ख़ुद से ख़ुद ही बतिया लिया जाए

01-11-2025

ख़ुद से ख़ुद ही बतिया लिया जाए

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

आज जब कुछ
लिखने का मन नहीं कर रहा
तो क्या किया जाए! 
चलो बैठे बैठे यूँ ही
मुस्कुरा लिया जाए। 
हर ख़ालीपन को
मिटाने का एक ही तरीक़ा है
ख़ुद से ख़ुद ही बतिया लिया जाए। 
 
कई बार अनगिनत विचार
मन मस्तिष्क पर धावा बोल देते हैं
तो कभी-कभी मन मस्तिष्क विचार शून्य
हो जाता है। 
लाख कोशिश कर लो
एक भी विचार फिर नहीं कौंधता है। 
ऐसे में क्या किया जाए! 
 
चलो आराम से मन मस्तिष्क को
भार मुक्त किया जाए। 
क़लम और विचार का कुछ ऐसा
ही नाता है
एक आता है तो एक वहाँ से
चला जाता है। 
इन दोनों में सामंजस्य कभी कभार
ही हो पाता है
लेकिन जब होता है
तो कुछ लाजवाब ही होता है। 

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