मैं यूँ ही नहीं आ पड़ा हूँ

15-08-2023

मैं यूँ ही नहीं आ पड़ा हूँ

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मैं यूँ ही नहीं आ पड़ा हूँ
इस ज़मीन पर, 
नशे की लत ने
मुझे यहाँ ला पटका है। 
 
तुम यही सोच रहे 
होगे कि नशे में
पड़ा हुआ ये 
फटे हाल कौन है? 
 
अजी, मैं वही हूँ
जिसे इस समाज ने
धर्म, जाति, वर्ग
के आधार पर
अलग थलग कर दिया है। 
 
हाँ, मैं वही अभागा हूँ
जिसे बहुत हद तक
बेरोज़गारी, ग़रीबी, भुखमरी, 
विरासत में मिली है। 
 
मैं इस तथाकथित समाज का
एक ऐसा अभिशप्त प्राणी हूँ
जिसे अछूत कह कर
इस समाज ने
हाशिए पर रख छोड़ा है। 
 
मैं वही मोहरा हूँ
जिसे सामाजिक, राजनीतिक, 
आर्थिक, धार्मिक, आदि हितों
के लिए खुलकर
इस्तेमाल किया जाता है। 
 
मेरी बेबसी का आलम ही
है कि मैं आज इस हाल में
पड़े रहने को मजबूर हूँ, 
सच कहूँ तो समाज
की दक़ियानूसी सोच ने ही
मुझे नशेड़ी बना दिया है। 
नशे की मदहोशी ने
एक मात्र यही भला किया है
कि मुझे इस बेरहम समाज
की बेरहमी से बेसुध कर दिया है। 

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