कभी कभी थकी-माँदी ज़िन्दगी

01-11-2024

कभी कभी थकी-माँदी ज़िन्दगी

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कभी कभी थकी-माँदी ज़िन्दगी
किसी पेड़ की छाँव में
फ़ुरसत के दो पल
बिताने को बेताब दिखती है। 
कभी कभी जोश से भरी हुई
यही ज़िन्दगी दौड़ जाने को
मचल पड़ती है। 
इस तरह न जाने
कितनी दफ़ा ये
ज़िन्दगी बिलखती और
खिलखिलाती सी लगती है। 
ज़िन्दगी कभी बेज़ुबान तो
कभी कभी बातूनी सी नज़र आती है। 
कुछ भी सही ये ज़िन्दगी कभी अजीब
तो कभी कभी बहुत ही सरल हो जाती है। 
कभी ये ज़िन्दगी मृत तो
कभी कभी जीवित नज़र आती है। 

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