प्रेम का पुरोधा

प्रेम का पुरोधा  (रचनाकार - प्रवीण कुमार शर्मा )

अध्याय: 18

स्नेहमल सोचने लगा कि पागलपन दुनिया का वह कड़वा सच है जो दुनिया को आईना दिखाता है। दुनिया जिन लोगों के पागलपन पर हँसती है वह वास्तविक रूप में ख़ुद पर हँस रही होती है। पागल और शराबी एक जैसे होते हैं जो काफ़ी हद तक सच कह जाते हैं लेकिन किसी को विश्वास नहीं होता। कई बार दुनिया को जब कोई वास्तविक लेकिन कड़वी सच्चाई से रूबरू करवाता है तो उसे पागल क़रार कर दिया जाता है। 

आज इस गाँव में यही तो हुआ है। इस लड़के ने उस नग्न रहने वाले बाबा की पोल खोल दी तो इस दुनिया ने उस लड़के का पीट-पीट कर यह हाल कर दिया और उसे पागल सिद्ध कर दिया। यह युवक बेचारा पागल नहीं है बल्कि दुनिया पागल है जो इसे समझ नहीं पायी। इसका दोष बस इतना ही है कि यह ग़रीब है और विरोध करने वाला अकेला ही था। इसके माँ-बाप बिचारे निरीह बेसहारे हैं जो अपने बेटे का चाहकर भी साथ नहीं दे सकते। 

कोई भी धर्म नग्नता की दुहाई नहीं देता। इंसान स्वार्थी है। वह अपने स्वार्थ के लिए स्वयं नियम बना लेता है। पागल हो या धर्म के ठेकेदार, पुरुष ही क्यों अपनी नग्नता दिखाता है। पुरुष से कई गुना श्रेष्ठ तो महिला ही होती है जो अपनी लाख सुध-बुध खो बैठी हो लेकिन वह अपनी नग्नता प्रदर्शित कभी नहीं करती है। एक पागल महिला हमें फटे हाल गंदे कपड़ों में भले ही मिल जाएगी लेकिन अपनी आबरू की रक्षा भली-भाँति करती हैं। एक धार्मिक महिला तो नग्नता की सपने में भी नहीं सोचती। 

हमारे इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुष ही नग्न रह सकता है। उसे नग्नता प्रदर्शन करने का अधिकार प्राप्त है। भगवान पर इन्हीं की बापौती है जो नग्न रह कर ये भगवान को हासिल करेंगे। पूरे परिधान पहनने वाली बेचारी महिलाएँ तो भगवान को पा नहीं सकतीं। 

बड़े दुर्भाग्य की बात है भगवान की नज़र में सब प्राणी समान होते हैं। लेकिन यह बुद्धि का स्वामी मनुष्य इतना गिर गया है कि यह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति होते हुए भी अपने कर्मों के कारण सबसे निकृष्ट हो चुका है। 

इतने में वह सज्जन खाना लेकर वहाँ आ गया और स्नेहमल की विचारों की तंद्रा कुछ भंग हो गई। फिर वे तीनों खाना खा लिया।

स्नेहमल खाना खाने के बाद कुएँ के पास ही बनी एक झोंपड़ी में ठहर गया। उसके साथ वे दोनों भी वहीं ठहर गए। उस युवक को गाँव नहीं ले जा सकते थे क्योंकि भीड़ अभी उग्र थी। अतः वे सभी उस झोंपड़ी में ही सो गए। 

अगली सुबह कुछ गणमान्य लोग गाँव के प्रधान के साथ उस सज्जन के घर पहुँचे। लेकिन जब वह सज्जन वहाँ नहीं मिला तो वह उसे ढूँढ़ते हुए उस झोंपड़ी पर आ गए। फिर वे सब लोग आपस में बैठकर चर्चा करने लगे। 

चर्चा शुरू होते ही उन पंच परमेश्वरों ने उस युवक को घूरते हुए वही अलाप दोहराना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि इस पागल ने कल जो हरकत की थी वह अक्षम्य है। इसने धर्म का मख़ौल उड़ाया है। इसने एक धार्मिक पुरुष को निशाना बनाया है। उस सज्जन की ओर देखते हुए उन पंचों ने कहा तुमको अपने बेटे को सँभाल कर रखना होगा वरना गाँव में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है। उस सज्जन की आँखों में आँसू थे और वह उनकी सब बातों को हाथ जोड़े सहमति में सिर झुकाते हुए सुनता रहा। 

स्नेहमल पर अब ज़्यादा देर चुप नहीं रहा गया। उसने उस सज्जन के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “सब ठीक हो जाएगा।” 

फिर उसने उन पंचों की ओर देखते हुए कहा, “तुम गाँव के गणमान्य लोग हो। तुम्हें इतनी जल्दी किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँचना चाहिए।”

इतने में उनमें से एक महानुभाव बोल उठा, “तुम कौन हो? इनके कोई रिश्तेदार हो? इनकी इतनी तरफ़दारी क्यों कर रहे हो?” 

“तरफ़दारी नहीं कर रहा। सच कह रहा हूँ। तुम ही सोचो जब तक समस्या की तह तक नहीं जाएँगे तब तक कोई भी हल नहीं निकलेगा,” स्नेहमल ने जवाब दिया। 

“हमने समस्या का हल निकलवा लिया है तब ही हम यहाँ आए हैं,” उनमें से एक ने तुनककर कहा। 

स्नेहमल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा, “समस्या का हल दूसरों पर निर्भर होकर नहीं निकलता। ख़ुद उस समस्या की तह तक जाना पड़ता है।”

“अपराध सिद्ध हो गया है तभी तो इसको सज़ा दी जा रही है। इस पागल ने न केवल उस बाबा पर झूठा इल्ज़ाम लगाया बल्कि उस बाबा को थप्पड़ जड़ने की हिम्मत की,” प्रधान ने कड़क आवाज़ में ज़ोर दे कर कहा। 

“समझदार लोग कभी भी अपराधी से घृणा नहीं करते; अपराध से घृणा करते हैं। वैसे भी इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति पागल कैसे हो सकता है? मेरे ख़्याल से इसे सदमा पहुँचा है। तभी यह अपनी सुध-बुध खो बैठा है। एक बार प्यार से इससे भी पूछ कर देखो। क्या पता यह जो कह रहा हो वह सच हो। उस बाबा में ही खोट हो। ये ग़रीब लोग हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि ये अपनी बात ही नहीं रख सकें और बात रखें भी तो उन्हें सुनने के बजाय पीट कर या धमका कर दबाया जाए,” स्नेहमल ने उन्हें समझाते हुए कहा। 

इतना सुनते ही वे सभी पंच लोग भड़क उठे और बाबा स्नेहमल के साथ उन दोनों बाप बेटों को गाँव छोड़ने के लिए कह दिया। उन लोगों ने उस सज्जन को शाम तक परिवार सहित गाँव को छोड़ने की चेतावनी दे दी साथ ही कह दिया कि यह बाबा और तुम सब दोबारा इस गाँव के आस पास नज़र नहीं आने चाहिए। 

वह सज्जन भारी मन से अपने शेष परिवार के सदस्यों और आवश्यक सामान को लेने के लिए अपने घर की ओर चला गया। ताकि अपने परिवार सहित वह गाँव छोड़ कर जा सके। उसका मन बहुत उदास हो रहा था। 

उधर स्नेहमल ने अपना झोला सँभाला और उदास मन से आगे बढ़ गया। वह यह सोच कर उदास हो चला जा रहा था कि इन गाँव वालों की वह आँखें नहीं खोल सका और उस ग़रीब सज्जन के बेटे को न्याय नहीं दिला सका। 

तभी अचानक पीछे से कुछ लोगों की आवाज़ आई। उसने मुड़कर देखा तो बहुत भारी तादाद में लोग उसके लौट आने की गुहार करते हुए दौड़े चले आ रहे थे। वह वहीं रुक गया और देखता है कि सबसे आगे वही गणमान्य लोग थे जिन्होंने उसका अपमान करते हुए गाँव छोड़ने की धमकी दी थी। वे लोग आकर उसके पैरों में गिर गए और माफ़ी माँगने लगे। 

अचानक प्रधान ने अपना सिर झुकाते हुए कहा, “बाबा हमें माफ़ कर दो। आप सही थे। वह नग्न रहने वाला तथाकथित बाबा बहुत ही दुष्ट और ढोंगी था। आज वह उसी लड़की को लेकर भाग रहा था जिससे वह मंदिर में अभद्र इशारे कर रहा था। वह तो समय रहते ही उसी पागल युवक ने उसे खेतों में होकर जाते हुए देख लिया। उसने शोर मचा दिया और खेतों में कुछ लोग काम कर रहे थे। उन्होंने उस बाबा को धर दबोचा। उसने उस युवती का मुँह दबा रखा था और उसके हाथ पैर बाँध रखे थे। उसे पीठ पर लादे चुपके से जा रहा था। लेकिन उस बेचारे पागल ने उस दुष्ट बाबा के अभियान को असफल कर दिया और उस युवती को छुड़वा लिया तथा उस दुष्ट बाबा को उसके चमचों सहित पुलिस को पकड़वा दिया। वह पागल नहीं बहुत ही नेक लड़का निकला जिसने हमारी आँखें खोल दीं।”

उस प्रधान ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “हम सब से बहुत बड़ी भूल हो गयी जो हमने आपकी सलाह नहीं मानी। हमने इस सज्जन ग़रीब को कुछ उस दुष्ट बाबा के चमचों की बातों में आकर बहुत कष्ट पहुँचाया। अब यह पागल और इसका परिवार इसी गाँव में रहेगा। कहीं भी नहीं जाएगा।”

अंत में बाबा स्नेहमल ने ईश्वर को उस ग़रीब सज्जन की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया। उस प्रधान को मुस्कुराते हुए गले लगा लिया और उन सबको माफ़ कर दिया। गाँव वालों ने उससे गाँव लौट चलने की बहुत ज़िद की। लेकिन वह मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया। गाँव वालों की आँखों में आँसू थे। उन सबमें सबसे ज़्यादा दुखी वह सज्जन था जिसके लिए यह बाबा एक फ़रिश्ता बन कर आया था वरना उस बेचारे ग़रीब को न जाने कहाँ कहाँ दर दर की ठोकरें खानी पड़तीं। वे सब दुखी मन से न चाहते हुए भी उस बाबा को विदा कर रहे थे। स्नेहमल निर्मोही बना आगे बढ़ा जा रहा था। 

 

★ (इस अध्याय में वर्णित समस्त घटना का किसी भी धर्म विशेष से कोई मतलब नहीं है। यह घटना इस कहानी का हिस्सा मात्र है। इस घटना का किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई उद्देश्य नहीं है।) 

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