बार्टर सिस्टम

15-09-2021

बार्टर सिस्टम

दिलीप कुमार (अंक: 189, सितम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

बरसों पहले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने एक नारा दिया था “तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा“। अच्छी पहल थी देश में इस नारे को आज भी बहुत इज़्ज़त दी जाती है। लोग नेता जी के एक आह्वान पर अपना घर-बार त्याग कर अपना जीवन दाँव पर लगाकर आज़ादी हासिल करने निकल पड़े।

इस पसमंज़र में अपनी आज़ादी गँवा चुके अफ़ग़ानिस्तान में आज़ादी हासिल होने का एक नया शिगूफ़ा छोड़ा गया है। हमारे आज़ाद देश में भी आज़ादी माँगने वाले चंद लोगों ने तालिबानियों को आज़ादी की मुबारकबाद भेजी है। “नेशन वांट्स टू नो“ कि ऐसे आज़ादी प्रेमी आज़ादी का पर्याय माने जाने वाले भारत में रहना चाहेंगे या फिर काबुल-कंधार में तालिबानियों की दी गयी आज़ादी में अपना आशियाना बनाएँगे? इस सवाल पर आज़ाद देश में आज़ादी माँग रहे लोग बहुत तिलिमलाये हुए हैं, ये तो वही बात हो गयी –

“परदा हटाते भी नहीं, चिलमन से जाते भी नहीं“।

लेकिन हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने एक नया शिगूफ़ा छोड़ा है अपने पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान को लेकर “तुम हमें लूटपाट करने दो, हम तुम्हें मान्यता देंगे। तुम हमें बताना कि सबसे आधुनिक हथियारों के सहारे मध्य युग के क़बीलाई क़ानून कैसे लागू किये जाते हैं, हम तुम्हें बताएँगे कि किश्तों-किश्तों में अपना मुल्क कैसे तुड़वाया और बेचा जाता है “।

बाबा नागार्जुन की कविता अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान दोनों तालिबानियों के हालात को बयां करती है –

“छीन सको तो छीन लो, लूट सको तो लूट
मिल सकती कैसे भला, अन्न चोर को छूट।"

लेकिन पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के तालिबानियों को हर क़िस्म की लूट करने की पूरी छूट मिली हुई है। इतना लूटा है कि अवाम कराह रही है। 

अफ़ग़ानिस्तान फ़िलहाल दुनिया के लिये अजूबा देश बना हुआ है। अफ़ग़ानिस्तान की लड़ाई भी दिलचस्प है, जहाँ तीन लाख प्रशिक्षित हथियारबंद वेतनभोगी सैनिक ऐसे तीस हज़ार लोगों से हार गए जिनके पैरों में साबुत चप्पल तक नहीं थी। वाक़ई ये बहादुर अफ़ग़ानियों की वीरता की मिसाल थी जो तीस हज़ार लोगों ने तीन लाख की फ़ौज को हरा दिया। अगर तीस हज़ार गर्वित अफ़ग़ानी थे तो तीन लाख रण छोड़ने वाले भी तो अफ़ग़ानी ही थे, यक़ीनन वो टिम्बकटू से नहीं आये थे। 

इधर रेम्बो की एक फ़िल्म का एक सीन बहुत वायरल हो रहा है कि लोग कहते हैं कि “मुझे चीते जैसी फ़ुर्ती, साँप जैसा ज़हर और अफ़ग़ानी लड़ाकों जैसी हिम्मत मिले” यक़ीनन यही हिम्मत अशरफ़ ग़नी और उनके लड़ाकों में थी, क्या कहने, रेम्बो भी अपनी उस डायलॉग वाले दृश्य पर शर्मिंदा हो रहा होगा।

अफ़ग़ानिस्तान की लड़ाई भी अजीब ही रही हिंदी सिनेमा में बहादुरी के पर्याय माने जाने वाले अफ़ग़ानी लड़ाकों की वीरता अद्भुत है जो अपने को ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ विजित मान रहे हैं जो कभी लड़े ही नहीं। 

अमेरिका टू अफ़ग़ानिस्तान–

“तुम्हारे मुल्क में ना तो तेल है ना मसाले, सो अब हम जा रहे हैं। ओसामा और मुल्ला उमर भी अब तुम्हारे पास नहीं रह गए। तो अब डॉलर नहीं दे पाएँगे। अब हमारे संसाधन कम पड़ रहे हैं, मुफ़्त की रोटियाँ हम किसी को नहीं खिला सकते सो हम परदेसी चले अपने वतन।"

अमरीका चला गया और तालिबान जीत गए। ये ऐसा ही था कि एक पहलवान अखाड़े में जब तक चुनौती देता है तब तक कोई उसकी चुनौती स्वीकार करने का साहस नहीं करता, लेकिन जब विजित पहलवान कूच कर चुका होता है तब एक और पहलवान आकर अखाड़े में कहता है कि देखो वो पहले वाला पहलवान मेरे डर से चला गया।

पलायन से ख़ाली की गई ज़मीन और युद्ध में छोड़े हथियार से तालिबान को सत्ता तो मिल गयी, लेकिन पहले दिन ही: 

तालिबान टू वर्ल्ड –

“मुल्क चलाने के लिये हमारे पास धन नहीं है। हमारे आक़ा पाकिस्तान ने हमें सिखाया है कि सबसे पैसा माँगो, पहले दिन से पैसा माँगो। भले ही ख़ुद लड़-भिड़ कर अपना देश नष्ट कर दो, फिर दुनिया से कहो कि इस घायल देश को बचाना पूरी मानवता की ज़िम्मेदारी है। दाता-धर्मी दान करेंगे ही सो पैसा माँगना शुरू कर दो, माँगना और माँगते रहना हमारे ख़ित्ते का सबसे नायाब नुस्ख़ा है। इसलिये सब हमें पैसा दो, अमेरिका हमें डॉलर दो, ईरान हमें तेल दो, इंडिया हमें अनाज दो, हमारे लिये पुल, सड़कें और स्कूल बनाओ। हमारे अस्पतालों में दवा भरो।"

इंडिया टू तालिबान–

“लाज़िम है हम भी देखेंगे।"

पाकिस्तान टू तालिबान–

“बस इत्ती सी बात हमको देखो; हमारे पास पिछले दो दशक से देश चलाने को धन नहीं है, लेकिन कर्ज़, भीख, अनुदान से हम देश तो चला ही रहे हैं। हमने सन्‌ 2001 में ही कह दिया अमेरिका से कि हमारे पास ओसामा बिन लादेन नहीं, लेकिन हमने एक दशक तक पाकिस्तान में लादेन को छुप-छुपाकर चलाया ना, हमारे क्रिकेट बोर्ड में धन नहीं है, पूरी दुनिया में कोई हमसे क्रिकेट नहीं खेलता, लेकिन हम पाकिस्तान प्रीमियर लीग चला रहे हैं ना। हमारे यहाँ डेमोक्रेसी नहीं है लेकिन दुनिया भर के अनुदान लेने के लिये हम डेमोक्रेटिक मुल्क चला रहे हैं। जो हमारे पास ना हो उसे हम बहुत अच्छे से चलाते हैं, अब देखो ना कश्मीर में हमारी पैठ नहीं रह गयी लेकिन हम कश्मीरी एजेंडा बख़ूबी चला रहे हैं और दुनिया भर में फैले पाकिस्तानी कश्मीरियों से अच्छा-ख़ासा चंदा भी वसूल रहे हैं।"

तालिबान टू पाकिस्तान–

"लेकिन तुम्हारे पास सोने-तांबे से भरा बलूचिस्तान है, चंदा वसूलने के लिये कश्मीर का एक हिस्सा है। कहने को एटम बम है, क्रिकेट का एक वर्ल्ड कप है। हमारे पास क्या है, कोई हमें कर्ज़ा क्यों देगा।“

पाकिस्तान टू तालिबान–

“तुमने हमारी टेरर फ़ैक्ट्री को नज़रअंदाज़ कर दिया। दुनिया भर में हमसे बड़ा टेरर का एक्सपोर्टर कोई नहीं। हमारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को देखो, उसी की मदद से आज तुमने पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया। हम पूरी दुनिया में बम फोड़ते हैं सिवाय चीन के। चीन के उएगीर लोगों की बम-बंदूक से मदद ना करने की गारंटी पर हम चीन से कितनी मोटी रक़म ऐंठते हैं। लोग कहते हैं कि पूरा पाकिस्तान चीन के पास गिरवी पड़ा है। उन कमअक्लों को ये नहीं मालूम कि ग़ैरतमंद के गिरवी की कोई क़ीमत होती है, भिखारी और दिवालिया के गिरवी होने की कोई क़ीमत नहीं होती, अपनी सारी क़ीमत, नेमत गँवाकर ही कोई इदारा दिवालिया बनता है। अब तुम भी इसी राह पर चलो, चीन से कह दो कि हमें कर्ज़ा दो, वरना हम उइगर के विद्रोहियों की मदद करेंगे, वो तुरन्त मदद को तैयार हो जाएगा। हमने पिछले बीस सालों से दुनिया को इसी बुनियाद पर ठगा है कि हमें पैसा दो, वरना हमारे मज़हबी लड़ाके तुम्हारे देश में घुस कर बम फोड़ेंगे तो हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी। और फिर देखो कैसे पैसा बरसता रहा।"

तालिबान टू पाकिस्तान–

“लेकिन तुम ख़ुद तो दुनिया भर से पैसा लेते हो और हमें सिर्फ़ चीन से पैसा लेने को कह रहे हो, ऐसा कैसा चलेगा।"

पाकिस्तान टू तालिबान–

“ देखो तुम्हारी टेरर फ़ैक्ट्री अभी आर्गनाइज़्ड नहीं है। हमने यूनिवर्सिटी बनाई, एयरपोर्ट बनाया, जहाज़ों का फ़्लीट रखा है और कहने को तालिबान खान नियाजी उर्फ़ इमरान खान नाम का एक प्लेबॉय टाइप का प्राइम मिनिस्टर भी बना रखा है। इसलिये दुनिया हमें मान्यता देती है, पहले मान्यता देती है फिर भीख भी, डायरेक्ट भीख ज़्यादा नहीं मिलती।"

तालिबान टू पाकिस्तान–

“हमारी फिलासफी अलग है, हम मानते हैं कि पढ़ लिखकर आप पायलट बन सकते हैं लेकिन तालिबानी बंदूक उठाकर पूरे एयरपोर्ट के हर जहाज़ का मालिक बन सकता है। पढ़-लिख कर आप सेंट्रल बैंक के गवर्नर बन सकते हैं लेकिन बंदूक के बल पर आप फ़ाइनेंस मिनिस्टर ही ना बन जाएँ। पढ़-लिख कर आप यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन सकते हैं लेकिन तालिबानी बन्दूकधारी उसी यूनिवर्सिटी का चांसलर बन सकता है। हमारे एजुकेशन मिनिस्टर ने तो कहा है कि एमबीए, पीएचडी सब बेकार है, बस बंदूक चलाना आना चाहिये। इसीलिये हमारे मुल्क में सब्ज़ी के ठेलों पर हथियार बिकते हैं। बस हमको भी दुनिया भर से फ़्री का पैसा खाने का तरीक़ा बताओ।"

पाकिस्तान टू तालिबान–

“तब हम बार्टर सिस्टम पर काम करेंगे। मतलब तू मेरे को मान्यता दे, मैं तुझे मान्यता दूँगा। तू हमारे मुल्क में बम फोड़वा, हमारी आईएसआई तेरे मुल्क में बम फोड़ेगी। हम दोनों आलमी बिरादरी में हल्ला मचाएँगे कि हम आतंकवाद से पीड़ित हैं और फिर हमारे मुल्क तबाह होते रहेंगे और दुनिया हमें पुनर्निर्माण के लिये धन देती रहेगी। और इस तरह हमारा बार्टर सिस्टम चलता रहेगा।"

पाकिस्तान के सदर तालिबान खान और इमरान खान के मुँह से ये बात सुनकर उसकी टेरर बिरादरी के नेता मुल्ला बिरादर की आँखों में आँसू आ गए, दोनों तालिबान एक दूसरे से गले मिले और फिर उन्होंने अमेरिका को कोसते हुए एक अमेरिकन ब्रांड की व्हिस्की निकाली और चीयर्स करने लगे। उनके नेपथ्य में हिप-हॉप संगीत बज रहा था लेकिन कुछ लोगों को इसमें निर्दोष अफ़ग़ानों की चीखों का इम्कान हो रहा था। 

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