प्रेम का पुरोधा (रचनाकार - प्रवीण कुमार शर्मा )
अध्याय: 04शादी की रस्में शुरू होने को हैं। ये सोच स्नेहू की माँ बहुत ही ख़ुश है। बेटे की शादी होने पर माँ ही है जिसे सबसे ज़्यादा ख़ुशी होती है। उसकी माँ को थोड़ा सा दुःख है तो सिर्फ़ इसलिए कि संतानों की शादी की शुरूआत सबसे छोटे बेटे से हो रही है।
“कम-से-कम बड़े बेटे की शादी तो छोटे से पहले कर देते,” माँ ने स्नेहू के पिता जी से झुँझलाहट में कहा।
पिता ने कहा, “पहले बड़े बेटे को ही निपटा रहा हूँ। तू सब्र तो रख। मैंने बड़े लड़के की पसंद वाली लड़की के घर वालों से भी बात कर ली है। और वे लोग भी हमारे बड़े लड़के की शादी करने को तैयार हैं।”
“क्या! उसने भी कोई लड़की पसंद कर ली है। हो क्या गया है इस ज़माने की औलाद को?” माँ ने अपना माथा पीटते हुए कहा।
“चिंता न कर, पगली! यह तो प्रकृति का नियम है कि वह कभी अपने एक ढर्रे पर नहीं चली है। परिर्वतन ही उसका जैविक गुण है। अब क्या पता हमारी बेटियों ने भी लड़के पसंद कर लिए हों। इसलिए एक बार उनसे भी पूछ लेना। मुझे उनकी भी शादी स्नेहू से पहले करनी है। अब मैं घर-गृहस्थी की सारी ज़िम्मेदारियों से फ़ारिग़ होना चाहता हूँ। फिर ये जानें, ये इनका काम,” पिता ने माँ को समझाते हुए कहा।
स्नेहू के पिता ने स्नेहू के ससुराल वालों से बात कर के साल भर का समय माँग लिया और बारी-बारी से उसके सभी बड़े भाई–बहनों की शादी कर दी। सब भाई–बहनों की शादी हो जाने के बाद स्नेहू की शादी की शुरूआत हुई। सबसे पहले रीता की गोद भराई की रस्म बड़े ही धूमधाम से की गयी। उसके बाद रीता के घर वाले स्नेहू का तिलक कर गए। इस तरह धीरे-धीरे सारी रस्में होने लगीं।
आज शादी का शुभ दिन आ ही गया। आज दोनों परिवारों के सभी लोगों के चेहरे खिले हुए हैं। स्नेहू, रीता, स्नेहू के घरवाले, रीता के घर वाले सब के सब।
बारात रीता के घर पर आ गयी है। रीता स्नेहू को दूल्हा के वेश में देख कर अति प्रसन्न है। स्नेहू को भी इंतज़ार की एक-एक घड़ी एक एक युग के समान लग रही है। वह अब रीता को जल्दी से सजी हुई दुलहन के रूप में देख लेना चाहता है।
अब वह घड़ी भी आ गयी जब स्नेहू घुड़चढ़ी की रस्म के दौरान रीता के घर के द्वार पर आ गया है और रीता उसके सामने उसके स्वागत के लिए हाथ में जयमाला लिए दुलहन के लिबास में आँखें झुकाए हुए खड़ी है। आज स्नेहू अपनी रीता को जी भर के देख रहा है। दुलहन के जोड़े वह बहुत ही ख़ूबसूरत दिख रही है। रीता भी उसे चुपके से देख लेती है और फिर मारे शर्म के पलकें झुका देती है। यह प्रक्रिया तब तक चली जब तक दोनों ने एक दूसरे को जयमाला नहीं पहना दी। जयमाला के बाद स्टेज कार्यक्रम और उसके बाद पाणिग्रहण हुआ। इस तरह से दो पवित्र हृदय हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए।
अब दुलहन की विदाई की रस्म हुई। रीता के घरवालों की आँखों में आँसू थे। उन्होंने अपनी लाड़ली को भीगी पलकों से विदा कर दिया। स्नेहू के घर रीता का ज़ोरदार स्वागत हुआ। दुलहन के घर आते ही स्नेहू की माँ ने उसे गले लगा लिया। रीता ने भी अपनी सासु माँ के चरण स्पर्श करते हुए आशीर्वाद लिया। देवताओं को पूजने के बाद फिर दुलहन की मुँह दिखाई हुई। इस तरह से शादी की सारी रस्में एक-एक कर पूरी हो गयीं।
आज उनके मिलन की रात है। स्नेहू और रीता अपने कमरे में हैं। लेकिन स्नेहू औरों की तरह ना ही अपनी दुलहन का घूँघट उठा रहा है और ना ही रीता अपने पति की बाँहों में सिमट रही है। वे दोनों कोई औपचारिक रस्म नहीं निभा रहे। वे दोनों तो एक दूसरे को एकटक देखे ही जा रहे हैं, जैसे चकोर चाँद को एकटक देखता रहता है। चाँद भी चुपके-चुपके खिड़की में से शरारती नज़रों से कमरे में झाँक रहा है। उन्हें पता ही नहीं कि उनकी खिड़की खुली हुई है और कोई चुपके से उन्हें देख रहा है। वे भी किसी की परवाह किए बिना एक दूसरे की बाँहों में बाँहें डाले सो गए। चाँद भी मारे शर्म के बादलों की ओट में हो लिया।
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