अब उसकी उम्र लगभग 70 साल है। कुछ महीने ऊपर-नीचे हो सकते हैं। वर्षों बाद कल मिला तो हम स्कूल के दिनों को याद करने लगे। सह-शिक्षण संस्थान होने की वज़ह से हमारे स्कूल में लड़के-लड़कियाँ साथ-साथ पढ़ते थे। उस वक़्त की बेहद रोचक घटनाओं की चर्चा करते हुए यकायक उसके चेहरे पर उदासी छा गई। क्या हुआ पूछने पर वह बोला, "मुझे आज भी वह दिन बहुत पीड़ा पहुँचता है जिस दिन हम सब साथी आठवीं पास कर नौवीं कक्षा में पहुँचे थे और कक्षा अध्यापक हम सबसे परिवार के बारे में जानकारी ले रहा था।"
इतना कहकर वह कुछ सोचने लगा। ऐसा लगा जैसे वह उस पूरे दिन जो कुछ हुआ था, उसे स्पष्ट तौर पर याद करने की कोशिश कर रहा था। मैंने उसकी चुप्पी को तोड़ते हुए पूछा, "क्या हुआ था? "
वह बोला, "सभी छात्र-छात्राओं का परिचय लेने के बाद कक्षा अध्यापक ने कहा था कि अब वे छात्र खड़े हो जायें जो शिड्यूल कास्ट यानी हरिजन हैं।"
"फिर?" मैंने सवाल किया।
वह बोला, "पूरी कक्षा में मेवालाल और मैं, दोनों खड़े हुए थे। दरअसल, आठवीं कक्षा तक सभी छात्र-छात्राओं की फ़ीस माफ़ थी। नौवीं कक्षा से यह सुविधा केवल शिड्यूल कास्ट छात्रों को थी।" वह इतना बोलकर फिर चुप हो गया।
मैंने सामान्य भाव से पूछा, "लेकिन इसमें पीड़ा वाली क्या बात है?"
वह रूखे स्वर में बोला, "तुम नहीं समझ सकते क्योंकि तुम तथाकथित ऊँची जात से हो। मुझे आज भी अपने साथी छात्र-छात्राओं की वह विद्रूप मुस्कुराहट याद है जो मेवालाल और मुझे खड़े होते देख उनके चेहरे पर आई थी। उस दिन पहली बार मुझे अपने अलग होने का पता चला था।"