि बाप को शायद समझ न आ सके, पुराने ज़माने का जो ठहरा! उसी क्षण से मेरी आज तक की यात्रा आरम्भ हुई थी शायद 1993 के आसपास।

साहित्य कुञ्ज 2003 में आरम्भ किया था। कई बार अपने आपको सौभाग्यशाली समझता हूँ कि पिछले लगभग सोलह वर्षों में कितने साहित्यिक व्यक्तियों के संपर्क में आया हूँ। कितने लेखकों ने अपने लेखन के आरम्भिक दिनों में, अपना साहित्यिक योगदान साहित्य कुञ्ज को दिया और आज वह कितने प्रतिष्ठित लेखक हो चुके हैं। सोच कर मन में हर्ष की तरंगें उठने लगती हैं। इतना ही नहीं जिन प्रतिष्ठित लेखकों ने साहित्य कुञ्ज के आरम्भिक दिनों में मुझे संबल दिया, आज भी मैं उनके समक्ष मैं उतना ही नतमस्तक हूँ जितना कि उन दिनों था। 

साहित्य कुञ्ज आरम्भ करने से पहले कैनेडा के साहित्य जगत में मेरा प्रवेश हिन्दी साहित्य सभा की आजीवन सदस्यता ग्रहण करने से हुआ था। अगली कड़ी “हिन्दी चेतना” अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका के सह-संपादन की थी।  वर्ष २००८ में हिन्दी राइटर्स गिल्ड की स्थापना अपने साहित्यिक मित्रों के साथ मिलकर की। चार-पाँच वर्ष तक “हिन्दी टाइम्स” नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन भी किया। इस दौरान व्यक्तिगत व्यवसाय, पारिवारिक दायित्वों का वहन करते हुए कब समय निकल गया पता ही नहीं चला। बीच-बीच में साहित्य कुञ्ज को इस व्यस्तता की क़ीमत चुकानी पड़ी। जब तक इसके छूटे छोर सँभालने का होश आया, आँखों की समस्या ने आन घेरा। ख़ैर चार वर्ष तक उसके साथ संघर्ष किया, सब ठीक हो गया तो साहित्य कुञ्ज का प्रकाशन भी ठीक होने लगा।

संयोग कहें य नियति, जीवन में कुछ ऐसे व्यक्ति मिल जाते हैं, जो आपको अगले पड़ाव तक ले जाने की सहायता निःस्वार्थ भाव से करते हैं। इसी तरह मुझे मिले 21GFox सॉफ़्टवेयर कंपनी के मालिक स्टैनले परेरा। वह हिन्दी के लिए कुछ करना चाहते थे तो pustakbazar.com की स्थापना हुई। उनके माध्यम से मैं मिला विपिन कुमार सिंह से। भारत में स्थित प्रोग्रामर विपिन कुमार सिंह अगली कड़ी हैं। इनसे संपर्क पुस्तक बाज़ार के निर्माण के दौरान हुआ था। साहित्य कुञ्ज का नया स्वरूप, जो आप देख रहे हैं वह इन्हीं की कल्पना और संरचना है। अभी भी दिन-प्रतिदिन नए सुझाव देते हैं और उन्हें कार्यान्वित करते हैं। अल्पभाषी, अपने काम के प्रति समर्पित  विपिन साहित्य जगत से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित न होते हुए भी जो सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, वह अतुलनीय हैं। आने वाले वर्ष में आप साहित्य कुञ्ज के नए आयाम देखेंगे जिनके बारे में अभी हम सोच रहे हैं। अगले वर्ष में कुछ अन्य साथी भी मिलने वाले हैं, जो मेरा संपादन का ्कार्यभार बाँटेंगे क्योंकि जिस दिशा की ओर हम जा रहे हैं, अब साहित्य कुञ्ज केवल अकेले एक आदमी के बस का नहीं रहा है। वो दिन कब के समाप्त हो चुके हैं जब वेबसाइट की प्रोग्रमिंग से ले लेकर संपादन तक मैं अकेला ही करता था।

पिछले दशक से अभी तक एक चिंता निरन्तर बनी रही है वह है हिन्दी साहित्य के लेखकों की बढ़ती औसत आयु और पाठकों की गिनती में गिरावट। यह बात मैं इंटरनेट पर प्रकाशित हिन्दी साहित्य के संदर्भ में कह रहा हूँ। जब से साहित्य कुञ्ज का नियमित प्रकाशन पहली जनवरी, २०१९ से आरम्भ हुआ है मैं चिंतित नहीं हूँ। यह बात सच है कि महानगरों में शायद स्कूलों में बच्चे हिन्दी पढ़ना बन्द ही कर चुके हैं परन्तु आशा की किरण मुझे महानगरों से परे छोटे शहरों और गाँवों से आती दिख रही है। भाषा और लेखन के लिए मोबाइल क्रांति वरदान की तरह है। अब हम लोगों का दायित्व है कि हम इन फूटती नई कोंपलों को पोषित कर हिन्दी के लेखकों की एक नई पीढ़ी को प्रकाशन में स्थान दें। इनका मार्गदर्शन करें ताकि यह जीवन के सही मूल्यों के आधार पर अपना साहित्य सृजन करें। जीवन के इस पड़ाव पर मुझे हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल दिखाई दे रहा है।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

सम्पादकीय (पुराने अंक)

2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015