ख़तरा
डॉ. पद्मावतीगाड़ी तेज़ गति से दौड़ रही थी, रजनी की यादें उससे भी द्रुत गति से विपरीत दिशा में भाग रहीं थी। रजनी की नयी नयी नौकरी लगी थी, अस्थाई, शासकीय विद्यालय में हिंदी अध्यापिका, कर्नाटक का एक छोटा सा प्रांत, जहाँ हिंदी बोलने वालों की संख्या नगण्य प्रायः थी। रजनी प्रसन्न थी लेकिन हमेशा सशंकित और भयभीत। कहीं कोई ख़तरा न उपस्थित हो जाए और पहले की भाँति उसे अपनी नौकरी न खोनी पड़े। इसी शंका में दिन बीत रहे थे।
आज स्कूल में प्रवेश करते ही एक कोमल आवाज़ उसके कानों से टकराई . . .
"आप हिंदी की अध्यापिका मिस रजनी जी हैं न?"
रजनी ने देखा एक भद्र शालीन महिला सामने खड़ी थी और उससे पूछ रही थी।
"हाँ! लेकिन आप कौन?" रजनी ने कुछ रुखाई के साथ कहा . . .
"मिसेज खन्ना! मेरा बेटा नीलेश आपका छात्र है। पाँचवीं कक्षा में पढ़ता है, आपकी बड़ी प्रशंसा करता है।"
वे जल्दी-जल्दी बोले जा रहीं थीं। रजनी की पैनी दृष्टि उनको परख रही थी.. छरहरी काया, सुंदर मुख,काली गहरी आँखें . . .
रजनी ने दबी आवाज़ में कहा, “आप हिंदी अच्छी बोल लेती हैं, यहाँ की भी नहीं लगती!"
मिसेज खन्ना बोली, "मेरे पति राकेश खन्ना भारतीय सेना में विंग कमाण्डर हैं। तबादला होता रहता है हर तीन सालों में घूमना पड़ता है, इस बार दक्षिण में, सोचा था कि हिंदी पढ़ाने वाले कम होंगे, लेकिन आपको पाकर आशा फिर बँध गई। वैसे तो मैंने भी एम.ए. हिंदी की डिग्री की है, लेकिन नीलेश मुझसे कहाँ पढ़ता है? आप बहुत शुद्ध उच्चारण करती हैं, इसीलिए मैं आश्वस्त हो गई कि अब यहाँ भी उसकी हिंदी नहीं बिगड़ेगी।"
मिसेज़ खन्ना प्रशंसा के फूल झार रही थी लेकिन रजनी के दिल में प्रश्नों का सैलाब उमड़ रहा था . . .
अपनी घबराहट को छुपा कर उसने पूछा, "आप नौकरी नहीं करतीं?"
मिसेज खन्ना ने कहा, "नहीं! जब बेंगलूर में थी तब हिंदी प्राध्यापिका की नौकरी करती थी। अच्छी तनख़्वाह भी मिलती थी। मुझे बहुत अच्छा लगता था। लेकिन फिर इनकी तबादले वाली नौकरी और नीलेश की पढ़ाई . . . घर-गृहस्थी, समय नहीं मिला, अवसर भी नहीं, शायद ज़रूरत भी नहीं . . . इसीलिए अब घर तक सीमित हो गई हूँ। लेकिन आप को देखकर बहुत संतोष हुआ। आप बहुत प्रतिभावान है। आपने किसी सरकारी नौकरी के लिए प्रयास नहीं किया?”
रजनी ने आश्वस्त होकर निर्लिप्त भाव से उत्तर दिया, “किया है, पटना के शासकीय विद्यालय में आवेदन कर दिया है, अभी अल्प-समय के लिए पद स्थगित कर दिया गया है, बहुत जल्द मिलने की संभावना है।”
“ओह! बहुत बहुत शुभकामनाएँ! वैसे आप जैसी विदुषी महिला के लिए संभावनाओं और अवसरों का अभाव नहीं होता। अच्छा चलती हूँ। मिलते रहेंगे। नीलेश का आप ध्यान रखेंगी, ऐसा विश्वास है। नमस्ते।"
मिसेज खन्ना चली गई लेकिन रजनी का मन दुविधा से भर गया। आज एक बार फिर वह उदास हो गई।
मिसेज खन्ना में फिर उसे ख़तरे की घंटी नज़र आने लगी।
मन में विचार आने लगे. . . "अगर स्कूल प्रबंधन मिसेज खन्ना की विद्वता से प्रभावित हो गया, जैसे कि वह न चाहते हुए भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी, तो उसकी नौकरी तो बचने से रही। दिल कहने लगा . . . क्या पता कल को वे आकर अपना आवेदन पत्र हिंदी विभाग में नौकरी के लिए दे दे तो उसकी नौकरी की तो ख़ैर नहीं . . .
"हे, भगवान! क्यों तू हमेशा मुझे इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है? क्यों देकर छीन लेता है? मैं क्या करूँ कि अपनी नौकरी बचा सकूँ . . .
विचार तूफ़ान मचा रहे थे और रजनी घिरी जा रही थी। असुरक्षा की भावना से मन घबराने लगा था। विश्वास होने लगा था कि "यह महिला मेरी नौकरी खा जाएगी"। भय धीरे-धीरे गहराने लगा!
अपनी विवशता पर क्रोध आने लगा, घृणा होने लगी। रोना आने लगा। कभी सोचती, व्यर्थ घबरा रही हूँ। ऐसा कुछ नहीं होगा। लेकिन मन तो मन है, मानने से रहा।
और फिर भय ने धीरे-धीरे, मालूम ही नहीं चला, कब कुंठा का रूप ले लिया। उसे इस बात की भनक ही नहीं लगी कि उसके व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है।
वह आत्म-केंद्रित होती जा रही थी, मन की दशा बिगड़ने लगी थी। छोटी-छोटी बातों में चिढ़ने लगी थी। और क्रोध का विरेचन मासूम नीलेश में होने लगा था। उसे देखते ही मन में उसकी माँ की सूरत घूम जाती और वह तिलमिला उठती। मन जब उद्वेलित हो जाता है, तब विवेक काम करना बंद कर देता है . . . उसकी मनोग्रंथि का शिकार नीलेश बन गया था!
वह उस पर अकारण रोष प्रकट करने लगी। आये दिन बिना किसी कारण उसे क्लास में अपमानित करने का बहाना ढूँढ़ने लगी। नीलेश को सताने में उसे आनंद आने लगा था।
नीलेश इस अप्रत्याशित परिवर्तन से अनभिज्ञ था। ग़ुस्सा हदें पार कर रहा था।
आज उसने नीलेश पर हाथ उठा दिया। कुछ पल के लिए वह ठिठक गई, हड़बड़ा गई,, ग्लानि हुई, सोचा . . . यह मैंने क्या कर दिया?
इस नन्ही सी जान पर हाथ उठा दिया . . .
फिर मन को सँभाल लिया। धीमे से अपने आप को समझाया, नहीं . . . आगे ऐसा नहीं होगा। वह उस मासूम को नहीं सताएगी।
अगले दिन मिसेज खन्ना को सवेरे-सवेरे स्कूल के द्वार पर देखकर वह आशंकित हुई, मन में पश्चाताप तो हो रहा था लेकिन उन्हें देखकर उसकी भौंहें तन गईं।
सोचा, शिकायत करने आयी होंगी।
मिसेज खन्ना रजनी को देखते ही मुस्कराईं और बड़ी सादगी के साथ कहा, "रजनी जी, मैं जानती हूँ आपने जो किया नीलेश की भलाई के लिए ही किया होगा। दरअसल इकलौता होने के कारण थोड़ा सा ज़िद्दी हो गया है। कृपया बुरा न माने। आगे से ऐसी ग़लती नहीं करेगा। वह तो आपको बहुत मानता है। बहुत शर्मिंदा है। आगे आपको शिकायत का मौक़ा नहीं देगा। प्लीज़ माफ़ कर दीजिए . . .”
रजनी इस अप्रत्याशित व्यवहार से चौंक गई। लेकिन साथ-साथ मन में एक तृप्ति का भी अनुभव हुआ। कहीं किसी ने उसके ज़ख़्मों पर मरहम रख दिया था। पता नहीं क्यों आज उसे मीठी और गहरी नींद आयी।
अगले दिन उसके नाम स्कूल में एक लाल लिफ़ाफ़ा आया। उसकी सरकारी नौकरी का आदेश था।
रजनी फूली नहीं समा रही थी। भरे हुए गले से सबको विदाई दी और अपने सपने को पूरा करने गम्य स्थान की ओर प्रस्थान किया।
हाँ, वह मिसेज खन्ना से आख़िरी बार नहीं मिली थी और नीलेश को उसने सबसे कम अंक देकर उसका दर्जा क्लास में सबसे नीचे गिरा दिया था। उसे पता था नीलेश बहुत रोयेगा लेकिन उससे भी अधिक उसकी माँ दुखी होगी। सोचकर मन एक अव्यक्त पाशविक आनंद से भर उठा। . . . लगा प्रतिशोध पूरा हुआ। बरसों की तमन्ना पूरी हुई।
नौकरी मिलने की ख़ुशी से भी ज़्यादा रजनी को अपने इस व्यवहार ने तृप्त किया था। गाड़ी रुकी . . .
विचारों को झटक कर रजनी अपने निर्धारित स्थान की ओर रवाना हो गई।
अगले दिन जीवन का बहुत महत्वपूर्ण दिन होने वाला था। जीवन की सारी आशाएँ पूरी होने जा रही थीं। पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। दिल आसमान में छलाँगे मार रहा था। अपने ऊपर असीम गर्व हो रहा था।
इन्हीं मिश्रित भावनाओं के साथ रजनी ने स्कूल के प्रांगण में प्रवेश किया। तत्काल प्रधानाचार्य के कार्यालय में बुलावा आ गया। रजनी रोमांचित हुई जा रही थी। कुछ तनाव भी लग रहा था। लेकिन फिर आत्मविश्वास सहेजकर धीमे क़दमों से ऑफ़िस की ओर चली।
अंदर उसका अप्रत्याशित अभिनंदन किया गया। सौहार्दपूर्ण वातावरण में अपने को वह हल्का और सुखद महसूस कर रही थी। स्वागत सत्कार के बाद प्रिंसिपल साहब रजनी की ओर मुख़ातिब हुए, कहना आरंभ किया –
"मिस रजनी, आपको बहुत बहुत बधाई। दरअसल हमारे पास कई प्रतिभागियों के आवेदन पत्र आये थे। हम बुरी तरह से उलझन में थे। सभी प्रत्याशी योग्य और अनुभवी थे। लेकिन आपका प्रकरण अनोखा था। दरअसल कमाण्डर राकेश खन्ना मेरे बहुत आत्मीय हैं। जब उनकी पोस्टिंग पटना में हुई थी, तब नियमित रूप से आना-जाना लगा रहता था। मिसेज खन्ना मेरी भाभी समान है। बातों ही बातों में उन्होंने आपका ज़िक्र किया और आपके आवेदन पत्र को एक बार देखने की सिफ़ारिश की। भाभी जी की बात को मैं न नहीं कह सकता था। लेकिन देखने पर मालूम हुआ आप तो सचमुच इस पद के योग्य हैं। आपकी योग्यताएँ और अनुभव किसी की अभिशंसा की मोहताज़ नहीं है। फिर भी कुछ मजबूरियाँ थीं जिनके चलते किसी और का चुनाव कर लिया गया था लेकिन फिर मैंने भाभी जी की बात का मान रखते हुए अपना निर्णय बदला और उसका परिणाम यह हुआ कि आज आप हमारे सामने हो। आशा करता हूँ कि आप मेरे विश्वास को ग़लत नहीं करेंगी। जीवन के इस नये मोड़ पर हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ है।"
रजनी कमरे से बाहर कैसे आई इसका अनुमान लगाना कठिन था। उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा रहा था और उस अँधेरे में केवल एक चेहरा अस्पष्ट दिखाई दे रहा था।
पहचानने की सफल कोशिश की तो देखा . . .अरे ये तो नीलेश है!
उसकी मासूम आँखों में मोटे-मोटे दो आँसू जैसे पूछ रहे हों, "मैडम, मेरा क्या अपराध था? मुझे आपने क्यों सज़ा दी?"
रजनी अपने मन पर मनों बोझ का भार महसूस करने लगी। इतने में फोन की घंटी बजी, मिसेज खन्ना का फोन था।
रजनी ने काँपते हाथों से फोन उठाया, आवाज़ आयी . . .“अरे रजनी जी कैसी हैं आप? हमें बिना बताये चली गईं? मैं समझ सकती हूँ, समय का अभाव होगा। लेकिन नीलेश बहुत आपको याद कर रहा था। बहुत दुखी है वो। हाँ आपको कोई परेशानी तो नहीं हुई न?"
रजनी और सुन न पाई "छिः मैं इतना कैसे गिर गई"?
अचानक पाँवों ने साथ देना छोड़ दिया। वे उसके मन का और शरीर का बोझ उठाने में असमर्थ होने लगे।
रजनी धड़ाम से नीचे गिरी। उधर फोन से आवाज़ आ रही थी . . . "अरे रजनी जी आप चुप क्यों है, ये आवाज़ कैसी? क्या गिर गयीं है आप? हेलो, हेलो . . .
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