मरने के बाद . . . 

15-12-2021

मरने के बाद . . . 

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मरने के बाद उसके पहचान वालों को
मैंने हँसते देखा है
जो उसके अपने थे
उनको भी जीते देखा है।
 
यही संसार का दुखद सत्य है
लेकिन जीने के लिए
अपनों को
जो परलोक चले गए
भूलना पड़ता है
यही जीवन का कृत्य है। 
 
भूलें नहीं तो जीना कठिन हो जाता है
भूलें तो मरणासन्नो को संसार की
निष्ठुरता का भान हो जाता है। 
मानव हृदय स्पंज की तरह है
जो कितना भी बड़ा से बड़ा दुख हो
सब कुछ सोख लेता है। 

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