हार्ट स्कैन

01-07-2023

हार्ट स्कैन

डॉ. पद्मावती (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

“डॉक्टर! हार्ट स्कैन क्या ज़रूरी है?” 

वातानुकूलित कमरे में भी निशा पसीने से भीग गई। कल से अन्न का दाना मुँह में नहीं गया था। सर चकरा रहा था। टाँगें काँप रही थी। लगा यह चमचमाती कृत्रिम छत सर पर गिर जाएगी। 

“देखिए मुन्ने का हार्ट स्कैन करवाना होगा! तेज़ बुख़ार हृदय में तरल द्रव भर देता है। मैं लिखे देता हूँ। एम्बुलेंस तैयार है। आप चले जाइएगा। चिंता न करें। आगे जैसा बताया गया है, किया जाएगा।” 

“मुन्ना ठीक हो जाएगा न डॉक्टर? अभी तक तो ठीक-ठाक ही था,” निशा दहाड़ मार कर रोने लगी। 

“चुप रहो निशा, चुप रहो। डॉक्टर कह रहे हैं न तो बस चलो। सब ठीक होगा। जल्दी!” वे दम्पति बुरी तरह से घबराए हुए थे। 

अविनाश ने डॉक्टर के हाथ से फ़ाइल ली और स्ट्रेचर के पीछे भागने लगा। राहुल तीन साल का था। दो दिन पहले तेज़ बुख़ार आया था। और वे दोनों उसे लेकर इस कॉर्पोरेट अस्पताल में इलाज के लिए आए थे। रक्त परीक्षण में संक्रमण का स्तर कुछ बढ़ा हुआ मिला और कॉरपोरेट उपचार शुरू। आज अचानक सुबह हार्ट स्कैन का आदेश। 

एम्बुलेंस बाहर तैयार थी। दोनों मुन्ने को लेकर डॉक्टरों की एक टीम के साथ हार्ट इंस्टिट्यूट रवाना हो गये। 

डॉक्टर शर्मा अपने कैबिन में घुसे तो पाया डॉक्टर अरुण और डॉक्टर मिश्रा भी वहीं मौजूद थे। 

“क्या हुआ यार बच्चे को? क्या हुआ?” 

“साधारण-सा, हाँ वायरल है और क्या होगा?” डॉ. शर्मा ने कोट ढीला कर चाय की प्याली की ओर इशारा किया। 

“तो ये हार्ट स्कैन क्यों?” डॉक्टर अरुण की आँखें आश्चर्य से फैल गई। 

“डॉ. आप यहाँ नए हो। जान लो यहाँ के तौर-तरीक़े नियम-क़ायदे। यह प्रक्रिया इस अस्पताल में अनिवार्य है,” शर्मा के चेहरे पर मुस्कुराहट थी जो डॉ अरुण को परेशान कर रही थी। 

“क्यों? क्या औचित्य?” डॉ. अरुण ने तीन कपों में चाय डाली। 

“देखो समझाता हूँ भई। यहाँ मरीज़ जब आता है तो वह उन सब बीमारियों से भी आश्वस्त हो जाना चाहता है जो उसे कभी थी ही नहीं। और उनकी संतुष्टि पर ही तो हमारा भविष्य टिका है। समझे? और डॉक्टर मिश्रा आपका केस कैसा है?”

“बिलकुल ठीक यार। एक दो दिन में डिस्चार्ज दे देंगे।” 

“दस दिन हो गए यार अब तो छोड़ दो,” डॉ. अरुण ने घूँट भरते कहा। 

“तुम भी न अरुण, घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?”

अरुण ने चश्में पर चाय की भाप पोंछी और उनकी ओर देखा। कमरे में ज़ोर का ठहाका लगा जिसकी आवाज़ कॉरिडोर तक गूँज गई। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कहानी
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कहानी
सांस्कृतिक आलेख
लघुकथा
सांस्कृतिक कथा
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
यात्रा-संस्मरण
किशोर साहित्य कहानी
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
शोध निबन्ध
सिनेमा और साहित्य
विडियो
ऑडियो