अहिंसा
प्रवीण कुमार शर्मा
बापू की जयंती की तैयारी पूरे शहर में ज़ोर-शोर से चल रही थी। दो दिन बाद ही गाँधी जयंती थी लेकिन शहर के सबसे बड़े गाँधी पार्क में गाँधी की प्रतिमा खण्डित हो रखी थी। सबसे पहले महापौर के बेटे का घूमते वक़्त उस प्रतिमा पर ध्यान गया था। उसने अपने पापा से कहकर सबसे पहले उस खंडित हुई प्रतिमा को सही करवाया। बापू की जयंती वाले दिन कई सारे नेता आए और ख़ुशी-ख़ुशी उस प्रतिमा पर फूल-मालाएँ पहनाकर चले गए।
कुछ समय के पश्चात जब शाम का समय हुआ तो एक सफ़ाई कर्मी बेचारा वहाँ आया और प्रतिमा के आसपास जो नेता लोग गंदगी फैला कर गए थे उसकी साफ़-सफ़ाई में लग गया। तभी पार्षद का लड़का और उसके कुछ चमचे वहाँ पार्क में आकर बीड़ी, सिगरेट, दारू आदि का नशा कर रहे थे और वहाँ गंदगी फैलाने लगे तभी वो सफ़ाई कर्मचारी उनको इस तरह गंदगी फैलाने की मना करने लगा लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी।
बातों ही बातों में उस सफ़ाईकर्मी के साथ वे लोग धक्का-मुक्की करने लगे। उसी समय वहाँ पर महापौर का लड़का घूमने आया हुआ था और उसने जब यह सब नज़ारा देखा तो वह भी वहाँ आ पहुँचा और उनका बीच-बचाव करने लगा लेकिन वह पार्षद का लड़का उससे भी धक्का-मुक्की करने लगा। महापौर के लड़के ने उसे बहुत ही विनम्रता से उसे समझाया लेकिन वह तो हाथापाई पर आ गया।
महापौर का वह लड़का देखने में बहुत ही सुडौल था और पार्षद का लड़का देखने में सूखी लकड़ी सा था फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। महापौर के लड़के के लाख समझाने के बावजूद वे लोग नहीं माने और सफ़ाई कर्मी की पिटाई करने लगे साथ में उस महापौर के लड़के को भी नहीं बख़्शा। पार्षद के लड़के ने उसके एक थप्पड़ रसीद कर दिया।
इतना सब होने के बावजूद वह महापौर का लड़का समझाइश और बीच-बचाव करता रहा लेकिन वे लोग उन दोनों को धमकाते रहे। जबकि एक प्रभावशाली व्यक्ति का बेटा होने के बावजूद वह उस सफ़ाईकर्मी को बचा कर दूर ले गया और उसका प्राथमिक उपचार के लिए उसे पास ही के क्लिनिक में ले गया।
वहाँ एक सभ्य बुज़ुर्ग ये सब देख रहे थे और सोचने लगे कि पार्षद के लड़के से हर क्षेत्र में समर्थ होने के बाबजूद भी वह महापौर का लड़का पार्षद के उस लड़के के व्यवहार को सहन कर गया और सफ़ाईकर्मी को बचा कर ले गया। सच्चे मायनों में महापौर के लड़के का यह व्यवहार अहिंसा का अद्भुत उदाहरण था।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- कविता
-
- अगर इंसान छिद्रान्वेषी न होता
- अगर हृदय हो जाये अवधूत
- अन्नदाता यूँ ही भाग्यविधाता . . .
- अस्त होता सूरज
- आज के ज़माने में
- आज तक किसका किस के बिना काम बिगड़ा है?
- आज सुना है मातृ दिवस है
- आवारा बादल
- ऋतुओं में ऋतुराज है बसंत
- कभी कभी जब मन उदास हो जाता है
- कभी कभी थकी-माँदी ज़िन्दगी
- कविता मेरे लिए ज़्यादा कुछ नहीं
- काश!आदर्श यथार्थ बन पाता
- कौन कहता है . . .
- चेहरे तो बयां कर ही जाया करते हैं
- जब आप किसी समस्या में हो . . .
- जब किसी की बुराई
- जलती हुई लौ
- जहाँ दिल से चाह हो जाती है
- जीवन एक प्रकाश पुंज है
- जेठ मास की गर्माहट
- तथाकथित बुद्धिमान प्राणी
- तेरे दिल को अपना आशियाना बनाना है
- तेरे बिना मेरी ज़िन्दगी
- दिनचर्या
- दुःख
- दुःख गिने भी नहीं जाते
- देखो सखी बसंत आया
- पिता
- प्रकृति
- बंधन दोस्ती का
- बचपन की यादें
- भय
- मन करता है फिर से
- मरने के बाद . . .
- मृत्यु
- मैं यूँ ही नहीं आ पड़ा हूँ
- मौसम की तरह जीवन भी
- युवाओं का राष्ट्र के प्रति प्रेम
- ये जो पहली बारिश है
- ये शहर अब कुत्तों का हो गया है
- रक्षक
- रह रह कर मुझे
- रहमत तो मुझे ख़ुदा की भी नहीं चाहिए
- राष्ट्र और राष्ट्रवाद
- रूह को आज़ाद पंछी बन प्रेम गगन में उड़ना है
- वो सतरंगी पल
- सब कुछ भुला दिया हम सपनों के सौदागरों ने
- सारा शहर सो रहा है
- सिर्फ़ देता है साथ संगदिल
- सूरज की लालिमा
- स्मृति
- हिन्दी से है हमारी पहचान
- क़िस्मत की लकीरों ने
- ज़िंदगानी का सार यही है
- कहानी
- सामाजिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-