डमरू का दुख 

01-09-2021

डमरू का दुख 

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

वे दोनों घर आमने-सामने हैं और उनके बीच लगभग पच्चीस मीटर की दूरी है। दोनों घर में उनके मालिकों के साथ उनके पालतू कुत्ते भी रहते हैं। पूर्व मुखी घर में रहने वाले वाले कुत्ते का नाम झबरू है और पश्चिम मुखी घर में रहने वाले कुत्ते का नाम डमरू है।

झबरू जिस घर रहता है, उसमें रहने वालों का वह पुश्तैनी मकान है जबकि डमरू के युवा मालिक किरायेदार है। उन्हें यहाँ आए हुए अभी तीन महीने हुए।

ख़ैर, संयोगवश दूर-दूर से एक-दूसरे को देखने वाले झबरू और डमरू की कल मुलाक़ात हुई। एक दूसरे की कुशल मंगल पूछने के बाद झबरू ने डमरू से पूछा, “मित्र! यूँ तो तुम्हारा नाम डमरू है लेकिन तुम तो क़तई भी नहीं बजते यानी मैंने तुम्हें भौंकते हुए कभी नहीं सुना?”

डमरू तपाक से बोला, “मुझे मेरे मालिक-मालकिन मौक़ा ही नहीं देते। दोनों बात-बात पर एक दूसरे पर इतना भौंकते हैं कि मुझे अब भौंकने से नफ़रत हो चली है।”

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