भाग्यविधाता

01-05-2023

भाग्यविधाता

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

जाने क्यूँ आज
लगता सब कुछ
बदला सा है
बेचैनी यह कैसी
झुँझलाहट
नाराज़गी ये कैसी
किसी से नहीं
मैं ख़फ़ा हूँ ख़ुद से
ज़िम्मेदारियाँ
निज सुख तज के
उठाती रही
अपनी संस्कृति को
निभाती रही
स्वतन्त्रता, सम्मान
स्वेच्छा, प्रतिष्ठा
सब शून्य विलीन
अस्तित्व मेरा
लुप्त हो गया कहीं
किसे दोष दूँ
नाइंसाफ़ी किसकी
ढूँढ़ रही हूँ
हर ओर ख़ामोशी
केवल मैं हूँ
हाँ, केवल मैं ही हूँ
निज भाग्यविधाता!! 

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