दर्द की दवा

15-03-2022

दर्द की दवा

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मुझसे बेहतर, मेरा दर्द
समझेगा कौन, 
क्यों इसकी दवा
पूछती मैं फिरूँ . . . 
 
हर दर्द की दवा हो
ज़रूरी नहीं, 
दर्द है, या नहीं
पहले तय तो करूँ . . . 
 
कुछ दर्द तो इतने
पुराने हुए, 
देने वाले भी इनको, 
नहीं हैं रहे . . . 
 
बेकार ही कुछ को
सम्भाले हूँ मैं, 
बेमायने से शौक़, को 
पाले हूँ मैं . . . 
 
खोल मुट्ठी, उड़ा दूँ
मैं इनको अभी, 
आज मन में, न जाने
क्या ज़िद है अड़ी . . . 
 
दर्द के सिलसिले
टूटने चाहिए, 
एहसास ए सुकूँ, 
राहतें, चाहिए . . .
 
थाम सतरंगी सपनों की
हाथों में डोर, 
क्यों न, उड़ चलूँ
आसमानों की ओर . . .
 
जैसा तय था किया
वैसा करती रही, 
आसमानों में नीले
मैं उड़ती रही . . . 
 
इन हाथों की क़िस्मत 
भी लो सज गयी, 
हाथ ख़ुशियों की चाबी 
मेरे लग गयी . . .! 

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