रह रह कर मुझे

15-06-2022

रह रह कर मुझे

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

रह रह कर मुझे ये ख़्याल आता रहा
पिछला गुज़रा हुआ मुझे याद आता रहा। 
गर ज़माने को समय रहते हम समझ पाते
तो आज धोखों के झंझावातों में न उलझते। 
जो भी आया वो हमसे खेल खेलता रहा
भोला भाला है कह कर हमें सालता रहा। 
मासूमियत का मसीहा वह हमें कह गया
किसी और का दामन चुपके से वह थाम चला॥

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