ज़िन्दगी
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'ये नज़र जाए जहाँ तक, सब धुँआ सा लग रहा
इस शहर में हर कोई, क्यों लापता सा लग रहा
खोए खोए हैं सभी, हर शख़्स ही हैरान है
अमन ओ चैन का यहाँ, न नाम और निशान है
शून्य आँखों में बसा है, सूरतों पर है थकान
दिल हैं झोंपड़ी से, आलिशान ऊँचे हैं मकान
बेतहाशा दौड़ता, हर आदमी बेहाल है
बेलगाम ख़्वाहिशों का, यह सुनहरा जाल है
किस मोल पर है क्या मिला, ये सोचता कोई नहीं
मन्ज़िलों की चाहतो में, खो रहे ख़ुद को सभी
यूँ तो सब के पास सब है, वक़्त की बस है कमी
साँस केवल चल रही हो, ज़िन्दगी ये तो नहीं
कल की रट में आदमी, है आज को झुठला रहा
जो भी है बस आज है, न समझ, न समझा रहा
बेख़बर को जब ख़बर होगी कि जीवन क्यों मिला
साँझ करती होगी रस्ता, रात आने के लिए
इक दफ़ा जो रात ने, अपना ठिकाना कर लिया
आएगा 'कल' या न आए, कोई न बतला सका
जो है तेरे पास, ले आनन्द, उसे सम्मान दे
'और' की रट छोड़, जो है वो बहुत, ये मान ले
कल नहीं है, वो न आएगा कभी तू जान ले
जो है केवल 'आज' ही है, जान और पहचान ले
कल की रट को छोड़, तू इस दिन की डोरी थाम ले
जो है वो ही है बहुत, इस बात को तू मान ले!
1 टिप्पणियाँ
-
प्रीति द्वारा रचित “ ज़िंदगी” कविता उत्तम है । हार्दिक बधाई।
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- कविता - हाइकु
- कविता-माहिया
- कविता-चोका
- कविता
- कविता - क्षणिका
-
- अनुभूतियाँ–001 : 'अनुजा’
- अनुभूतियाँ–002 : 'अनुजा’
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 002
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 004
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 001
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 010
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 011
- सिनेमा चर्चा
- कविता-ताँका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-