भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
भीकम सिंह
1.
याद नहीं है
कब कहा उसने
आओ पास में
मैं ठहरा हूँ अभी
बस इसी आस में।
2.
चली निशा में
चुभती-सी हवा ज्यों
जिस्मों की ओर
निःशब्द प्रेम जागा
दहका पोर-पोर।
3.
प्रेम में हम
चले सैंकड़ों बार
हाथ मलते
मेरे लिए भला वो
रुख़ क्यों बदलते।
4.
पॅंखुड़ी होंठ,
मुरझायी घास-सी
पड़ी है देह
हवा, तु रुख़ ज़रा
बदलके तो देख।
5.
दिन ख़ुशी के
सिमट गए पीछे
रातें क़ैद हैं
वहाँ किसी घर में
बड़ी छत के नीचे।
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