वृक्षारोपण
डॉ. पद्मावतीवृक्षारोपण अभियान ज़ोर शोर से चल रहा था। हाल ही में पार्षद बनी बिंद्येश्वरी देवी टीवी रिपोर्टरों और संवाददाताओं को काँख में दबाए अतिशय ऊर्जा से इस अभियान में भाग ले रहीं थी। आजकल वो हर चैनल और अख़बार की ख़बर थीं। आज भी साढे़ बारह बजे कृष्ण नगर कॉलोनी में एक कार्यक्रम रखा गया था, जिसका उद्घाटन मंत्री जी करने वाले थे जिसमें प्रदेश के विधायक भी सम्मिलित हो रहे थे। बिंद्येश्वरी देवी सुबह से ही झूम रही थी। आज का कार्यक्रम भविष्य की नयी संभावनाओं को जन्म देने वाला था। बारह बजने वाले थे और उसे निकलना था। इतने में फ़ोन और द्वार की घंटी, दोनों एक साथ बजी। सामने की बैठक का पर्दा खींच कर पहरेदार अंदर आया।
“जी?” बिंद्येश्वरी ने रिसीवर उठाया।
“मैडम आज साढ़े बारह बजे . . . वृक्षारोपण कार्यक्रम . . . आपकी उपस्थिति कितनी अनिवार्य है आप को पता है।”
“हाँ . . . हाँ . . . बाक़ी सब तैयारियाँ हो गईं . . . न्यूज़ कवरेज . . .?”
“जी . . . सब तैयार,” फ़ोन कट गया।
“राम सिंह . . . क्या हुआ?” वह राम सिंह की ओर मुख़ातिब हुई।
“मैडम . . . मोहल्ले वाले आपसे मिलने को वास्ते आया।”
“ओह! बुलाओ,” इससे पहले रामसिंह बाहर जाता, तीन चार आदमी तेज़ी से अंदर बैठक में चले आए।
“ये . . . ये . . . क्या हो रहा है? आप अच्छी तरह जानती हैं आपकी नाक के नीचे गली में इतने पुराने घने
वृक्ष की कटाई हो रही है और आप ऐसे घिनौने कार्य को समर्थन दे रही हैं?” अंदर घुसते ही कोपाविष्ट
मिस्टर राजमणि दहाड़े।
“यह उन बँगले वालों का निजी मामला है। और आप भी जानते हैं हमारे सामने कितनी गंभीर समस्याएँ हैं। उस पेड़ से उनकी चारदीवारी कमज़ोर हो जाएगी इसीलिए वे काट रहे हैं।”
“निजी मामला? नगर निगम का लगाया दस साल पुराना पेड़ है वह। कितना घना छायादार। उनकी आज बनी कोठी की शान में आड़े आया और काट दिया? निजी मामला?” वसंत जी तैश में आकर बोले।
“देखिए हमारा समय क़ीमती है,” उसकी आवाज़ में लापरवाही थी और आँखें . . . आँखें घड़ी की सुइयों
पर।
“ओह हाँ . . . और उसकी क़ीमत बँगले वाले जानते है।”
“क्या बकवास कर रहे है?” उसकी त्योरियाँ चढ़ गईं।
“अच्छा . . . बँगले वाले कुछ भी करेंगे और आप समर्थन देंगी? आपका मौन ही उनकी हिम्मत बन गया
है। वृक्षों को काटना तो सामाजिक अपराध है, अवैध है,” मिश्रा जी ताव में आकर बोले। “हम शिकायत
करेंगे। चुप नहीं रहेंगे।” वे कई सालों से इस गली में रह रहे थे। उस पेड़ को फलते देख चुके थे। आज उसे
गिरते देखकर उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही थी।
“देखिए बेकार का ड्रामा मत कीजिए। क्या आप लोगों के घरों में लकड़ी की मेज़, अलमारी और कुर्सियाँ नहीं हैं? क्या खाने की मेज़ पर खाना नहीं खाते? चलिए मैं आपकी समस्या की किसी और दिन चर्चा करूँगी। हम एसोसिएशन की मीटिंग रखेंगे और भविष्य में ऐसी समस्याओं का समाधान ढूँढेंगे। ख़ैर . . . आज मुझे बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित होना है। कृपया आज्ञा दीजिए,” बिंद्येश्वरी देवी ने सर झटक कर वक्र स्मित से रामसिंह को इशारा किया और अंदर चली गई।
टन्न . . . टन्न . . . . टन्न्न्न . . . . . . अब तो घड़ी ने भी बारह बजा दिए।
2 टिप्पणियाँ
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आज के समाज सेवियों और नेताओं का कटुसत्य!! साधुवाद
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हर जगह दिखावा है और खुद के भाग्य को चमकाने का तरीका ढूंढ लेते हैं ये नेता। सही चित्रण।बधाई पद्मावती जी! !
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