लॉकडाउनोपाख्यान

15-08-2021

लॉकडाउनोपाख्यान

डॉ. पद्मावती (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जय हो लॉकडाउन महाराज की!! सोचें . . . ऐसा क्यों कहा जा रहा है तो दिमाग़ की बत्ती जलेगी और कई बातें ज़ेहन में उभर कर आ जाएँगी कि इस लॉकडाउन में क्या पाया क्या खोया? अगर खोया तो पाया भी। आइये देखें इस ‘लॉकडाउन का संघात’। सकारात्मक नज़रिए से लें तो लग रहा है कि आजकल हर आत्मा में प्रतिभाओं का अंबार फूट पड़ा है। इन दिनों ऐसे-ऐसे चमत्कारिक कौशल उत्पन्न हो गए हैं कि पूछो मत। बाप रे बाप! उनके प्रदर्शन से सोशल मीडिया में वीडियों की सुनामियाँ आ गई हैं। नए-नए रहस्योद्घाटन किए जा रहे हैं। कोई आरोग्य मंत्र सिखा रहा है, कोई स्वस्थ जीवन के नुस्ख़े बता रहा है, कोई कवि बन गया है, कोई लेखक, कोई गायक तो कोई पाक कलाविद्‌। अब तो चहुँ ओर कलाओं का ज्वार-भाटा उछाल मार रहा है। सभी में आत्मविश्वास हिलोरें ले रहा है। हुनर हो न हो! ‘बस वीडियो निकालो यू ट्यूब पर डालो’। और तो और ज्ञान की गंगाएँ बहने लगी हैं। हर कोई मुफ़्त में ज्ञान बाँटे जा रहा है। ‘जिन बातों को ख़ुद नहीं समझा, औरों को समझाया है’ वाली बात हो रही है। इन सभी को ‘लॉकडाउन सिंड्रोम’ की संज्ञा दी जा सकती है। कुछ एक आध नमूने भी देखिए . . .! 

जिन महाशयों ने कभी अपने देश के रक्षा मंत्री का नाम जानने की कोशिश नहीं की, आज अपने दोस्तों के साथ इज़राइल के एंटी बैलिस्टिक मिसाईल और एस 400 की चर्चा इतने ज़ोर-शोर से कर रहे है कि घबराहट में सामने वाले का आक्सीजन स्तर ही कम हो जाए। रूस, अमेरिका, चीन की युद्ध नीतियों पर इनके ज्ञान को देखकर तो अनुमान हो रहा है कि कहीं इन देशों के जासूस इनके आँगन के पिछवाड़े में तो मसौदा तैयार नहीं कर रहे? चौबीस घंटे टीवी देखने का संघात! 

लग तो यूँ रहा है कि जिसने अपने जीवनकाल में कभी कोई कविता नहीं पढ़ी होगी, आज प्रेम और विरह के ऐसे-ऐसे बिम्ब रच रहा है कि छायावाद के स्तंभ भी उखड़ जाने की स्थिति में पहुँच गए हैं। क़सम है उस ‘अकविता आंदोलन’ की अगर अंत तक आपको पता चल जाए कि अब तक आप कविता पढ़ रहे थे या कहानी! हाय! कहाँ छिपे थे ये सब कवि इतने दिन। ग़ज़ब है! किसी में प्रेमचंद की आत्मा घुस गई है और किसी में रफ़ी साहब की। जिसने संगीत का सा-रे नहीं सीखा, आज ‘गाना आए या न आए गाना चाहिए’ को चरितार्थ कर रहा है। इन लॉकडाउनोदित कलाकारों की तो बाढ़ आ गई है सोशल मीडिया पर। 

अब माताएँ बहने क्यों पीछे रहें? आख़िर अपने अस्तित्व के प्रति वे भी सजग हो चुकी हैं। उनका रसोई और पाककला पर एकछत्राधिकार तो है ही। वे क्यों पीछे रहें? वे भी अपने हुनर दिखा रही हैं। पाक शास्त्र के गूढ़ रहस्यों को अपनी अदाओं में बिखेर कर गर्दन मटका कर हौले-हौले मुस्कुराती हुई नैनों के बाण चलाती हुई गालों और बालों को रंगकर सिखा रहीं है सोशल मीडिया में, ’खट्टे दही के व्यंजन बनाना’। आइए सीखिए, दाल में छौंक कैसे लगाई जाती है। मिर्च कैसे कूटी जाती है और आलू उँगली काटे बिना कैसे काटा जाता है’। भला हो सिखाने वाले का! उसने तो सिखा दिया लेकिन देखने वाले के हाथ से तो फोन भी फिसल गया न। क्यों न फिसलेगा . . . ‘जब ऐसे चिकने चेहरे . . . तो कैसे न फोन फिसले . . . । 

धिक्कार है हमारे अब तक के ज्ञान पर! अज्ञान की परतें तो आज खुल गईं। आज तक तो हम जीवन व्यर्थ ही जी रहे थे खट्टे दही को खट्टी डकार का कारण मानकर। धन्य हुए हम! हमारा साष्टांग प्रणाम इन मातृ शक्तियों और ज्ञानेश्वरी देवियों को! 

और सुनिए . . . कल तो हद ही हो गई। एक वीडियो में एक योग प्रशिक्षक महाशय सिखा रहे थे, ‘कुर्सी पर बैठे-बैठे पेट की चर्बी कैसे कम की जा सकती है’? वाह रे योगेश्वर! कमाल है! आपकी संधान शक्ति को नमन! पता ही नहीं था इतने गुरु आज तक कहाँ छिपे बैठे थे? ख़ैर लॉकडाउन का ही चमत्कार है कि हम इन प्रतिभावानों को सोशल मीडिया में साक्षात्‌ देख रहे हैं। दरअसल इन सभी चमत्कारिक कलाओं के प्रस्फुटन के पीछे एक सार्वभौमिक कारण उत्तरदायित्व है और वह यह कि सब प्राणी, ’अंदर से कोई बाहर न जा सके और बाहर से कोई अंदर न आ सके’ की विभीषिका झेलते हुए जीवन यापन कर रहे हैं और इसीलिए इन प्राणियों के दिमाग़ों में ख़ुराफ़ाती प्रतिभाओं का विस्फोट हो गया है। धन्य हैं ये कलाकार! अगर कभी, ’ख़ुदा भी आसमां से जब ज़मीं पर देखता होगा, इन कलाकारों को किसने बनाया सोचता होगा’। निरुत्तर! इसका जवाब जब उस सर्व अंतर्यामी परमात्मा के पास भी नहीं तो हमारे पास क्या ख़ाक होगा? अब तो केवल प्रार्थना ही की जा सकती है कि कब स्थितियाँ सामान्य होवेंगी और सभी प्राणी व्यस्त होकर सामान्य हो जाएँगे। प्रतीक्षा है उस समय की। सोचिए!!!

(ये व्यंग्य केवल मनोरंजन मात्र है, किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है। किसी की भावनाओं को आहत करना लेखिका का मंतव्य नहीं। )
 

10 टिप्पणियाँ

  • 21 Mar, 2022 11:57 PM

    बिकुल सार्थक लेख है आपका। वास्तव में lockdown के दौरान ही मैंने स्वयं को पहचाना कि मैं भी लिख सकती हूं एक जानी मानी कवि नहीं तो कम से कम अपने भावों को व्यक्त करना काव्य पंक्तियों के माध्यम से तो सीख ही लिया है। आपका यह लेख व्यंगात्मक नहीं बल्कि एक वास्तविकता को प्रकट करता है।

  • बहुत ख़ूब व्यंग्य

  • 15 Aug, 2021 11:34 PM

    वाह जी पढ़ कर मज़ा आ गया,यही सब तो हुआ है लॉक डाउन में हर कोई महारथी बन गया है हर काम में, बहुत बढ़िया लिखा है बहुत बहुत बधाई आपको

  • बढ़िया लिखा हैं मैम, पढ़कर मज़ा आ गया । व्यंग्य के जरिए लॉकडाउन की सच्ची तस्वीर खींची है । आपके मेहनत और अनुभव ने हम सबकी।दिल की बात लिख डाली। अतिसुंदर लेख । ढेर सारी शुभकामनाए आपको

  • बहुत ही सुंदर व सटीक समसामयिक व्यंगात्मक आलेख है ,शब्दो को उचित ढंग से प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण किए हुए है मैम, वहुत बढिया पढ़कर मन प्रसन्न हुआ । बहुत-बहुत बधाई मैम

  • 6 Aug, 2021 08:34 AM

    शत प्रतिशत सही है पदमावती जी। तीक्ष्ण बाण की वर्षा..! जो आज हो रहा है उसका वास्तविक अनुभूति आपने प्रकट कीं है। हमेशा की तरह यह व्यंग्य भी उत्तम... हार्दिक बधाई जी...।

  • 5 Aug, 2021 10:50 PM

    Wah bahut hi majadaar

  • डा पद्मावती आप हमेशा कुछ नयीसोच को लेकर लिखती है लाकडाउन मे जो हुआ है उसकी बारीकियो को बडी सूक्ष्मता से बयां किया हो जो वास्तविक ही नही स्वीकार्य भी है।शबदो को बडी तारतम्यता से पिरोया है यह कमाल आप ही कर सकती है।आपके इस लेख को पढकर बहुत अचछा लगा बहुत कुछ जाना सीखा भी बधाई।

  • 4 Aug, 2021 08:30 PM

    बहुत सुंदर व्यंग्यात्मक व्याख्या की आपने इन लॉक डाउन की अद्भुत, विलक्षण प्रतिभाओं के लिए

  • 4 Aug, 2021 07:40 PM

    पद्मावती जी लाकडाउन सिंड्रोम पर आप का व्यंग्यय छत्तीस व्यंजन से भरी थाली से कम नहीं फोन हाथ से फिसल गया ने आत्मकथा कह दी बहुत बहुत बधाई

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