अस्त होता सूरज
प्रवीण कुमार शर्मादुनिया का अजीब दस्तूर है
उगते सूरज को सब नमन करते हैं
उसे रोज़ सुबह अर्घ्य भी देते हैं।
क्योंकि उस से हमें ये आशा रहती है
कि वह हमें ऊर्जा और प्रकाश देता है।
जबकि अस्त होते सूरज को
कभी किसी ने अर्घ्य नहीं दिया;
क्योंकि उस समय ना तो उसके पास तेज
होता है और ना ही ऊर्जा।
अस्त होते सूरज की भी अपनी गरिमा है,
उसने सम्पूर्ण प्रकृति को प्रकाशित किया है,
समस्त जीव-जंतुओं को ऊर्जा दी है।
आज अगर उसका तेज क्षीण हो भी गया तो क्या?
उस अस्त होते सूरज के अपने जीवन काल में
कई पुण्य कर्म हैं,
जिन्हें हम भुला नहीं सकते।
लेकिन ये दुनिया बड़ी स्वार्थी है
उदित होते शैशव को तो ख़ूब स्नेह देती है
किन्तु ढलते बुढ़ापे को एक नज़र भी नहीं देखती।
पर अस्त होते सूरज का महत्त्व
कभी कम नहीं होगा;
जब भी कोई सूरज उदय होगा
तो उसे जीने का तजुर्बा
अस्त होते सूरज से ही लेना पड़ेगा;
तभी कोई उदित होता सूरज
इस दुनिया को प्रकाशित कर पाएगा।
अस्त होते सूरज!
तू आशा कभी मत छोड़ना
तेरा महत्त्व भी कभी कम न होगा
तेरे आगे भी जहां नम होगा ।
तेरे लिए कोई अर्घ्य ना भी दे तो क्या ग़म?
मेरे जैसा बेचारा तुझे निहारता रहेगा
और नतमस्तक होता रहेगा।
जब-जब जीवन कठिन होगा
तब-तब तू याद आयेगा
जीवन तुझसे ही सीख लेकर
आशान्वित होता रहेगा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अगर इंसान छिद्रान्वेषी न होता
- अगर हृदय हो जाये अवधूत
- अन्नदाता यूँ ही भाग्यविधाता . . .
- अस्त होता सूरज
- आज के ज़माने में
- आज तक किसका किस के बिना काम बिगड़ा है?
- आज सुना है मातृ दिवस है
- आवारा बादल
- ऋतुओं में ऋतुराज है बसंत
- कभी कभी जब मन उदास हो जाता है
- कभी कभी थकी-माँदी ज़िन्दगी
- कविता मेरे लिए ज़्यादा कुछ नहीं
- काश!आदर्श यथार्थ बन पाता
- कौन कहता है . . .
- चेहरे तो बयां कर ही जाया करते हैं
- जब आप किसी समस्या में हो . . .
- जब किसी की बुराई
- जलती हुई लौ
- जहाँ दिल से चाह हो जाती है
- जीवन एक प्रकाश पुंज है
- जेठ मास की गर्माहट
- तथाकथित बुद्धिमान प्राणी
- तेरे दिल को अपना आशियाना बनाना है
- तेरे बिना मेरी ज़िन्दगी
- दिनचर्या
- दुःख
- देखो सखी बसंत आया
- पिता
- प्रकृति
- बंधन दोस्ती का
- बचपन की यादें
- भय
- मन करता है फिर से
- मरने के बाद . . .
- मृत्यु
- मैं यूँ ही नहीं आ पड़ा हूँ
- मौसम की तरह जीवन भी
- युवाओं का राष्ट्र के प्रति प्रेम
- ये जो पहली बारिश है
- ये शहर अब कुत्तों का हो गया है
- रक्षक
- रह रह कर मुझे
- रहमत तो मुझे ख़ुदा की भी नहीं चाहिए
- राष्ट्र और राष्ट्रवाद
- रूह को आज़ाद पंछी बन प्रेम गगन में उड़ना है
- वो सतरंगी पल
- सारा शहर सो रहा है
- सिर्फ़ देता है साथ संगदिल
- सूरज की लालिमा
- स्मृति
- क़िस्मत की लकीरों ने
- ज़िंदगानी का सार यही है
- लघुकथा
- कहानी
- सामाजिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-