ज़िंदगानी का सार यही है

01-05-2022

ज़िंदगानी का सार यही है

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

ज़िंदगानी का सार यही है
वह तो धारा सी ही बही है। 
जिस ओर यह ले जाए
उस ओर ही बेबस इंसान चलते जाएँ। 
धाराओं में पथ गर भटकें
साँस हलक़ में गर अटके। 
तब या तो धाराओं को अपने जुनून से मोड़ दो
नहीं तो ख़ुद ही उनके मुड़ने का इंतज़ार करो। 
एक दिन धारा पथ ज़रूर दिखाएगी
आशा की आँखें गर नहीं पथराएँगी। 

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