01-03-2017

मुख्यधारा से दूर होना वरदान

प्रिय मित्रो,

हिन्दी राइटर्स गिल्ड बृहत टोरोंटो क्षेत्र की एक साहित्यिक संस्था है। इस संस्था की स्थापना २००८ में हुई थी और मुख्य उद्देश्य साहित्यिक लेखन और समझ को परिष्कृत करना था जिसमें बहुत सीमा तक हम सफल भी हुए हैं। हमारी मासिक गोष्ठी बहुत ही अनौपचारिक परन्तु शिष्ट, मैत्रीपूर्ण वातावरण में होती है। मौलिक विचार एक ऐसे वृत्त की स्थापना करने का था जिसमें साहित्य प्रेमी मिल कर बैठें रचनाएँ सुनें, सुनायें और टिप्पणियाँ करें। ११ मार्च को हमारी गोष्ठी इसी प्रकार की रही। इसका उद्धरण इस संपादकीय में करने का कारण उस दिन के काव्य-पाठ के दौरान बात-चीत, टिप्पणियाँ और विचार-विमर्श है।

८ मार्च, २०१७ को अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस था। स्वाभाविक था कि कुछ ऐसी रचनाओं का पाठ हो जो कि इससे महत्वपूर्ण दिवस से सम्बंधित हों और ऐसा हुआ भी। दूसरी ओर साहित्य कुंज में भी मुझे कुछ रचनाएँ मिलीं जो कि नारी विमर्श की थीं। आश्चर्य का विषय है कि प्रवासी लेखकों की रचनाओं में और भारत के लेखकों की रचनाओं में बहुत अंतर था। जो रचनाएँ गोष्ठी में सुनने को मिलीं या जो इन रचनाओं पाठों के अंतराल के दौरान कहा गया वह महत्वपूर्ण था। क्योंकि वह शब्द किसी विमर्श के शोध से नहीं उपजे थे बल्कि दैनिक जीवन के जीये गए क्षण थे। किसी विद्वान की उक्तियों से सिद्ध किए हुए वाक्यांश नहीं थे बल्कि जीवन की झलकियाँ थे। कवयित्रियों के मन में जहाँ बचपन से व्यस्क अवस्था तक के भोगे यथार्थ पर आक्रोश था वहाँ उन्हें अपनी उपलब्धियों पर गर्व भी था। जो सम्मान अब उन्हें सामाजिक परिवेश या व्यवसायिक जगत में मिल रहा है; वह उन्हें दिया नहीं गया बल्कि उन्होंने अर्जित किया है। एक बात बार-बार दोहरायी गई और उसकी हँसी भी उड़ाई गयी, वह थी– उन पुरुषों द्वारा नारी दिवस पर की जाने वाली संगोष्ठियों या सम्मेलनों का आयोजन, जहाँ बस एक दिन के लिए, एक-दो स्त्रियों को तो साहित्यिक मंच दे दिया जाता परन्तु बाक़ी के ३६४ दिन उन्हें मंच से दूर ठेल दिया जाता है।

यह सुनना अच्छा लगा कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड ही एक ऐसी अनूठी संस्था जहाँ कोई श्रेष्ठ नहीं है, को अभिजात्य वर्ग नहीं है। बस साहित्य प्रेम है कि मिल बैठते हैं दिल की कही सुनते हैं, गुनते हैं और कहते हैं – ऐसा वातावरण हो तो साकारात्मक साहित्य क्यों नहीं उपजेगा! कई बार मुख्यधारा से दूर होना वरदान लगने लगता है, क्योंकि खेमेबाज़ियों से दूर, विमर्शों के बोझ से मुक्त, नारेबाज़ी से परे सन्नाटों में शुद्ध साहित्य का रस बहता है।

– सादर
सुमन कुमार घई

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

सम्पादकीय (पुराने अंक)

2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015