प्रिय मित्रो,
साहित्य कुञ्ज का मई द्वितीय अंक आपके समक्ष है। पिछले कुछ अंकों की अपेक्षा यह इतना विस्तृत नहीं है। कुछ घटनाक्रम ही ऐसा रहा कि साहित्य कुञ्ज को उतना समय नहीं दे पाया जितना देना चाहता था।
मैं इस संक्षिप्त सम्पादकीय में आपको साहित्य कुञ्ज के विषय में कुछ सूचनाएँ देना चाहता हूँ।
साहित्य कुञ्ज की पुस्तकें:
पिछले अंक में साहित्य कुञ्ज में "साहित्य कुञ्ज की पुस्तकें" स्तम्भ आरम्भ हुआ है। पुरानी वेबसाइट में, ई-पुस्तक के जन्म से पहले मैंने साहित्य कुञ्ज में ई-लाईब्रेरी के नाम से एक स्तम्भ बनाया था। नई वेबसाइट में अभी तक यह स्तम्भ नहीं बन पाया था। यह स्तम्भ शुरू हो चुका है; अभी केवल दो पुस्तकें ही जोड़ पाया हूँ परन्तु अब निरन्तर पुरानी पुस्तकें इसमें जुड़ती चली जाएँगी। अगर आप साहित्य कुञ्ज को पीसी या लैपटॉप पर पढ़ रहे हैं तो इसका आइकॉन आपको दायीं ओर के कॉलम में मिलेगा। मोबाइल पर आपको यह काफ़ी नीचे जाकर मिलेगा।
इसमें आप पुस्तक को पढ़ सकते हैं। यह ई-पुस्तक नहीं है, इसलिए यह आप केवल ऑनलाइन पढ़ पाएँगे और डाउनलोड नहीं कर सकते।
भविष्य की योजनाओं के बारे में –
साहित्य कुञ्ज फ़ोरम:
इस फ़ोरम का उद्देश्य साहित्यिक चर्चाओं, विचार-विमर्श और साहित्यिक सूचनाओं के लिए प्रतिभागियों के लिए साझा मंच उपलब्ध करवाना होगा। साहित्य कुञ्ज की नई वेबसाइट में इसकी योजना थी। परन्तु साहित्य कुञ्ज का विस्तार इतना बड़ा है कि यह योजना स्थगित होती चली गई। फिर Whatsapp Group बनने और उसकी सफलता के बाद विचार बदलने लगा कि फ़ोरम का होना आवश्यक है भी कि नहीं। पिछले सप्ताह मुझे पहली बार पता चला कि व्हाटस ऐप पर एक समूह में 256 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते। समूह की चर्चाओं में भाग लेने के लिए बहुत से उत्सुक लेखक अपने आपको पराया समझ रहे हैं। इसलिए अब फ़ोरम को बनाना अनिवार्य लगने लगा है। क्योंकि इसे हम अपनी आवश्यकता के अनुसार बनाएँगे इसलिए आप सभी के लिए यह अधिक उपयोगी होगा।
हिन्दी का प्रूफ़रीडिंग का टूल:
यह मेरी एक पुरानी शिकायत भी है और प्रिय विषय भी। इंटरनेट पर अभी तक मैं हिन्दी का ऐसा कोई टूल ढूँढ़ नहीं पाया हूँ जो सन्तोषजनक हो। यहाँ तक कि गूगल डॉक्स में आप अपनी व्यक्तिगत डिक्शनरी बना सकते हैं; मेरी अपेक्षा थी कि यह वर्तनी की त्रुटियों को सुधारने के लिए आंशिक रूप से ही सही पर कुछ सहायक तो हो। निराशा है कि जिन त्रुटियों को दर्शाया जाता है और उनके सही विकल्प सुझाए जाते हैं, वह भी ग़लत ही होते हैं। चन्द्रबिन्दु तो जैसे कभी हिन्दी भाषा में हुआ ही नहीं था। एक और वेबसाइट का प्रूफ़रीडिंग का टूल भी देखा जो चन्द्रबिन्दु लगाने की बजाय हटाने का विकल्प देता है।
साहित्य कुञ्ज के लिए इस टूल के लिए आपके सुझाव अपेक्षित हैं – आप बताएँ कि इसमें क्या-क्या होना चाहिए ताकि आप सभी के लिए यह उपयोगी हो।
मैं जानता हूँ कि यह टूल शत-प्रतिशत प्रूफ़रीडिंग नहीं कर पाएगा परन्तु क्योंकि यह अपना है, इसलिए इसका सुधार चलता रहेगा। इसमें पंक्चुएशन पर ध्यान दिया जाएगा।
हिन्दी शब्दकोश:
यह एक बहुत बड़ी योजना है। इसके लिए मुझे एक विशेषज्ञों की टीम का गठन करना पड़ेगा। इस टीम के सदस्य इस योजना की सफलता के लिए प्रतिबद्ध होंगे।
इसकी आवश्यकता इसलिए अनुभव हुई है क्योंकि अभी तक ऑनलाईन या प्रिंट के शब्दकोशों में अन्तर हैं। दूसरा कारण यह है किसी भी साहित्यिक वेबसाइट का अपना शब्दकोश नहीं है। हम सब जानते हैं कि समय के साथ नए शब्द भाषा में जुड़ते चले जाते हैं। हिन्दी के प्रिंट के शब्दकोशों में इन्हें जोड़ पाना सम्भव नहीं है। ऑनलाईन शब्दकोशों में किया जा सकता है परन्तु यह अधिकतर ऐसी व्यवसायिक वेबसाइट्स पर हैं जिनका भाषा से कुछ लेना-देना नहीं है, वह बस ट्रैफ़िक चाहते हैं। भाषा के प्रति समर्पण के बिना यह काम नहीं हो सकता।
जैसे मैं सदा से कहता आया हूँ कि साहित्य कुञ्ज आपका अपना मंच है। इन योजनाओं के लिए आपके मार्गदर्शन और परामर्श की आवश्यकता है। आप सुझाव दें और मैं उन्हें सूचीबद्ध करके सहेजता रहूँगा ताकि समय आने पर परिस्थिति के अनुसार उनको लागू कर सकें।
— सुमन कुमार घई
7 टिप्पणियाँ
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आपकी कर्मठता और नए विचार सराहनीय हैं। ये सभी विचार हिन्दी को समृद्ध करने वाले हैं, आपके सभी कार्यों में हम सब साथ हैं। जो भी काम हम कर सकें, बताइयेगा।
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आपके प्रयास सराहनीय हैं।
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’साहित्य कुंज की पुस्तकें’ सराहनीय चेष्टा है। साधुवाद! ’साहित्य कुंज फ़ोरम’ आरम्भ करना आसान हो सकता है, किन्तु उचित दिशा-निर्देशों के अभाव में ऐसे मंच दस-पंद्रह लोगों की आपसी प्रशंसा के गुट बन कर रह जाते हैं। विजय नगरकरजी ने प्रूफ़ रीडिंग के कई टूल्स के नाम सुझाए हैं। सम्भव है, उनमें से कोई टूल उपयोगी सिद्ध हो। हिन्दी थिसॉरस से शब्दों के सही चयन तथा प्रयोग में आसानी होगी। शुभस्य शीघ्रम्!
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माननीय संपादक जी, साहित्यकुञ्ज पुस्तक की शुरुआत एक बहुत अच्छी शुरुआत है इसका स्वागत है। साहित्यकुञ्ज फोरम योजना भी बहुउपयोगी साबित होगी। उपलब्ध प्रूफ रिडिंग टूल्स जैसा कि आपने संपादकीय में लिखा है गलत वर्तनी की सिफारिश करता है यदि संभव हो सके साहित्यकुञ्ज का अपना प्रूफ रिडिंग टूल्स विकसित किया जा सकता है। हिन्दी शब्दकोश का निर्माण इसके मिए मेरे मन में भी बहुत दिनों से एक सुझाव था। एक नये अद्यतन शब्दकोश की आवश्यकता भी समय की माँग है।
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आदरणीय सुमन जी गूगल डॉक में हिंदी स्पेल चेक की ऑनलाइन अच्छी सुविधा है।गूगल के प्रयोक्ता बहुत है। मैंने आज आपके व्हाट्सएप्प पर स्पेलचेक टूल भेजा है,कृपया आज़माकर देखें। एम एस वर्ड 365 सशुल्क पैक भी अच्छा है। ओपन सोर्स में लिब्रा आफिस में ऐड ऑन में स्पेल चेक है। लिब्रे आफिस अब भारत सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में शामिल है।
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हिन्दी भाषा के विशुद्ध रूप में सुरक्षित और संरक्षित करते हुए यथासंभव हम आपके साथ हैं। टेलीग्राम पर ढाई से तीन हजार लोग एक ग्रुप में आसानी से रह सकते हैं तो क्यों न साहित्य कुञ्ज टेलीग्राम पर भी आप प्रारंभ करें ।
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सभी योजनाएं स्वागतयोग्य हैं ।प्रूफरीडिंग की आवश्यकता कै नकारा नहीं जा सकता,वर्तनी और विराम चिन्हों की अशुद्धि हलवे में कंकर के समान वाचन के आनन्द को समाप्त कर देती है।