रहमत तो मुझे ख़ुदा की भी नहीं चाहिए

15-01-2022

रहमत तो मुझे ख़ुदा की भी नहीं चाहिए

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

रहमत तो मुझे ख़ुदा की भी नहीं चाहिए
यकीन अपने भुजबल पर होना चाहिए। 
माना कि जीवन की लहरों में फँसा हुआ हूँ
पर दुआओं की बजाय पतवार पकड़े हुआ हूँ। 
अरे जब तक गिरने के लिए तैयार नहीं होऊँगा 
तो उठने की ज़िद कहाँ से कर पाऊँगा। 
महान वे नहीं जो कभी गिरे ही नहीं
महान वे हैं जो उठ खड़े हुए यहीं। 
गिरने का अनुभव ही तो काम आता है
गिर कर उठना, उठ कर गिरना नहीं सालता है। 
जीवन में हुआ वही सफल है
जिसने गिरने को बनाया ख़ुद का आत्मबल है। 
जीवन में अगर सब कुछ सहज ही मिल जाए
ऐसे भीरु जीवन से बेहतर है, मौत निश्छल ही मिल जाए। 
हमें अब तक सफल लोगों के ताज ही दिखे
उनके पीठ पर लगे विफलताओं के ख़ंजर नहीं दिखे। 
सफलता का ताज गर पहनना है
ख़ंजर तो पीठ पर निश्चय ही सहना है॥

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