प्रेम का पुरोधा

प्रेम का पुरोधा  (रचनाकार - प्रवीण कुमार शर्मा )

अध्याय: 08

स्नेहमल ने महामारी से लड़ने के लिए जो साहस दिखाया उसके कारण लोग उसे देवता मानने लगे। स्नेहमल ने कई लोगों की जान बचाई। लोगों ने उसके इस परोपकार के लिए उसे संत का दर्जा दे दिया। इस तरह समाज ने उसे इस पुनीत कार्य के लिए अपनी नज़रों पर बिठा लिया। इतना करने के बावजूद भगवान ने उसी की परीक्षा ले ली। जिस महामारी से दुनिया को बचाया उसी महामारी ने जाते-जाते उसकी पत्नी को ही अपनी चपेट में ले लिया। 

उसकी पत्नी ने अपने पति का इस आपदा में भरपूर सहयोग दिया और इसी के चलते वह ख़ुद भी इस महामारी की गिरफ़्त में आ गयी। रीता को तेज़ बुखार के साथ-साथ साँस लेने में भी तकलीफ़ हो रही थी। स्नेहमल रीता की सेवा सुश्रूषा में लगा जाता है पर उसका स्वास्थ्य दिनों-दिन बिगड़ता ही चला गया। स्नेहमल उसे रोज़ काढ़ा पिलाता। कई डॉक्टर्स को भी दिखा लिया लेकिन उसकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। 
रीता स्नेहमल को समझाते हुए कहने लगी, “अब मेरा अंतिम समय निकट आ गया है। अतः अब ज़्यादा परेशान न हों। कोई डॉक्टर-दवाई की ज़रूरत नहीं है। अब तो मुझे आराम से चिर निद्रा में सोने दो। तुम अच्छे से रहना बस, यही आख़िरी इच्छा है मेरी।”

स्नेहमल ने जवाब में कहा, “कहीं भी नहीं जा रही तू, कुछ नहीं होगा तुझे, ऐसी बहकी बातें मत कर, दवाई अच्छे से ले, सब सही हो जाएगी।”

आज उसकी तबीयत ख़राब हुए छटा दिन था। उसे अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करा दिया था। साँस लेने में आ रही कठिनाई के चलते आई सी यू में भर्ती कराया गया। स्नेहमल की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। वह उसके ठीक होने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहा है। लेकिन उसकी तबीयत ख़राब ही होती जा रही है। 

अमावस की काली स्याह रात है। रीता की साँस अब और भी कमज़ोर होती जा रही है। वह रुक-रुक कर साँस ले पा रही है। स्नेहमल अकेला ही उसके पास आई सी यू में बैठा हुआ था। कभी वह आसमां में छाए काले अँधेरे को देखता तो कभी अपनी पत्नी के काले पड़े बेजान से चेहरे को। बेचारा असहाय सा बैठा हुआ केवल अंधकार को देखने के सिवाय कुछ कर भी नहीं पा रहा था। स्नेहमल की आँखों में आया हुआ पानी और भी उसकी आँखों के सामने अंधकार पैदा कर रहा था। सब कुछ उसके सामने घटित होता जा रहा था। लेकिन वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। वह रीता की साँसों को थमते हुए देख रहा था। 

रीता को साँस लेने में कठिनाई बढ़ती ही जा रही थी। स्नेहमल डॉक्टर को बुलाकर लाया। डॉक्टर ने आक्सीजन का सिलेंडर फिर से चालू कर दियाअ। फिर भी उसकी साँस सही रफ़्तार नहीं पकड़ पा रही थी। डॉक्टर चिंतित और असहाय भाव से स्नेहमल की ओर देख रहा था। अचानक से रीता बैठ गई तथा स्नेहमल को अपनी बाँहों में कस लिया और उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं। 

स्नेहमल ने महामारी के किसी भी प्रोटोकॉल की चिंता किए बग़ैर रीता की देख-रेख की पर उसे बचा नहीं पाया। अब उसकी ज़िन्दगी में सूनापन पसर गया। बेटा शहर में और बेटी अपने ससुराल। इस तरह गाँव में वह बिल्कुल अकेला रह गया। जब भी उसे अपनी पत्नी की याद आती तो अनायास ही उसकी आँखों से पानी निकल जाता। “आँखों में पानी लाने के सिवाय कुछ भी नहीं कर पाया मैं; रीता मुझे माफ़ कर देना।” कहते-कहते स्नेहमल दुःखी हो जाता। 

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