मनसा . . . वाचा . . . क
डॉ. पद्मावती
मिश्रा जी समाज सेवी हैं। उदार दिल वाले। आए दिन उनके भाषण होते हैं कम्यूनिटी हॉल में . . . जातिवाद के विरोध में। दो बार विधायक का चुनाव भी जीत चुके हैं। इस बार क़िस्मत टेढ़ी हो गई है।
कई क्षेत्रों में उनकी पैठ है। कला में भी रुचि रखते हैं। एक नृत्य विद्यालय खोलने की सोच रहे हैं।
स्वयं अँगूठा छाप है पर कई स्कूल उनके नाम से चल रहे हैं। विद्या के क्षेत्र में माँ लक्ष्मी उन पर अपार करुणा बरसा रही है। इसी कारण शहर के लगभग सभी नामी निजी स्कूलों को ख़रीद कर उन्होंने अपनी छत्रछाया में ले लिया है। बल केंद्रीकरण में उनकी अपार श्रद्धा है।
पर . . . आजकल कुछ उदास दिख रहे हैं। नृत्य विद्यालय के लिए प्रशिक्षित शिक्षिका की चिंता खाए जा रही है। चाहते हैं कि ऐसे प्रदेश से कौशल की खोज हो जो प्रख्यात भी हो और नृत्य विद्या में पारंगत भी।
आज शाम को जलसा है। जलसे में उनका भी भाषण है। मुद्दा-जातिवाद।
आधा घंटा अविराम बोलते रहे, “देश को जातिवाद ने खोखला कर रखा है। प्रतिभा जाति का आश्रय नहीं लेती।”
नारा भी दिया, “कौशल देखो जाति नहीं, तलवार देखो म्यान नहीं।”
लोगों ने अभिभूत होकर जयकारा लगाया। वैसे यह इलाक़ा सवर्णों का नहीं है।
पहला बोला, “मिश्रा जी देवता हैं।”
दूसरा बोला, “ईश्वर का अवतार! पंडित और इतना सद्भाव?”
तीसरे की आवाज़ आई, “हम दोषी हैं। वरना पिछली बार मिश्रा जी न हारते। अब सबने ठान लिया है। वोट देंगे तो उन्हें ही। पूरा इलाक़ा प्रतिबद्ध है।”
चौथा अपराध बोध से चिल्लाया, “जीतेंगे . . . जीतेंगे . . . अबकी बार . . . मिश्रा जी ही जीतेंगे।” चिल्लाते-चिल्लाते रो पड़ा।
नामी ठेकेदार कृष्ण स्वामी अय्यर की धर्मपत्नी स्टेज पर आईं। मिश्रा जी को फूल माला अर्पित की।
वे गद्गद् हो गए। इस बार का टेंडर उनके पति ‘अय्यर जी’ को मिला है। मिश्रा जी की उदार दिली।
उन्होंने अपने बग़ल वाले को उठाया, सीट ख़ाली करवाई और स्टेज पर उन्हें आसन दिया।
आहिस्ता बोले, “धन्न भाग अय्यर देवी। आप पधारीं हमारी समस्या का हल लेकर।”
उनके दोनों हाथ जुड़ गए। कलाइयों को आदत हो गई है। वे जनता के सेवक हैं।
“समस्या? और आपको?” नारायणी की आँखों में आश्चर्य फैल गया।
“समस्या गंभीर है नारायणी देवी . . . आपकी सहायता चाहिए।”
वे उनकी विनम्रता पर नतमस्तक हो गईं। धड़ पैंतालीस डिग्री पर झुक गया, “सेवा का अवसर दीजिए मिश्रा जी।”
“हमारे कला विद्यालय के लिए शिक्षिका चाहिए,” उनका स्वर अब भी गंभीर था।
“जी . . . तो?”
“कुछ नहीं,” सायास होंठों पर मुस्कुराहट ला बोले, “एक विचार आया है आपको देखकर। कितना अच्छा हो अगर नृत्य शिक्षिका आप के क्षेत्र से हो तो? और . . . और . . . मैं चाहता हूँ वह ब्राह्मण ही हो। अब क्या छिपाना देवी जी . . . हुनर अगर कहीं है तो . . . आगे आप विदुषी हैं। सब समझती हैं,” मिश्रा जी की खुसपुसाहट से नारायणी के कान फट गए।
सूरज डूबा . . . शाम गहराई . . . आज एक बार फिर अँधेरा छा गया।
जमघट में समवेत नारा गूँजा, “जीतेंगे . . . जीतेंगे मिश्रा जी जीतेंगे . . . हमारा मसीहा . . . पंडित जी।”