समय का मूल्य

01-11-2025

समय का मूल्य

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सुंदरपुर नाम का एक सुंदर गाँव में राम और श्याम नाम के दो जुड़वाँ भाई रहते थे। माँ-बाप ने दोनों भाई का गाँव के स्कूल में दाख़िला करा दिया था। दोनों भाई ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाते थे। 

शुरूआत में तो सब ठीक-ठाक चला, लेकिन धीरे-धीरे राम और श्याम के स्वभाव में फ़र्क़ दिखाई देने लगा। 

राम को पढ़ना बहुत पसंद था। स्कूल से घर लौटने के बाद वह नियमित रूप से पाठ दोहराता, किताबें पढ़ता और अन्य गतिविधियों में भाग लेता। लेकिन श्याम का पढ़ाई से बिलकुल मन नहीं लगता था। वह अक्सर स्कूल से छुट्टियाँ करने लगा। ऐसे में श्याम को अपने जैसे शरारती दोस्त मिल गए। माँ-बाप उसे समझाते, कभी डाँटते, लेकिन श्याम किसी की नहीं सुनता था। 

धीरे-धीरे दोनों भाई सातवीं कक्षा में पहुँच गए। राम ने अच्छे अंक प्राप्त किए, जबकि श्याम मुश्किल से पास हुआ। आदतें अच्छी हों या बुरी, आसानी से नहीं छूटतीं। राम ने अनुशासन के साथ पढ़ाई जारी रखी, जबकि श्याम ने बुरे दोस्तों की संगति में बुरी आदतें अपना लीं। अब वह चोरी-छुपे तंबाकू वाले पान मसाले खाता, सिगरेट पीता, मोबाइल में उलझा रहता और बेकार बातों में समय ग॔वाता। 

दसवीं में राम ने ज़िले स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जबकि श्याम मुश्किल से 40 प्रतिशत अंक ला सका। ऐसा भी नहीं था कि श्याम को पढ़ाई की जगह किसी कला या खेल में दिलचस्पी थी, उसे तो बस समय बरबाद करने में ही मज़ा आता था। बारहवीं में पहुँच कर उसने आगे पढ़ाई करने से साफ़ इंकार कर दिया। माँ-बाप ने बहुत समझाया, पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुआ। 

दूसरी ओर राम ने बारहवीं विज्ञान में बहुत अच्छे अंक ला कर एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में मेरिट से प्रवेश पाया। 

समय अपनी चाल चलता गया। कुछ सालों बाद राम एक प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ बन गया, जबकि श्याम के पास न पढ़ाई थी, न कोई हुनर। छोटी-मोटी नौकरियाँ करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था। वह थोड़ी बहुत कमाई कर लेता, पर जीवन असंतोष भरा था। 

राम की प्रगति देख कर माँ-बाप को बहुत गर्व होता, पर श्याम को देख कर वे दुखी हो जाते। 

एक दिन ऐसा आया कि श्याम को अपने ऊपर ही शर्म आने लगी। उसे सच्चाई समझ में आ गई। उसने सोचा कि काश! उसने भी विद्यार्थी जीवन में मेहनत की होती, अनुशासन में जीवन जिया होता। 

एक दिन वह माँ-बाप और भाई के सामने रो पड़ा। उसने दिल से सब से माफ़ी माँगी। उसे सच्चा पछतावा हो रहा था। 

पिता ने कहा, “श्याम बेटा, देर से ही सही, लेकिन तुझे सच्चाई समझ में आ तो गई। जागने वाले के लिए हर समय सवेरा होता है। तू अभी जवान है, तेरे सामने पूरी ज़िन्दगी पड़ी है। तेरे अंदर भी अपार शक्तियाँ हैं। अगर तू ठान ले तो तू भी सुंदर जीवन जी सकता है।” 

राम ने कहा, “श्याम, मुझे पता है कि तू व्यवसाय (बिजनेस) करना चाहता है। तू उसी दिशा में आगे बढ़। मैं हमेशा तेरे साथ रहूँगा।” 

माँ बोलीं, “बेटा, एक बात कभी मत भूलना। मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता। और हाँ, पर मेहनत सही दिशा में होनी चाहिए। अगर तू समय को सँभाल लेगा तो समय भी तुझे सँभालेगा।” 

श्याम ने कहा, “हाँ माँ, अब मुझे अपनी ग़लतियाँ समझ में आ गई हैं। 

मैं वे ग़लतियाँ अब कभी नहीं दोहराऊँगा।” 

तो दोस्तो, आओ हम सब भी यह पक्का निश्चय करें कि हम जीवन को सही दिशा में ले जाएँगे और सही कार्यों में निरंतर परिश्रम करेंगे . . . 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ललित कला
किशोर साहित्य कहानी
ऐतिहासिक
चिन्तन
बाल साहित्य कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कहानी
लघुकथा
सामाजिक आलेख
कविता
काम की बात
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
साहित्यिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में