जहाँ दिल से चाह हो जाती है

01-07-2022

जहाँ दिल से चाह हो जाती है

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

जहाँ दिल से चाह हो जाती है
राह ख़ुद-ब-ख़ुद मिल ही जाती है। 
मंज़िल भी आसां हो जाती है
जहाँ दिल से चाह हो जाती है॥
 
माना कि लाख तूफ़ां हैं
राहों में
अगर मंज़िल को पाने की
शिद्दत है चाहों में
तो हर मुश्किल आसां हो जाती है। 
जहाँ दिल से चाह हो जाती है
राह ख़ुद-ब-ख़ुद मिल ही जाती है॥
 
तू बस शिलाओं को हटाता जा
पथरीली राहों से
लगन लगाए जा
मंज़िल की चाहों से
तो पथरीली राहें भी रास्ता छोड़ जाती है॥
जहाँ दिल से चाह हो जाती है
राह ख़ुद-ब-ख़ुद मिल ही जाती है॥
 
पतवार भी एक दिन साहिल को
पा ही जाती है
लहरों के भँवर में
गोता लगा ही जाती है
जहाँ दिल से चाह हो जाती है
राह ख़ुदमख़ुद मिल ही जाती है॥

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