अभिमन्यु फँसा फिर से
राजेश ’ललित’आज अर्जुन नहीं आयेंगे
अभिमन्यु तुम्हें चक्रव्यूह
स्वयं भेदना होगा
यह जीवंत युद्ध है
उहापोहों का
लोभों का
अभिमानों का
अपमानों का
रहेगा भीम चिल्लाता
बाहर से
चक्रव्यूह के
नकुल, दुर्योधन को न रोक पायेगा
यह संकट घना
अब भी बना हुआ है
अभिमन्यु फँसा हुआ है
अर्जुन परिस्थितिओं में फँसा
न कोई रोया
न कोई हँसा
सारथी कृष्ण चले कहीं?
तुम्हारे नुकीले तीर
अब नहीं चुभते
नहीं करते घात
हृदय के भीतर
टूटी नोक पर
गली लकड़ी का तीर
ढीली प्रत्यंचा
पर नहीं चढ़ेगा
अहो: आज अभिमन्यु
फिर मारा जायेगा
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