हमारा घर ही अब वृद्धाश्रम हो चला है . . .
प्रवीण कुमार शर्माशर्मा जी अपने घर के बाहर लॉन में घूम रहे थे। तभी अंदर से मिसेज शर्मा का बुलावा आया, “अजी सुनते हो। पिंटू का फ़ोन आया है। तुमसे कुछ कह रहा है।”
“ठीक है, अभी आता हूँ,”शर्मा जी ने एक राहत की साँस लेते हुए कहा।
शर्मा जी ने घर में अंदर जाकर देखा तो फ़ोन कट चुका था और मिस शर्मा उदास सी बैठी हुईं थीं।
“क्यों क्या हुआ?” अचानक से मिसेज शर्मा के उतरे हुए चेहरे को देख कर शर्मा जी ने पूछा।
“अब की दीवाली पर भी हमारा पिंटू घर नहीं आ रहा। कह रहा है कि उसी समय कम्पनी की तरफ़ से विदेश जाने का प्रोग्राम है। सब विद फ़ैमिली जा रहे हैं तो वह भी विद फ़ैमिली जा रहा है,” मिसेज शर्मा ने अपना सर शर्मा जी के कंधे पर हताशा में लुढ़काते हुए कहा।
“इसमें उदासी की क्या बात है? बच्चे हैं घूम आने दो। बच्चे अब नहीं घूमेंगे तो क्या हमारी उम्र में घूमेंगे!” शर्मा जी ने अपने आँसू छुपाते हुए कहा।
"मैं कहाँ उदास हूँ? मुझे तो पिंटू के बेटे की याद आ रही थी। साल भर में दीवाली पर ही तो आते हैं। लेकिन इस बार तो दीवाली पर भी . . .” कहते-कहते मिसेज शर्मा बीच में ही रोने लगे गयी।
“कोई बात नहीं। चुप हो जाओ। गली में और बच्चे भी तो हैं। उनसे मन लगा लेना . . . ” एक फीकी सी हँसी हँसते हुए शर्मा जी ने मिसेज शर्मा से कहा।
कुछ देर बाद, शर्मा जी पुनः लॉन में आकर सोचने लगे कि हमारी तरह अब हमारे बच्चों को अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम नहीं भेजना पड़ेगा।
हमारा घर ही अब वृद्धाश्रम हो चला है . . . !
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