गोलू के आम पापड़
डॉ. पद्मावतीमीरा के आँगन में एक घना नीम का वृक्ष था जिस पर तोते का एक जोड़ा रहता था—गबरी और मिठू। गबरी तोती ने दो अंडे दिए थे पर दुर्भाग्य वश एक अंडा गिर कर टूट गया था। अब बचे उस दूसरे अंडे की गबरी और मिठू जी-जान से रक्षा कर रहे थे।
कुछ दिन बाद अंडा फोड़कर चूज़ा बाहर निकला। उन दोनों ने उस नन्हे को नाम दिया—‘गोलू’। हल्का हरा रंग, लाल रंग की छोटी सी चोंच, गोल-मटोल मुलायम और चिकना। बड़ा ही मनभावन रूप था उसका। उसकी आँखें बड़ी प्यारी थीं—काले बटन की तरह। गबरी और मिठू की जान था: ‘नन्हा प्यारा गोलू’।
दोनों बड़े प्यार से उसका पालन-पोषण कर रहे थे। गबरी हमेशा घोंसले में उसकी निगरानी करती। मिठू उड़कर जाता। मीठे-मीठे फल कुतर कर चोंच में भर-भर लाता। और सब मिलकर खाते।
धीरे-धीरे वह बड़ा हो रहा था। छोटे-छोटे पंख आने लगे। माँ-बाप के असीम प्यार के कारण थोड़ा शरारती और ज़िद्दी भी हो गया था। दिन-रात धमाचौकड़ी मचाता रहता, कभी इस डाल पर तो कभी उस डाल पर। गबरी को बहुत चिंता सताती थी। वह बार-बार मना करती रहती कि इतनी उछल-कूद ठीक नहीं . . . अभी पंख कोमल हैं। पर न . . . वह तो माँ की बात मानने से रहा।
विशाल नीम की डालियाँ छत पर फैली हुईं थीं। आए दिन वहाँ कुछ न कुछ सूखता रहता। गोलू डाल पर बैठ जब भी छत की ओर देखता तो सोचने लगता कि कितनी लम्बी छलाँग उसे वहाँ पहुँचा सकती है? लेकिन माँ की डाँट का स्मरण आते ही वह अपने आप को रोक लेता।
पर आज मौक़ा मिल ही गया था। गबरी और मिठू उसे चेतावनी देकर बाहर निकल गए थे कि वह घर पर ही रहे और कोई शरारत न करे। और यह भी बोल गए थे कि अगर वह कहना मानेगा तो इसके बदले में उसे आज मीठे-मीठे अंगूर खाने को मिलेंगे। उसने ख़ुशी-ख़ुशी आज्ञाकारी की तरह हामी भरी। पर उनके जाने के तुरंत बाद फुदक कर डाल पर चला गया देखने कि आज क्या सूख रहा है छत पर?
देखा तो ख़ुशी से झूम उठा।
“वाह! रसीले आम के पापड़! मज़ा आ गया . . . अंगूर नहीं मैं तो आम खाऊँगा . . . आम।” वह मचल उठा।
मीठी ख़ुश्बू चारों ओर फैली हुई थी। उसके मुँह में पानी आ गया। ठोढ़ी पर हाथ रख वह सोचने लगा कि जाएगा तो सही पर वापस कैसे आएगा?
उसने चारों ओर गर्दन घुमाई। पेड़ की कई टहनियाँ छत पर पसरी हुईं थीं। यानी उछल कर वह किसी एक डाल पर चढ़ सकता था और फिर धीरे से वापस अपने घोंसले में आ सकता था।
वह निश्चिंत हो गया। कोई ख़तरा नज़र नहीं आया।
निर्णय लिया। एक लंबी छलाँग लगाई . . . धड़ाम . . . ऽ . . . ऽ . . . ऽ
हाय! बेचारा मुँह के बल गिरा और एक ओर लुढ़क गया। सिर चकरा गया लेकिन हिम्मत न हारी। अगले ही क्षण शरीर को फड़काया और सीधा हो गया।
मुस्कुरा कर बोला, “मीठे आम गोलू के नाम।” वह मन ही मन फूला न समा रहा था।
कूल्हे मटकाता अब वह चादर के पास गया। देखा उन पर तो जाली बिछी हुई थी। चारों कोनों में छोटे-छोटे पत्थर भी थे।
उसने उसे छूकर देखा। भारी थी। उठा न पाया।
अब क्या करे? कैसे खाए मीठे आम पापड़?
अचानक उसकी दृष्टि उस कोने पर गई जहाँ से वह जाली थोड़ी सी उठी हुई थी।
“मिल गया रास्ता . . . मिल गया रास्ता!” वह ख़ुशी-ख़ुशी चिल्लाने लगा।
फिर क्या था? सिकुड़ कर रेंगता हुआ धीरे से अंदर घुस गया और मज़े से कुतरने लगा . . . मीठे-मीठे रसीले आम-पापड़।
धूप तेज़ थी पर वह तो अपनी धुन में मस्त था। उसे ध्यान न रहा। कुछ देर में नींद आने लगी। वह वहीं सो गया।
दोपहर को गबरी और मिठू घर आए। घोंसले पर गोलू को न पाकर परेशान हो गए। डाल-डाल जाकर देखा। कहीं पर भी गोलू का नामों-निशान न मिला। गबरी सिर पीट-पीट कर रोने लगी। आँसू बहाते मिठू से बोली, “हो न हो . . . काली कलूटी बिल्ली की ही करतूत है, वही मार कर खा गई होगी मेरे लाल को। उसकी बुरी नज़र थी हमेशा मेरे बच्चे पर . . . हाय मैं क्या करूँ अब . . .? कैसे जिऊँ लाल के बिना?”
मिठू भी ज़ार-ज़ार आँसू बहा रहा था। दोनों बहुत दुखी थे।
लेकिन तभी वहाँ गोलू की आँख खुली। उसने देखा दोपहर हो गई है। सोचा, “अरे, बहुत समय हो गया। माँ बापू आ गए होंगे। मुझे न पाकर वे परेशान हो रहे होंगे। मुझे वापस जाना चाहिए।”
वह बाहर निकलने का मार्ग खोजने लगा। जहाँ से वह अंदर आया था, जाली का वह छोर तो उसे दिखा ही नहीं। सब रास्ते बंद। अब तो वह फँस चुका था। उसे रोना आ गया। घबराता चीखने लगा, “माँ . . . माँ . . . माँ . . . मुझे बाहर निकालो।”
डाल पर बैठे गबरी और मिठू ने गोलू की चीख सुनी। वे दोनों चौंक गए। पहचान लिया उन्होंने अपने नन्हे की आवाज़ को। ढूँढ़ने लगे कि आवाज़ कहाँ से आ रही है?
देखा, छत पर सूखे आम पापड़ों के बीचों-बीच गोलू आँखें भींचे रो रहा है।
गबरी और मिठू को मामला समझ में आ गया। वे तुरंत उड़ कर उसके पास आए। गोलू बुरी तरह डरा हुआ था। मिठू ने जाली के चारों ओर जा कर देखा। वह छोर अब भी उठा हुआ था जिससे गोलू अंदर गया था। दरअसल भय के कारण गोलू देख न पाया था। मिठू सावधानी से अंदर घुसा और उसे बाहर निकाल लाया।
बाहर आते ही गोलू दौड़ कर गबरी के पास आया। माफ़ी माँगता हुआ बोला, “माँ, अब मैं तुम्हारा कहा कभी न टालूँगा। हमेशा तुम्हारी बात मानूँगा। मुझे पता चल गया कि माँ की बात न मानने का क्या नतीजा होता है। मुझे माफ़ कर दो माँ . . .।”
गबरी ने प्यार से उसे गले लगा लिया। मिठू ने उसकी पीठ थपथपाई और फिर दोनों उड़ चले उसे लेकर अपने घोंसले की ओर।
1 टिप्पणियाँ
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बाल मनोहर एवं बडी रोचक कहानी । सचमुच माता पिता का कहना मानना चाहिए। भाषा शैली अति सरल और सहज है कहानी पढकर ऐसा अह्सास होता है कि गोलू ने नही मैने आम पापड का स्वाद चखा। आपको बहुत बधाई। इसे किसी बाल साहित्य की पत्रिका मे भेजिऐ। धन्यवाद
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