अरुण बर्मन नहीं रहे

प्रिय मित्रो,

बृहत टोरोंटो क्षेत्र के साहित्य जगत को आज सुबह भारी क्षति का समाचार मिला है। कल रात यानी मकर संक्रांति के दिन बर्मन दा का स्वर्गवास हो गया। जिस समय मुझे व्हाट्स ऐप पर समाचार मिला उस समय मैं इस अंक के सम्पादकीय के विषय पर विचार कर रहा था। कुछ क्षणों के लिए सन्न रह गया। अरुण बर्मन कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। काफ़ी समय अस्पताल में रहने के बाद उन्हें दीर्घकालीन देखभाल केन्द्र में भेज दिया गया। पिछले ही सप्ताह हिन्दी राइटर्स गिल्ड की ज़ूम पर जनवरी २१ को होने वाले विश्व हिन्दी दिवस के समारोह के संदर्भ में मीटिंग थीं। आशा बर्मन जी ने बताया था कि यह केन्द्र बहुत साफ़-सुथरा है, स्टाफ़ बहुत अच्छा है, बहुत से भारतीय वहाँ काम कर रहे हैं। वह बर्मन दा की देख-भाल की व्यवस्था से संतुष्ट थीं और आज अचानक ही . . .

विचार शृंखला आगे-से-आगे चल रही थी। अरुण बर्मन जी का हंसमुख चेहरा सामने आ रहा था। उनका बिन्दास कहना “भाई, हिन्दी कविता मेरे ऊपर से ही निकल जाती है” और फिर मुस्कुरा कर आशा जी ओर  इशारा कर देते “अरे यह आती है तो मैं भी चला आता हूँ”। वैसे जब कभी मूड में होते कुछ हिन्दी कविताएँ उन्हें कंठस्थ थीं जिन्हें वह गा कर सुनाते। आशा जी कैनेडा की वरिष्ठ लेखिकाओं में से एक हैं। कैनेडा में हिन्दी साहित्य की नींव रखने वालों में बर्मन दम्पती की बड़ी भूमिका रही है। आज जब विश्व भर में “विश्व हिन्दी दिवस” मनाया जा रहा है और भारत में प्रवासियों के लिए बड़े महोत्सव होते हैं, उन सभी आयोजनों की नींव स्व. अरुण बर्मन जी जैसे निःस्वार्थ हिन्दी-कर्मियों के कंधों पर टिकी है। निःस्वार्थ शब्द का यहाँ बहुत महत्त्व है। हम, लेखकों द्वारा हिन्दी के लिए काम करना, पूर्ण रूप से निःस्वार्थ नहीं है। कहीं न कहीं, स्वार्थ निहित रहता है कि हमारा लिखा लोग पढ़ें, सुनें। परन्तु एक ऐसा व्यक्ति जो न लिखता है न ही सुनता है, वह हिन्दी संस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्दे के पीछे से सहायता कर रहा है, उसे हम वास्तव में निःस्वार्थ कह सकते हैं।

अरुण बर्मन जी विवाह के बाद हिन्दी भाषा बोलना सीखे। कोलकाता में जन्मी-पली आशा बर्मन जी हिन्दी भाषी परिवार से हैं; वास्तव में वह द्विभाषी हैं। अरुण जी “मैटलर्जीकल इंजीनियर” थे। 1970 के दशक के आरम्भिक वर्षों में वह कैनेडा आए। उन दिनों कैनेडा में हिन्दी साहित्य की कोई संस्था नहीं थी। कुछ परिवारों ने मिलकर एक समूह बनाया जो हर सप्ताह किसी एक के घर मिलते। मिल-बैठ कर प्रीति भोज करते और हिन्दी कविता सुनते-सुनाते। उन्हीं परिवारों में एक बर्मन दम्पती थे। इन बारह परिवारों ने व्यवस्थित रूप से मिलकर “हिन्दी साहित्य सभा” की नींव रखी। वर्ष २००० के आरम्भ में मैं इसी संस्था का सदस्य बना और बाद में सचिव बना। एक हिन्दी साहित्यिक परिवार का अंग बन कर अच्छा लगा। इस संस्था के द्वारा ही मैं आशा जी और अरुण बर्मन जी परिचित हुआ था।

जीवन में पहली बार मैं किसी साहित्यिक संस्था का सदस्य बना था। एक ऐसी संस्था जिसमें हिन्दी भाषा, साहित्य के प्रति समर्पण था और एक उत्साह था। अरुण दा इसी संस्था के पर्दे के पीछे काम करने वालों में से थे। बाद में जब हम लोगों ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड की स्थापना की ताकि हम कैनेडा में हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं को एक बड़े स्तर पर भारतीय मूल के लोगों के आगे प्रस्तुत कर सकें, हमें पहले दिन से ही बर्मन दम्पती का सम्पूर्ण सहयोग मिला। किसी भी आयोजन की व्यवस्था के दायित्व को उठाने के लिए बर्मन दा से पूछना नहीं पड़ता था, बल्कि वह स्वयं ही बता देते थे कि ‘मैं यह-यह काम कर लूँगा।’

अरुण बर्मन जी न केवल हिन्दी साहित्य के लिए स्वेच्छा से काम करते थे बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थाओं में भी वह उतना ही सक्रिय थे। हर सप्ताह एक दिन वह “सूप किचन” में स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप लिए समय देते थे। जिन पाठकों नहीं मालूम “सूप किचन” ग़रीबों को निःशुल्क भोजन देने वाली संस्थाओं को कहा जाता है। इसके अतिरिक्त वह “वेदांत सोसाइटी” में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। 

कहने को तो बहुत कुछ है, शब्द नहीं मिल रहे! बर्मन दा की कर्मठता, उनकी मुस्कुराहट और उनकी आप-बीती कथाओं को सुनाते हुए, नाचती आँखें सदा याद रहेंगी।

—सुमन कुमार घई
 

5 टिप्पणियाँ

  • 29 Jan, 2023 11:56 AM

    aise karmveer ko shat shat naman . may his soul rest in eternal peace

  • 16 Jan, 2023 06:59 PM

    स्व. अरुण बर्मन जी को विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।

  • 15 Jan, 2023 10:37 AM

    नि: स्वार्थ हिंदी सेवी को शत् शत् नमन

  • ऐसे निःस्वार्थ हिन्दी सेवी को सादर नमन ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ऊँ

  • 15 Jan, 2023 01:59 AM

    बर्मन जी के बारे में जानकर बहुत दुख हुआ । हम भी कनाडा में लाइब्रेरी में उनसे मिले थे । आशा बर्मन जी तो हमारी बहुत प्रिय हैं । उनका मधुर संगीत , संचालन , कविताएँ सभी हमने बहुत बार सराही हैं और उसी में जूम पर पीछे बर्मन जी को भी खडे देखा है । हम यह जान दुखी हैं और प्रभु उन्हें अपने चरण में रखें । आशा जी को इस असहनीय दुख को सहने व वहन करने की शक्ति दें । हमारी दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।

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