एक ख़लिश बाक़ी है
हेमन्त कुमार शर्मा
एक ख़लिश बाक़ी है,
बिन पिए साक़ी है।
आँखों ने फ़रमाया,
कुछ सवाल बाक़ी है।
तहज़ीब आला सही,
ग़ुर्बत कपड़ों से झाँकी है।
पर्दा कितना अक्स पे,
पर नज़र वाक़ी है।
वस्ल के क़िस्से बस याद,
दर्द बड़ा राक़ी है।
बेरुख़ी रही मुस्लसल,
क़िस्मत की बदमजाक़ी है।
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