सम्मोहन
डॉ. पद्मावती
“वाह! क्या लगता है कल किसी का क़त्ल होगा। पुलिस आएगी . . . पकड़कर ले जाएगी सेंट थामस कॉलेज की मुनमुन शर्मा को,” सयोनी भारी आवाज़ में आँखें गोल-गोल घुमाती बोली। क्लास में ठहाका लगा।
सयोनी, निशा, सिम्मी सब मिलकर मुनमुन की खिंचाई कर रही थीं।
क्योंकि कल ‘उसने’ बुलाया था कॉफ़ी डे पर पहली बार मिलने के लिए उसे। कुछ दिन पहले फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी ‘उसने’ मुनमुन को। बस यही परिचय था। अब तक ‘उसे’ देखा न था। ऑडी कार में बैठे उस हैंडसम की प्रोफ़ाइल पिक देखकर मुनमुन उसे अपना सब कुछ मान बैठी थी। और जब उसने मिलने का प्रस्ताव रखा तो होश ही उड़ गए थे उसके। अतिशय उत्सुकता में कल कॉलेज से ही निकल जाने का प्लान बनाया जा रहा था।
“कुछ जलने की गंध आ रही है। रो मत बालिके . . . तुझे बी एम डब्ल्यू वाला मिलेगा . . .” मुनमुन ने हथेली उठाकर उसे आशीर्वाद दिया तो सिम्मी और निशा ने कोरस में तथास्तु कहा और सभी पेट पकड़ कर हँसने लगी
“चलो यार प्लीज़ सँभाल लेना कल . . . सुमन मैम की क्लास . . .” उसने घर जाने की जल्दबाज़ी दिखाई। पाँव ज़मीन पर न पड़ रहे थे। आसमान में उड़ी चली जा रही थी।
उसका वाक्य पूरा होने से पहले सिम्मी बोली, “टेंशन मत ले यार . . . निकल जा। कल मैम नहीं आएगी . . . अभी पता करके आई हूँ . . . टेंशन नहीं।”
मुनमुन उसे चूमती बाहर निकल गई . . . हाथ हिलाती।
♦ ♦ ♦
गली में आते ही मुनमुन ने देखा छोर पर वो कुतिया जिसने हाल ही में उनकी बिल्डिंग की सीढ़ियों के नीचे चार पिल्लों को जन्म दिया था लेकिन एक–एक करके तीन पिल्ले उठाकर ले गया था कोई और अब बेचारा एक ही बचा था, मुँह फाड़े रो रही थी। वहीं और दो-तीन बदमाश कुत्ते भी खड़े थे जो गुर्रा–गुर्रा कर उसे डरा रहे थे जिनमें से एक उन पिल्लों का जैविक जनक भी था शायद। वह बहुत डरती थी उन कुत्तों से। उसे देखते ही वह कुतिया रोना छोड़ पूँछ हिलाती उसकी ओर आई और झुककर धीरे से उसका पाँव चाटने लगी। उसने प्यार से उसे दुलराया और चारों ओर नज़रें घुमा कर देखा . . . वह कहीं नहीं था . . . उसका इकलौता जीवित पिल्ला। पता नहीं कहाँ चला गया था।
वह दौड़ कर घर के अंदर आई और चिल्लाई, “माँ . . . वो पिल्ला कहाँ गया? कल भी था न . . . मैंने दूध भी दिया था . . . यहीं तो था, कहाँ गया?”
अंदर से कोई जवाब न आया।
“माँ . . .” वह फिर चिल्लाई, “कहाँ गया वह पिल्ला?”
“ऐसे क्यों चिल्ला रही है तू?” अल्का ने वहीं अंदर से आवाज़ लगाई, “वो शरारती पिल्ला . . . चला गया रात उन चार कुत्तों के बीच माँ की आँख बचाकर। कब तक बचाती वो बेचारी माँ। चीर कर रख दिया चारों ने। चीथड़े हो गए उसके। मर गया सुबह। कूड़ा गाड़ी आई और ले गई . . . लेकिन तू क्यों इतना . . .”
सन्न रह गई मुनमुन। चेहरे का रंग बदल गया।
अचानक से फोन की घंटी बजी। अब तो वह और भी घबरा गई। धीरे से डरते हुए स्क्रीन पर नज़र घुमाई तो देखा उसी का फोन आ रहा था।
दिल तेज़ी से धड़कने लगा। समझ न आया क्या करे? उठाए या न? मन ही मन अपने आप को तसल्ली देने की कोशिश करने लगी। आज पता नहीं क्यों डर लगने लगा था उसे। ऐसा पहली बार था जब उसने अपने पापा से कुछ छिपाया था। लाड़ली थी पापा की वह। वह तेज़ी से कमरे के अंदर गई। दरवाज़ा बंद कर लिया और फोन की घंटी सुनने लगी। फोन लगातार बजे जा रहा था . . . लगातार और जब उसकी आवाज़ सुननी असह्य हो गई तो झटपट फोन कान से लगा लिया, “हैलो . . . हैलो मैडम . . .” सम्मोहित करने वाली वही आवाज़ . . . मन एक बार फिर उसमें गोते खाने लगा।
“इतनी देर क्यों की फोन उठाने में? कल कॉफ़ी डे पर आ रहीं है न? वहाँ से कहाँ जाएँगे आगे का प्लान कल बताऊँगा। यही बताने के लिए फोन किया था।”
“देखिए,” मुनमुन की आँखों के सामने पापा का चेहरा आ गया। लगा जैसे पापा सामने खड़े हैं और उसे देख रहे हैं।
बिना सोचे-समझे झट से मुँह से निकल गया, “मेरे . . . मेरे पापा कह रहे थे कि आप को घर बुला लिया जाए ताकि हम सब आप से . . .”
वह सकपका गई। स्वयं पर क्रोध आया यह सोच कर कि यह क्या कह दिया उसने? ऐसा तो सोचा भी न था तो मुँह से यह कैसे निकल गया?
“क्या? व्हाट नॉनसेंस? पापा . . .? तुमने पापा को कहा? ये बात पापा को बताई जाती है? मेरा मतलब . . . तुम्हें अभी कुछ न कहना था . . . मैं . . .” बात पूरी होने से पहले ही वह चीखा और फिर ग़लती समझ कर बात सँभालने की कोशिश करने लगा।
मुनमुन को आगे कुछ सुनाई नहीं दिया। ऐसा लगा जैसे आसमान में उड़ते हवाई जहाज़ ने तेज़ रफ़्तार से लैंड करते हुए धरती को छू लिया हो। वह ज़मीन पर आ गई। होश ठिकाने लग गए और सब स्पष्ट समझ आ गया।
“ओह . . . सॉरी . . . लगता है कि ग़लत नंबर लग गया . . . आइ एम वेरी सॉरी।”
उसकी आवाज़ में और दिल की धड़कनों में अब ठहराव आ गया। तूफ़ान गुज़र चुका था। सायास मुस्कुराकर उसने फोन काटा और वह नंबर सदा के लिए ब्लॉक कर दिया।
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