प्रिय मित्रो,
आज अप्रैल का प्रथम अंक अपलोड होने वाला है। अचानक मुझे अनुभव हुआ कि एक चौथाई वर्ष तो बीत गया। लगता है अभी तो २०२३ का हम लोगों ने स्वागत किया था। वास्तव में ही समय बहुत जल्दी बीतता है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम इस समय का उपयोग किस तरह से करते हैं। कुछ लोग होते हैं, जिनके लिए समय सदा कम रहता है और अन्य लोग ऐसे होते हैं कि जिनका समय काटे नहीं कटता। दिन में वही चौबीस घंटे होते हैं, परन्तु उनकी गति अलग-अलग रहती है। ठीक धन की तरह। इसीलिए समय को धन कहा जा सकता है। कम से कम मैं तो ऐसा ही मानता हूँ।
पत्नी को सदा शिकायत रहती है कि मैं सेवा-निवृत्त होने के बाद व्यर्थ के कामों में उलझा रहता हूँ। अन्य शब्दों में मैं समय का सदुपयोग नहीं करता। जो काम उसके लिए व्यर्थ हैं, मेरे लिए वह अब जीवन है। दृष्टिकोण का अन्तर है। ऐसा नहीं है कि उसे साहित्य अच्छा नहीं लगता। सोने से पहले उपन्यास या कहानी पढ़ना सदा से उसका लगभग नियम रहा है, अब भी है। बस कहानी किसी और की लिखी हो; उसके निठल्ले पति की नहीं। बात उन दिनों की है जब मैंने लिखना आरम्भ किया था और प्रकाशित होने लगा था। एक बार मैंने उसे अपनी छोटी बहन से फोन पर बात करते हुए सुना। छोटी ने पूछा, “जीजा जी अब रिटायर हो गये हैं, क्या करते रहते हैं दिन भर?” उत्तर मुझे सुनाई दिया, “किसी काम के नहीं रहे—कवि हो गए हैं!” यह चुटकुला नहीं है, सच में ही ऐसा पूछा और कहा गया। यह बात अलग है कि न तो अब कोई मानेगा और न ही मैं व्यर्थ में कोई झगड़ा खड़ा करना चाहता हूँ। वैसे अगर बात को बिगड़ने न दिया जाए और बात आरम्भ की जाए तो एक कहानी का कथानक सहजता से मिल सकता है। अब देखना यह है कि मेरे इस विचार को कौन कहानी में बदल कर लिखता है। ऐसा मेरे साथ पहले भी हो चुका है।
हुआ यूँ कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड की गोष्ठी थी। मैंने अपनी कहानी ‘स्वीट डिश’ का एक अंश सुनाया। अगली गोष्ठी में किसी लेखिका ने कहा कि वह कहानी सुनाना चाहती हैं। संचालन मैं ही कर रहा था। वह उठीं और उन्होंने स्वीट डिश के कथानक का मुख्य अंश लेकर अपनी कहानी सुना दी। श्रोताओं में से कुछ आँखें नचा-नचा कर मुझे देख रहे थे। ऐसी परिस्थितियों मैं कर भी क्या सकता था! कथानक के अंश पर मेरा कोई कॉपीराइट नहीं है। कोई भी कुछ भी लिख सकता है। डॉ। शैलजा सक्सेना ने बहुत पहले एक लघुकथा लिखी, उसके कुछ महीने के बाद एक स्थानीय लेखिका ने कुछ शब्द बदल कर वही लघुकथा का शीर्षक बदल कर जगह-जगह पर सुनाई। मैं और शैलजा बस एक दूसरे का मुँह ताकते रहे। शायद मुझे उन लेखकों जैसा हो जाना चाहिए, जो उकसाने के बाद भी मुँह नहीं खोलते। पर क्या करूँ, प्रवृत्ति/प्रकृति को बदला भी नहीं जा सकता।
कई प्रसिद्ध लेखकों को जानता हूँ जो दशकों से भारत के विश्वविद्यालयों में पढ़ाये जा रहे हैं। उनकी कविताएँ और कहानियाँ, विदेशी भाषा में पहले लिखी रचनाओं का संशोधित अनुवाद है। अगर आप अंग्रेज़ी और हिन्दी साहित्य में समान रुचि रखते हैं और पढ़ते हैं तो आप भी पहचान जाएँगे कि अमुक कहानी अंग्रेज़ी की इस कहानी का संशोधित भारतीयकरण है। संशोधित भारतीयकरण इसलिए कह रहा हूँ कि विदेशों की कहानियाँ विदेशी संस्कृति पर आधारित होती हैं। अगर आप उसका ज्यों का त्यों अनुवाद कर देंगे तो यह अनूदित रचना ही रहेगी। हिन्दी साहित्य की रचना बनाने के लिए तो आपको मूल तत्त्व का संशोधन करके भारतीयकरण तड़का लगाना ही पड़ेगा। विडम्बना यह है कि कई बार प्रयास करने के बाद भी भारतीयकरण सम्भव नहीं हो पाता। बॉलीवुड की फ़िल्मों में यह प्रायः देखने को मिलता है। वह ऐसा इसलिए कि सितारों की दुनिया में लेखक हाशिए पर इतनी दूर रखे जाते हैं कि वह सिनेमा-स्क्रीन पर आते ही नहीं। ऐसे में फ़िल्म का निर्माता, निर्देशक, कहानीकार, पटकथा लेखक और नायक एक ही व्यक्ति होता है।
बात कहाँ से शुरू की थी और कहाँ पर आ गया हूँ। क्या समय काटना इसी को कहते हैं?
नहीं-नहीं, अभी-अभी अपने सम्पादकीय को फिर से पढ़ा है और लग रहा है कि चाहे-अनचाहे कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कह दी हैं। अभी यहीं बंद कर देना ही सही रहेगा।
— सुमन कुमार घई
3 टिप्पणियाँ
-
आदरणीय संपादक महोदय ,, इस अंक के संपादकीय में कई विचारणीय विषय एक साथ उठ खड़े हुए हैं, उदाहरणार्थ :- रचना धर्मिता क्या आजीविका हो सकती है ?क्या साहित्य धन और यश कमाने के लिए ही रचा जाता है ?क्या कोई भी काम सिर्फ तभी उपयोगी है जब उससे धनोपार्जन हो सके? अनुवाद और कथानक की चोरी में क्या अंतर है? सभी पर विचार करके टिप्पणी दे पाना एक साथ तो संभव नहीं लग रहा है,। वैश्विक स्तर पर तो मेरी जानकारी नहीं है परंतु भारत में तो आदिकाल से ही संभवत: साहित्य सर्वप्रथम आत्मक तुष्टि और उसके बाद समाज सुधार के लिए रचा गया ऐसा मेरा मानना है। राज दरबारों का प्रश्रय पाकर पले बढ़े कवि और रचनाकारों को तो चारण और भाट कहा गया ना कि साहित्यकार। बीच में कुछ काल ऐसा आया जब साहित्य की रचना करना धनवान लोगों का शौक समझा गया। उसके बाद का लेखक और कवि तो निरंतर निर्धन ही रहा, प्रेमचंद, निराला आदि इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
-
दार्शनिकता से भरा है आज का संपादकीय। लेखक कवि अथवा साहित्यकार होना काम हीं नहीं है। अचरज है विज्ञापन के लिए दो चार लाइनें झूठ लिखकर विज्ञापनकार (व्यवसायिक लेखक) पैसे कमा लेता है। साहित्य के लिए पुरी किताब में जीवन का सत्य लिखकर भी एक साहित्यकार पैसे नहीं कमाता। उसकी किताब बिकती नहीं है। मेरी पत्नी भी मुझसे हमेशा प्रश्न करती रहती है लिखने से आपको क्या मिलता है? मैं उसे बता नहीं पाता कि मुझे एक बड़ी खुशी और संतुष्टि मिलती है। क्योंकि जो मिलता है, प्रत्यक्षतः वह मेरा नीजी, अदृश्य और वह भी मानसिक है। रचना पुरी होने पर मै बच्चों की तरह शोर मचा कर कभी कोई खुशी जाहिर नहीं करता। हलाँकि मेरी कविताएँ और कहानियाँ उसे पसन्द है। संपादक जी एवं पुस्तक बाजार डाॅट काॅम की कृपा से मेरी पहली हिन्दी कविता संग्रह 'युग-संधि के इस पार' प्रकाशित हुई। पुस्तक बाजार डाॅट काॅम पर बहुत कम मूल्य पर ई पुस्तक के रुप में उपलब्ध है। इस आशा से कि इंटरनेट पर वैश्विक पहुँच मिलने की संभावना है । मगर संभवतः किसी ने आजतक उसे पढा नहीं। भारतीय मित्र कहते हैं कि डाउनलोड और पेमेंट की समस्या है। पेटीएम से पेमेंट नहीं हो रहा है। विदेशी मित्रों ने कभी डाउनलोड नहीं किया यानि उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। संपादकीय पर लिख रहा था, बात नीजी होती जा रही है मगर निकली संपादकीय के विषय से हीं है। एक कहानी लिखने में कई सप्ताह लग जाते हैं। कभी-कभी महीने भी। स्वयं संपादक जी ने संभवतः व्यस्तता के कारण एक कहानी का अगला भाग पन्द्रह वर्ष के बाद लिखा। यानि साहित्य साहित्यकार का पीछा नहीं छोड़ती। उसकी लाख व्यस्तता में भी उससे तगादा करती रहती है। कलम उठा लो महोदय नहीं तो थोड़ा समय निकाल लो और बैठ जाओ कंप्यूटर पर। और साहित्यकारों को अपनी पत्नी के ताने सुनकर भी अपने साहित्य की जिद माननी पड़ती है। समय निकालना पड़ता है। समय के हिसाब से हर किसी को दिहाड़ी मिलती है। मेरा आग्रह है कि सृजनात्मक बौद्धिक कार्यों की दिहाड़ी तो संभव नहीं है। कम से कम से साहित्यिक पुस्तकों की बिक्री तो हो जिससे लेखक साहित्यकारों के खाते में कुछ धन आए। और उससे भी ज्यादा लिखी गई बातें समाज तक पहुँचे। साहित्य से समाज का कुछ हित हो, कुछ लाभ हो।
-
आपने जो कटु सत्य कहा, फेसबुक पर उसकी भरमार है। लोग तो फ़िल्मों के दृश्यों के टुकड़े काटकर उपन्यास तक लिख लेते हैं और बेशर्मी से खुद की गिनती साहित्यकारों में करा लेते हैं। सच्चाई कहकर कोई भी बुरा नहीं बनना चाहता है। लघुकथा के क्षेत्र में तो चोरों की भरमार है। विवश होकर कई बार बुरा बनना पड़ता है।
कृपया टिप्पणी दें
सम्पादकीय (पुराने अंक)
- 2025
-
-
मार्च 2025 प्रथम
खेद है! -
मार्च 2025 द्वितीय
-
फरवरी 2025 प्रथम
समय की गति और सापेक्षता का… -
फरवरी 2025 द्वितीय
धोबी का कुत्ता न घर का न… -
जनवरी 2025 प्रथम
और अंतिम संकल्प . . . -
जनवरी 2025 द्वितीय
मनन का एक विषय
-
मार्च 2025 प्रथम
- 2024
-
-
दिसंबर 2024 प्रथम
अपने ही बनाए नियम का उल्लंघन -
दिसंबर 2024 द्वितीय
सबके अपने-अपने ‘सोप बॉक्स’ -
नवम्बर 2024 प्रथम
आप तो पाठक के मुँह से केवल… -
नवम्बर 2024 द्वितीय
आंचलिक सिनेमा में जीवित लोक… -
अक्टूबर 2024 प्रथम
अंग्रेज़ी में अनूदित हिन्दी… -
अक्टूबर 2024 द्वितीय
कृपया मुझे कुछ ज्ञान दें! -
सितम्बर 2024 प्रथम
मैंने कंग फ़ू पांडा फ़िल्म… -
सितम्बर 2024 द्वितीय
मित्रो, अपना तो हर दिवस—हिन्दी… -
अगस्त 2024 प्रथम
गोल-गप्पे, पापड़ी-भल्ला चाट… -
अगस्त 2024 द्वितीय
जिहदी कोठी दाणे, ओहदे कमले… -
जुलाई 2024 प्रथम
बुद्धिजीवियों का असमंजस और… -
जुलाई 2024 द्वितीय
आरोपित विदेशी अवधारणाओं का… -
जून 2024 प्रथम
भाषा में बोली का हस्तक्षेप -
जून 2024 द्वितीय
पुस्तक चर्चा, नस्लीय भेदभाव… -
मई 2024 प्रथम
हींग लगे न फिटकिरी . . . -
मई 2024 द्वितीय
दृष्टिकोणों में मैत्रीपूर्ण… -
अप्रैल 2024 प्रथम
आधुनिक समाज और तकनीकी को… -
अप्रैल 2024 द्वितीय
स्मृतियाँ तो स्मृतियाँ हैं—नॉस्टेलजिया… -
मार्च 2024 प्रथम
दंतुल मुस्कान और नाचती आँखें -
मार्च 2024 द्वितीय
इधर-उधर की -
फरवरी 2024 प्रथम
सनातन संस्कृति की जागृति… -
फरवरी 2024 द्वितीय
त्योहारों को मनाने में समझौते… -
जनवरी 2024 प्रथम
आओ जीवन गीत लिखें -
जनवरी 2024 द्वितीय
श्रीराम इस भू-भाग की आत्मा…
-
दिसंबर 2024 प्रथम
- 2023
-
-
दिसंबर 2023 प्रथम
टीवी सीरियलों में गाली-गलौज… -
दिसंबर 2023 द्वितीय
समीप का इतिहास भी भुला दिया… -
नवम्बर 2023 प्रथम
क्या युद्ध मात्र दर्शन और… -
नवम्बर 2023 द्वितीय
क्या आदर्शवाद मूर्खता का… -
अक्टूबर 2023 प्रथम
दर्पण में मेरा अपना चेहरा -
अक्टूबर 2023 द्वितीय
मुर्गी पहले कि अंडा -
सितम्बर 2023 प्रथम
विदेशों में हिन्दी साहित्य… -
सितम्बर 2023 द्वितीय
जीवन जीने के मूल्य, सिद्धांत… -
अगस्त 2023 प्रथम
संभावना में ही भविष्य निहित… -
अगस्त 2023 द्वितीय
ध्वजारोहण की प्रथा चलती रही -
जुलाई 2023 प्रथम
प्रवासी लेखक और असमंजस के… -
जुलाई 2023 द्वितीय
वास्तविक सावन के गीत जो अनुमानित… -
जून 2023 प्रथम
कृत्रिम मेधा आपको लेखक नहीं… -
जून 2023 द्वितीय
मानव अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता… -
मई 2023 प्रथम
मैं, मेरी पत्नी और पंजाबी… -
मई 2023 द्वितीय
पेड़ की मृत्यु का तर्पण -
अप्रैल 2023 प्रथम
कुछ यहाँ की, कुछ वहाँ की -
अप्रैल 2023 द्वितीय
कवि सम्मेलनों की यह तथाकथित… -
मार्च 2023 प्रथम
गोधूलि की महक को अँग्रेज़ी… -
मार्च 2023 द्वितीय
मेरे पाँच पड़ोसी -
फरवरी 2023 प्रथम
हिन्दी भाषा की भ्रान्तियाँ -
फरवरी 2023 द्वितीय
गुनगुनी धूप और भावों की उष्णता -
जनवरी 2023 प्रथम
आने वाले वर्ष में हमारी छाया… -
जनवरी 2023 द्वितीय
अरुण बर्मन नहीं रहे
-
दिसंबर 2023 प्रथम
- 2022
-
-
दिसंबर 2022 प्रथम
अजनबी से ‘हैव ए मैरी क्रिसमस’… -
दिसंबर 2022 द्वितीय
आने वाले वर्ष से बहुत आशाएँ… -
नवम्बर 2022 प्रथम
हमारी शब्दावली इतनी संकीर्ण… -
नवम्बर 2022 द्वितीय
देशभक्ति साहित्य और पत्रकारिता -
अक्टूबर 2022 प्रथम
भारत में प्रकाशन अभी पाषाण… -
अक्टूबर 2022 द्वितीय
बहस: एक स्वस्थ मानसिकता,… -
सितम्बर 2022 प्रथम
हिन्दी साहित्य का अँग्रेज़ी… -
सितम्बर 2022 द्वितीय
आपके सपनों की भाषा ही जीवित… -
अगस्त 2022 प्रथम
पेड़ कटने का संताप -
अगस्त 2022 द्वितीय
सम्मानित भारत में ही हम सबका… -
जुलाई 2022 प्रथम
अगर विषय मिल जाता तो न जाने… -
जुलाई 2022 द्वितीय
बात शायद दृष्टिकोण की है -
जून 2022 प्रथम
साहित्य और भाषा सुरिक्षित… -
जून 2022 द्वितीय
राजनीति और साहित्य -
मई 2022 प्रथम
कितने समान हैं हम! -
मई 2022 द्वितीय
ऐतिहासिक गद्य लेखन और कल्पना… -
अप्रैल 2022 प्रथम
भारत में एक ईमानदार फ़िल्म… -
अप्रैल 2022 द्वितीय
कितना मासूम होता है बचपन,… -
मार्च 2022 प्रथम
बसंत अब लौट भी आओ -
मार्च 2022 द्वितीय
अजीब था आज का दिन! -
फरवरी 2022 प्रथम
कैनेडा में सर्दी की एक सुबह -
फरवरी 2022 द्वितीय
इंटरनेट पर हिन्दी और आधुनिक… -
जनवरी 2022 प्रथम
नव वर्ष के लिए कुछ संकल्प -
जनवरी 2022 द्वितीय
क्या सभी व्यक्ति लेखक नहीं…
-
दिसंबर 2022 प्रथम
- 2021
-
-
दिसंबर 2021 प्रथम
आवश्यकता है आपकी त्रुटिपूर्ण… -
दिसंबर 2021 द्वितीय
नींव नहीं बदली जाती -
नवम्बर 2021 प्रथम
सांस्कृतिक आलेखों का हिन्दी… -
नवम्बर 2021 द्वितीय
क्या इसकी आवश्यकता है? -
अक्टूबर 2021 प्रथम
धैर्य की कसौटी -
अक्टूबर 2021 द्वितीय
दशहरे और दीवाली की यादें -
सितम्बर 2021 द्वितीय
हिन्दी दिवस पर मेरी चिंताएँ -
अगस्त 2021 प्रथम
विमर्शों की उलझी राहें -
अगस्त 2021 द्वितीय
रचना प्रकाशन के लिए वेबसाइट… -
जुलाई 2021 प्रथम
सामान्य के बदलते स्वरूप -
जुलाई 2021 द्वितीय
लेखक की स्वतन्त्रता -
जून 2021 प्रथम
साहित्य कुञ्ज और कैनेडा के… -
जून 2021 द्वितीय
मानवीय मूल्यों का निकष आपदा… -
मई 2021 प्रथम
शब्दों और भाव-सम्प्रेषण की… -
मई 2021 द्वितीय
साहित्य कुञ्ज की कुछ योजनाएँ -
अप्रैल 2021 प्रथम
कोरोना काल में बन्द दरवाज़ों… -
अप्रैल 2021 द्वितीय
समीक्षक और सम्पादक -
मार्च 2021 प्रथम
आवश्यकता है नई सोच की, आत्मविश्वास… -
मार्च 2021 द्वितीय
अगर जीवन संघर्ष है तो उसका… -
फरवरी 2021 प्रथम
राजनीति और साहित्य का दायित्व -
फरवरी 2021 द्वितीय
फिर वही प्रश्न – हिन्दी साहित्य… -
जनवरी 2021 प्रथम
स्मृतियों की बाढ़ – महाकवि… -
जनवरी 2021 द्वितीय
सम्पादक, लेखक और ’जीनियस’…
-
दिसंबर 2021 प्रथम
- 2020
-
-
दिसंबर 2020 प्रथम
यह वर्ष कभी भी विस्मृत नहीं… -
दिसंबर 2020 द्वितीय
क्षितिज का बिन्दु नहीं प्रातःकाल… -
नवम्बर 2020 प्रथम
शोषित कौन और शोषक कौन? -
नवम्बर 2020 द्वितीय
पाठक की रुचि ही महत्वपूर्ण -
अक्टूबर 2020 प्रथम
साहित्य कुञ्ज का व्हाट्सएप… -
अक्टूबर 2020 द्वितीय
साहित्य का यक्ष प्रश्न –… -
सितम्बर 2020 प्रथम
साहित्य का राजनैतिक दायित्व -
सितम्बर 2020 द्वितीय
केवल अच्छा विचार और अच्छी… -
अगस्त 2020 प्रथम
यह माध्यम असीमित भी और शाश्वत… -
अगस्त 2020 द्वितीय
हिन्दी साहित्य को भविष्य… -
जुलाई 2020 प्रथम
अपनी बात, अपनी भाषा और अपनी… -
जुलाई 2020 द्वितीय
पहले मुर्गी या अण्डा? -
जून 2020 प्रथम
कोरोना का आतंक और स्टॉकहोम… -
जून 2020 द्वितीय
अपनी बात, अपनी भाषा और अपनी… -
मई 2020 प्रथम
लेखक : भाषा का संवाहक, कड़ी… -
मई 2020 द्वितीय
यह बिलबिलाहट और सुनने सुनाने… -
अप्रैल 2020 प्रथम
एक विषम साहित्यिक समस्या… -
अप्रैल 2020 द्वितीय
अजीब परिस्थितियों में जी… -
मार्च 2020 प्रथम
आप सभी शिव हैं, सभी ब्रह्मा… -
मार्च 2020 द्वितीय
हिन्दी साहित्य के शोषित लेखक -
फरवरी 2020 प्रथम
लम्बेअंतराल के बाद मेरा भारत… -
फरवरी 2020 द्वितीय
वर्तमान का राजनैतिक घटनाक्रम… -
जनवरी 2020 प्रथम
सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान -
जनवरी 2020 द्वितीय
काठ की हाँड़ी केवल एक बार…
-
दिसंबर 2020 प्रथम
- 2019
-
-
15 Dec 2019
नए लेखकों का मार्गदर्शन :… -
1 Dec 2019
मेरी जीवन यात्रा : तब से… -
15 Nov 2019
फ़ेसबुक : एक सशक्त माध्यम… -
1 Nov 2019
पतझड़ में वर्षा इतनी निर्मम… -
15 Oct 2019
हिन्दी साहित्य की दशा इतनी… -
1 Oct 2019
बेताल फिर पेड़ पर जा लटका -
15 Sep 2019
भाषण देने वालों को भाषण देने… -
1 Sep 2019
कितना मीठा है यह अहसास -
15 Aug 2019
स्वतंत्रता दिवस की बधाई! -
1 Aug 2019
साहित्य कुञ्ज में ’किशोर… -
15 Jul 2019
कैनेडा में हिन्दी साहित्य… -
1 Jul 2019
भारतेत्तर साहित्य सृजन की… -
15 Jun 2019
भारतेत्तर साहित्य सृजन की… -
1 Jun 2019
हिन्दी भाषा और विदेशी शब्द -
15 May 2019
साहित्य को विमर्शों में उलझाती… -
1 May 2019
एक शब्द – किसी अँचल में प्यार… -
15 Apr 2019
विश्वग्राम और प्रवासी हिन्दी… -
1 Apr 2019
साहित्य कुञ्ज एक बार फिर… -
1 Mar 2019
साहित्य कुञ्ज का आधुनिकीकरण -
1 Feb 2019
हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और… -
1 Jan 2019
चिंता का विषय - सम्मान और…
-
15 Dec 2019
- 2018
-
-
1 Dec 2018
हिन्दी टाईपिंग रोमन या देवनागरी… -
1 Apr 2018
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ… -
1 Jan 2018
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ…
-
1 Dec 2018
- 2017
-
-
1 Oct 2017
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ… -
15 Sep 2017
हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ… -
1 Sep 2017
ग़ज़ल लेखन के बारे में -
1 May 2017
मेरी थकान -
1 Apr 2017
आवश्यकता है युवा साहित्य… -
1 Mar 2017
मुख्यधारा से दूर होना वरदान -
15 Feb 2017
नींव के पत्थर -
1 Jan 2017
नव वर्ष की लेखकीय संभावनाएँ,…
-
1 Oct 2017
- 2016
-
-
1 Oct 2016
सपना पूरा हुआ, पुस्तक बाज़ार.कॉम… -
1 Sep 2016
हिन्दी साहित्य, बाज़ारवाद… -
1 Jul 2016
पुस्तकबाज़ार.कॉम आपके लिए -
15 Jun 2016
साहित्य प्रकाशन/प्रसारण के… -
1 Jun 2016
लघुकथा की त्रासदी -
1 Jun 2016
हिन्दी साहित्य सार्वभौमिक? -
1 May 2016
मेरी प्राथमिकतायें -
15 Mar 2016
हिन्दी व्याकरण और विराम चिह्न -
1 Mar 2016
हिन्दी लेखन का स्तर सुधारने… -
15 Feb 2016
अंक प्रकाशन में विलम्ब क्यों… -
1 Feb 2016
भाषा में शिष्टता -
15 Jan 2016
साहित्य का व्यवसाय -
1 Jan 2016
उलझे से विचार
-
1 Oct 2016
- 2015
-
-
1 Dec 2015
साहित्य कुंज को पुनर्जीवत… -
1 Apr 2015
श्रेष्ठ प्रवासी साहित्य का… -
1 Mar 2015
कैनेडा में सप्ताहांत की संस्कृति -
1 Feb 2015
प्रथम संपादकीय
-
1 Dec 2015