आपको क्या तकलीफ़ है

15-02-2020

आपको क्या तकलीफ़ है

दिलीप कुमार (अंक: 150, फरवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला। वो कुछ डिफ़रेंट दिखाना चाहता था डिफ़रेंट एंगल से। उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला। 

रिपोर्टर, बच्चे से- "बेटा आपका इस क़ानून के बारे में क्या कहना है?"

बच्चा हँसते हुये- "अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह-सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता।"

रिपोर्टर- “आपकी सरकार से क्या डिमांड है?”

बच्चा-सरकार पहले बता देती तो हम टूर्नामेंट एक साथ ही खेल लेते, इतनी सारी छुट्टियों में।"

रिपोर्टर- "आपको कोई दिक्क़त है इस क़ानून से।"

बच्चा- "स्कूल तो बन्द है, स्कूल अचानक बन्द हुआ तो स्कूल वाले ठूँस-ठूँस कर होमवर्क भी नहीं दे पाए। ठीक ही है।"

रिपोर्टर- "क्या आपको और आपके दोस्तों को इस क़ानून से कोई ख़तरा है ?"

बच्चा- "अंकल, ख़तरा तो नहीं है मगर एक बात अच्छी नहीं लगती। जब स्कूल बंद है, तब टयूशन क्यों नहीं बन्द है। सब बच्चे परेशान हैं। सबका टाइम उलट-पलट गया है, पहले सब स्कूल से आने के बाद सभी के टयूशन, कोचिंग का टाइम लगभग एक ही होता था और हम सबको खेलने का मौक़ा मिल जाता था। अब स्कूल बंद हो गए तो कोचिंग वालों ने अपना कोर्स बढ़ा लिया कि जो स्कूल में छूटा है, वो कोचिंग में कवर कर लेंगे, अब किसी लड़के की कोचिंग सुबह होती है, किसी की दोपहर में तो किसी की शाम को। हमारी टीमें ही पूरी नहीं हो पाती, सो मैच ही नहीं हो पाते।"

रिपोर्टर- "इसका मतलब आप ये कहना चाहते हैं कि इस क़ानून से आपके मैच खेलने के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है।"

कैमरे की तरफ़ देखते हुए रिपोर्टर कहता है, "जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि इस क़ानून के आने से छोटे-छोटे बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार को इस मामले में तैयारी करनी चाहिए थी और सम्वेदनशील होना चाहिये था"

रिपोर्टर एक वहाँ से ये कहने के बाद दूसरी जगह जाकर एक बच्ची से मिलता है। 

रिपोर्टर, बच्ची से- "बेटी क्या नाम है आपका, और धूप खिली है फिर आपने स्कार्फ़ क्यों लगा रखा है।"

बच्ची शर्माते हुए- "कोमल नाम है मेरा, और अंकल आपको नहीं पता, प्रोटेस्ट करने के लिये यही ड्रेस ट्रेंडिंग है।"

रिपोर्टर- "ड्रेस ट्रेंडिंग है मतलब, आपको किसने बताया?"

बच्ची- “सब जानते हैं, आप नहीं जानते क्या? मेरी शेली दीदी कहती हैं कि अब जीन्स,लॉन्ग जैकेट और स्कार्फ़ प्रोटेस्ट का सिंबल है, इसको पहन कर पोस्टर गर्ल बन गया है कोई।”
 
रिपोर्टर- “कौन बन गया है, और आपकी शेली दीदी क्या करती हैं?”
 
लड़की- “अरे अंकल वो सब मुझे पता नहीं कौन बन गया है? दीदी कुछ कह तो रही थीं कि कपड़ों से क्या हो जाता है ऐसा कुछ। उन्होंने टीवी पर कुछ देखकर अमेज़न से आर्डर करके अपने लिये कुछ ड्रेसेज़ मँगवाई थीं, मगर दंगा हो गया तो कुरियर वाला ड्रेस लाया नहीं। जब ड्रेस आ जायेगी दीदी तभी कुछ करेगी।"

रिपोर्टर कैमरे पर चीखते हुए- “अब कपड़ों का ट्रेंड हुआ प्रोटेस्ट पर हावी, नामी फ़ैशन डिज़ाइनर देख रहे हैं संभावनाएँ।”

पलट कर बच्ची से पूछता है- "तो आपकी दीदी भी प्रोटेस्ट करती हैं, वो किस कॉलेज में पढ़ती हैं?”

बच्ची- "दीदी पढ़ती नहीं हैं। वो ब्यूटी पार्लर में काम करती हैं। और कहती हैं कि प्रोटेस्ट करना स्टेटस सिंबल है, फ़ेसबुक पर कुछ बढ़ जाता है।"

रिपोर्टर- “फिर आप प्रोटेस्ट क्यों कर रही हैं, आपको क्या नुकसान है इस क़ानून से?”
 
बच्ची- “टीवी नहीं देखने पाती, पापा का ऑफ़िस बन्द है, दिन भर टीवी में ना जाने क्या लोकसभा, राज्यसभा टीवी में देखते रहते हैं। मुझे डांस और रियलिटी शो देखने रहते हैं, सिंगिंग, डांसिंग की प्रैक्टिस करनी रहती है, लेकिन रिमोट मिले तब ना, सो इसीलिये मैं प्रोटेस्ट कर रही हूँ।"

रिपोर्टर- “जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि इस क़ानून से देश में लोगों की राय क्या है, सरकार को क़ानून बनाते समय इन बातों का ख़्याल रखना चाहिये।”

रिपोर्टर वहाँ से दूसरी जगह जाता है। एक दूसरी जगह पर रिपोर्टर ठेले पर सब्ज़ी ख़रीद रही है कुछ महिलाओं से मिलता है और पूछता है- "इस क़ानून से आपको क्या-क्या फ़र्क पड़ा है। कोई तकलीफ़ हुई है आपको?"

पहली महिला- "दिन भर क्रिकेट, डिस्कवरी चैनल चलता है। मैं नागिन का ना तो रात का एपिसोड देख पाती हूँ और ना अगले दिन रिपीट टेलीकास्ट।"

दूसरी महिला- "मेरे पति हिंदी मीडियम से पढ़े हैं और हिंदी का ही अख़बार पढ़ते हैं। लेकिन आजकल उनको ना जाने क्यों अँग्रेज़ी के कुछ शब्दों का फ़ुल फ़ॉर्म बताने का दौरा पड़ता रहता है। सबको ना जाने क्या-क्या अँग्रेज़ी में पकड़-पकड़ कर समझाते रहते हैं। पहले अँग्रेज़ी पीने के बाद अँग्रेज़ी बोलते थे, अब तो अँग्रेज़ी बोलकर अँग्रेज़ी पीते हैं।"

तीसरी महिला- "हमें इस क़ानून से ये दिक्क़त है कि सब्ज़ियाँ महँगी होती जा रही हैं। ये ठेले वाले भैया कहते हैं कि शहर में दंगा-फ़साद की वज़ह से मंडी में माल समय पर नहीं आ पाता इसलिये ये हमको महँगा बेचते हैं साग-सब्ज़ी।"

चौथी महिला- "इस चिल्ल पों में हमें एक फ़ायदा ये हुआ है कि. . .” 

फ़ायदा शब्द सुनते ही रिपोर्टर कैमरामैन से कैमरा बन्द करने का इशारा करता है। कैमरामैन कैमरा बन्द कर देता है। इस सबसे अनजान चौथी महिला पुनः बोलना शुरू करती है- "तो इस ठंडी में रोज़ हमारे पति कभी चिकन, कभी मटन, कभी फ़िश लाकर रख देते थे और ख़ूब फ़रमाइश करते थे, हमको देर रात तक बनाना पड़ता है। अब शाम को वो मंडी नहीं जाते एक हफ़्ते से लौकी बनाकर खिला रहे हैं। हमें तो फ़िलहाल आराम ही आराम है।"

रिपोर्टर फिर चीखता है कैमरे पर, "जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि महिलाएँ भी तकलीफ़ में हैं इस क़ानून से। उनके भी अपने लॉजिक हैं।”
 
रिपोर्टर एक झुग्गियों की बस्ती में पहुँच जाता है फिर।

रिपोर्टर एक शराबी से मिलता है जो कि हाथ में विरोध की तख्ती लिए है। 

रिपोर्टर- “आपको इस क़ानून से क्या तकलीफ़ है?”
 
शराबी- “भाऊ, तू मला सांगा”
 
रिपोर्टर (टोकते हुए)- “आप नेशनल टीवी पर हैं, पूरा देश आपको देख रहा है।”
 
शराबी- "अभी ये क़ानून से हमको तकलीफ़ है। हमको जो कच्ची दारू मिलती है, वो बाहर गाँव से आये लोगों की बस्ती में सस्ती मिलती है। उधारी की भी मिलती है। वो बस्ती का दारू बनाने वाले मेरे को बोला कि उसको बाहर गाँव जाना पड़ेगा। अभी मेरे को बताओ कि अपन कच्ची दारू पीने के वास्ते क्या दूसरे मुलुक जायेगा। इसलिये मैं विरोध करता।"

रिपोर्टर- "तो सरकार से क्या माँग है आपकी कि इन लोगों को ना हटाया जाए या अगर हटाया जाए तो आपको दूसरे देश में पीने जाने के लिये वीज़ा पासपोर्ट दिया जाए?"

शराबी- “वो मेरे को नहीं मालूम कि सरकार इनको इधर से हटाये या मेरे को उधर जाकर पीने का खर्चा पानी देगी। पन अपुन का एक डिमांड है जैसे सरकार सस्ता गल्ला, घासलेट कोटे से देती है, तो मेरे को दारू कोटे की दुकान से क्यों नहीं दे सकती? सरकार मेरी ये बात नहीं सुनेगी तो मैं मोर्चा निकालेगा।"

रिपोर्टर कैमरे पर चीख कर बोल रहा है- "जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि इस क़ानून से बच्चे, शराबी सब परेशान हैं।”
 
रिपोर्टर एक युवक को पकड़ता है जो बैग लिये कहीं जा रहा है। 

रिपोर्टर- "आप कौन हैं, कहाँ जा रहे हैं?”

युवक- "मैं एक कॉलेज स्टूडेंट हूँ, कॉलेज बन्द हो गया है तो घर जा रहा हूँ।"

रिपोर्टर- "आपको इस क़ानून से कोई तकलीफ़ है क्या?"

युवक मायूसी से- "प्रोटेस्ट्स की वज़ह से कॉलेज बन्द हो गए। मेरी गर्लफ़्रेंड, मेरी हनी अपने घर चली गयी दूसरे शहर। नो हनी, नो लाइफ़। अब मेरा यहाँ दिल नहीं लग रहा है सो मैं भी घर जा रहा हूँ। कैमरे की तरफ़ देखकर लड़का बोलता है- "हनी जिसकी वज़ह से तुम मुझसे दूर गयी, मैं उसको अपोज़ करता हूँ।"

रिपोर्टर उत्साह में बोलते हुए कहता है ,"जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि बच्चे, बूढ़े, औरतें, युवा सभी को इस क़ानून से कुछ ना कुछ तकलीफ़ है। सरकार को…” 

तब तक भीड़ से एक पत्थर सनसनाते हुए आता है और रिपोर्टर के हाथ में लगता है। वो नीचे बैठ कर हाथ को सहलाने लगता है। कैमरामैन ने कैमरा रख दिया है और और रिपोर्टर की मदद करने लगा। 

एक राहगीर ने रिपोर्टर से पूछा- “आपको क्या तकलीफ़ है?"
 

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