बुधिआ को सुई
राजेश ’ललित’अभी तोड़ कर लाया हूँ
खेत की मेढ़ से लाया हूँ
ये मकई का मीठा भुट्टा है
अभी कच्चा है
आप यूँ ही खाइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
हाथ सने हैं मिट्टी में
नहीं तो गाजर ले आता
बोरा भर रखा है
बाजरे का सिट्टा
कभी झोंपड़े पे आइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
दर्द कराहता है
पोर पोर में
कह नहीं पाता
अभावों के शोर में
कुछ तो जुगत
बताइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
एक गाय है
दो बछिया हैं
एक ही बेटा
दो बिटिया हैं
छोटी को कई दिन से
ताप चढ़ा है
कोई दवा बताइये न
डाक्टर सा'ब अब आप
सुई लगाइये न
4 टिप्पणियाँ
-
ऊं जय गुरुदेव
-
बहुत अच्छी कविता मुझे यह पसंद आयी!
-
बहुत खूब
-
बढ़िया
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- चिन्तन
- कविता
-
- अभिमन्यु फँसा फिर से
- आवारा हो गया यह शहर
- आषाढ़ के दिन
- इतवारी रिश्ते
- कुछ विचार
- कृष्ण पक्ष
- खोया बच्चा
- गुटर गूँ-गुटर गूँ
- चलो ढूँढ़ें उस चिड़िया को
- चाँद, सूरज और तारे
- जानवर और आदमी
- जी, पिता जी
- टूटा तटबंध
- ठग ज़िन्दगी
- डूबती नाव
- दीमक लगे रिश्ते
- धान के खेत में; खड़ा बिजूका
- नज़रिया
- पतझड़ और बसंत
- पेड़ और आदमी
- पोरस
- बहुत झूठ बोलता है?
- बाँझ शब्द
- बुधिआ को सुई
- भूख (राजेश ’ललित’)
- मकान
- मजमा
- मरना होगा
- माँ
- मैं नहीं सिद्धार्थ
- यादें
- ये मत कहना
- राम भजन कर ले रै प्राणी
- सरकार
- सर्दी और दोपहर
- सूखा बसंत
- सूनापन
- सूरज की चाह
- हम भीड़ हैं
- हाथ से फिसला दिन
- हादसे
- हास्य-व्यंग्य कविता
- सांस्कृतिक आलेख
- कविता - क्षणिका
-
- कफ़न
- कौन उलझे?
- टीस
- टूटे घरौंदे
- डरी क़िस्मत
- दुखों का पहाड़
- देर ही देर
- परेशानियाँ
- पलकों के बाहर
- पेड़
- प्रकृति में प्रेम
- बंद दरवाज़ा
- भटकती मंज़िल
- भीगा मन
- भूकंप
- मुरझाये फूल
- राजेश 'ललित' – 001
- राजेश 'ललित' – 002
- राजेश 'ललित' – 003
- राजेश 'ललित' – 004
- राजेश 'ललित' – 005
- राजेश 'ललित' – 006
- लड़ाई जीवन की
- वक़्त : राजेश ’ललित’
- शरद की आहट
- शून्य
- समय : राजेश 'ललित'
- सीले रिश्ते
- सूखा कुआँ
- सूखी फ़सल से सपने
- हारना
- स्मृति लेख
- बाल साहित्य कविता
- सामाजिक आलेख
- कविता - हाइकु
- लघुकथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-